ऑफ द रिकॉर्ड: अब राज्यपालों के लिए भी ‘मोदी मंत्र’

punjabkesari.in Sunday, Jan 21, 2018 - 08:27 AM (IST)

नेशनल डेस्कः समझा जाता है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने विचार व्यक्त किया है कि राज्यपालों को मात्र पुस्तकों के विमोचन, प्रदर्शनियों के उद्घाटन और सांस्कृतिक समारोहों में शामिल होने के अलावा सक्रिय भूमिका निभानी चाहिए। इस बात में संदेह नहीं कि राज्यपालों को राज्य में राजनीतिक भूमिका निभाने की अनुमति नहीं। वे राष्ट्रपति द्वारा नियुक्त किए जाते हैं मगर उन्हें राष्ट्र निर्माण में भूमिका निभानी चाहिए। ऐसी चर्चा है कि प्रधानमंत्री ने अपने इन विचारों को कुछ समय पहले राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद के साथ सांझा किया था क्योंकि राज्यपालों की रिपोर्ट दैनिक आधार पर राष्ट्रपति को भेजी जाती है।

राजनाथ सिंह के नेतृत्व में केन्द्रीय गृह मंत्रालय राज्यों और राज्यपालों के मामलों से निपटने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। ऐसी कानाफूसी है कि राष्ट्रपति इस विचार से बहुत उत्साहित हैं और उन्होंने इस मामले को राज्यपालों की समिति के समक्ष उठाने का फैसला किया है जो नियमित रूप से राष्ट्रपति भवन में बैठकें करती है। प्रधानमंत्री चाहते हैं कि राज्यपालों को राज्य के विकास में प्रमुख भूमिका निभानी चाहिए और वे राज्यों का बड़े पैमाने पर दौरा करें और जिलों तक भी जाएं क्योंकि मुख्यमंत्री राजनीतिक प्रबंधन और अन्य मामलों में काफी व्यस्त रहते हैं इसलिए राज्यपालों को ही लोगों के साथ वार्ता करनी चाहिए तथा उनकी समस्याएं सुन कर उन पर अपने विचार व्यक्त करें।

राज्यपाल केन्द्र के प्रतिनिधि होते हैं इसलिए उन्हें विकास मंत्र को आगे ले जाना चाहिए। उन्हें राजनीति और विकास के बीच एक लाइन खींचनी चाहिए। ऐसी अवधारणा उभरी है कि राज्यपालों की समिति ने एक रिपोर्ट सौंपी है कि राज्यपाल समाज में बदलाव के राजदूत हैं। पिछले वर्ष इस मामले पर राज्यपालों की कांफ्रैंस में चर्चा की गई थी लेकिन इसका कोई ठोस नतीजा नहीं निकला। अब रिपोर्ट आ गई है कि इस संबंध में विस्तृत दिशा-निर्देश जारी किए जाने की संभावना है।

प्रधानमंत्री यह नहीं चाहते कि राज्यपाल राजभवनों में बैठे रहें और खाली समय व्यतीत करें। उन्हें यात्रा कर लोगों तक पहुंच बनानी चाहिए और उन्हें अपने विचारों से लोगों को जोडऩा चाहिए। भाजपा शासित राज्यों के मुख्यमंत्री राज्यपालों की इस पहुंच पर आपत्ति नहीं करेंगे मगर गैर-राजग राज्यों के मुख्यमंत्री इसको स्वीकार नहीं करेंगे। इसके अलावा 75 वर्ष की उम्र से ऊपर के राज्यपाल भी इस संबंध में उत्साहित नहीं क्योंकि वे सेवानिवृत्ति के बाद राजनीतिक जीवन व्यतीत करना चाहते हैं।


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