‘पाकिस्तान जिंदाबाद’ कहने वाला हर शख्स देशद्रोही नहीं’, कोर्ट ने सुनाया अहम फैसला

punjabkesari.in Saturday, Aug 23, 2025 - 10:32 PM (IST)

नेशनल डेस्कः हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट ने देशद्रोह से जुड़े एक महत्वपूर्ण मामले की सुनवाई के दौरान स्पष्ट किया है कि "पाकिस्तान जिंदाबाद" कहना मात्र किसी व्यक्ति को देशद्रोही नहीं बनाता, जब तक उसमें भारत के खिलाफ कोई आपत्तिजनक या अपमानजनक टिप्पणी न की गई हो। यह निर्णय अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और देशद्रोह की कानूनी सीमाओं को लेकर एक अहम टिप्पणी के रूप में देखा जा रहा है।

क्या है मामला?

यह मामला हिमाचल प्रदेश के सिरमौर जिले के पांवटा साहिब निवासी एक फल विक्रेता सुलेमान से जुड़ा है। सुलेमान पर आरोप है कि उसने सोशल मीडिया पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की एक AI-जेनरेटेड तस्वीर के साथ "पाकिस्तान जिंदाबाद" लिखकर एक पोस्ट साझा की थी।

इस पोस्ट को लेकर पुलिस ने इसे देश विरोधी गतिविधि मानते हुए भारतीय न्याय संहिता (BNS) की धारा 152 (जो देश के खिलाफ शत्रुता फैलाने या राष्ट्रविरोधी कार्यों से संबंधित है) के तहत FIR दर्ज की थी। इसके बाद जून 2025 में सुलेमान ने आत्मसमर्पण कर दिया, उसका मोबाइल जब्त कर फॉरेंसिक जांच के लिए भेजा गया, और मामले में चार्जशीट दाखिल कर दी गई।

कोर्ट की टिप्पणी

मामला जब हाईकोर्ट में पहुंचा, तो जस्टिस राकेश कैंथला ने मामले की सुनवाई करते हुए टिप्पणी की: "सिर्फ किसी दूसरे देश की प्रशंसा करना, जैसे 'पाकिस्तान जिंदाबाद' कहना, तब तक देशद्रोह नहीं माना जा सकता, जब तक उसमें भारत के खिलाफ कोई अपमानजनक या घृणित वक्तव्य न हो।"

उन्होंने यह भी कहा कि अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता संविधान द्वारा संरक्षित अधिकार है, और सिर्फ राजनीतिक या वैचारिक असहमति को राजद्रोह की श्रेणी में नहीं डाला जा सकता।

देशद्रोह की नई व्याख्या पर असर

इस फैसले को देश में राजद्रोह कानून की सीमाओं और उसके दुरुपयोग की बहस के बीच एक अहम कानूनी मिसाल के तौर पर देखा जा रहा है। भारतीय न्याय संहिता 2023 (BNS) के अंतर्गत देशद्रोह से जुड़ी धाराओं को नए सिरे से परिभाषित किया गया है, और यह फैसला इन्हीं नए कानूनी मापदंडों के अनुरूप सामने आया है।

प्रतिक्रियाएं और बहस

हालांकि इस फैसले को अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की जीत माना जा रहा है, लेकिन कुछ राष्ट्रवादी संगठनों ने इसे "देशप्रेम की भावना को आहत करने वाला" बताकर आलोचना भी की है। दूसरी ओर, कानूनी विशेषज्ञों और मानवाधिकार संगठनों ने हाईकोर्ट के इस रुख की सराहना करते हुए कहा कि "राजद्रोह का आरोप बेहद गंभीर है, और इसका इस्तेमाल बेहद सोच-समझकर होना चाहिए।"


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Content Writer

Pardeep

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