NIA के हत्थे चढ़ा विशाखापत्तनम जासूसी मामले का मुख्य षड्यंत्रकारी, कई बार जा चुका है पाकिस्तान

punjabkesari.in Friday, May 15, 2020 - 08:08 PM (IST)

नई दिल्लीः राष्ट्रीय जांच एजेंसी ने पाकिस्तानी खुफिया एजेंसी आईएसआई को संवेदनशील सूचनाएं सौंपने से जुड़े विशाखापत्तनम जासूसी मामले में शुक्रवार को उसके मुख्य षड्यंत्रकारी को गिरफ्तार किया। एजेंसी के एक अधिकारी ने बताया कि मामले के मुख्य षड्यंत्रकारी, मुंबई निवासी मोहम्मद हारून हाजी अब्दुल रहमान लकड़ावाला (49) को एनआईए ने गिरफ्तार कर लिया है। एजेंसी को यह मामला पिछले साल दिसंबर में सौंपा गया था।
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भारतीय खुफिया एजेंसी ने पाकिस्तान से जुड़े इस जासूसी रैकेट का पर्दाफाश करते हुए 20 दिसंबर, 2019 को भारतीय नौसेना के सात कर्मियों और एक हवाला कारोबारी को गिरफ्तार किया। लकड़ावाला की गिरफ्तारी के साथ ही विशाखापत्तनम जासूसी मामले में अभी तक कुल 14 आरोपी गिरफ्तार किए गए हैं। इनमें से 11 भारतीय नौसेना के कर्मी हैं और एक पाकिस्तान में जन्मी भारतीय नागरिक शाइस्ता कैसर शामिल हैं।
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अधिकारी ने बताया, ‘‘जांच में पता चला है कि लकडावाला सीमा पार से व्यापार करने के बहाने कई बार कराची गया और वहां अपने हैंडलर से मिला। इन यात्राओं के दौरान वह दो पाकिस्तानी जासूसों, अकबर ऊर्फ अली और रिजवान के संपर्क में आया जिन्होंने उसे (लकडावाला) नौसेना कर्मियों के खातों में समय-समय पर धन जमा करने को कहा। और यह काम अलग-अलग माध्यमों से किया गया।'' उन्होंने बताया कि लकडावाला के मकान की तलाशी में वहां से कई डिजिटल उपकरण और महत्वपूर्ण दस्तावेज मिले हैं। आगे की जांच जारी है।
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अधिकारी ने कहा, ‘‘एनआईए ने विशाखापत्तनम जासूसी मामले के मुख्य षड्यंत्रकारी को गिरफ्तार कर लिया है। यह मामला अंतरराष्ट्रीय जासूसी रैकेट से जुड़ा हुआ है जिसमें पाकिस्तान और भारत में अलग-अलग स्थानों के लोग शामिल हैं।'' पाकिस्तान के जासूसों ने भारत में एजेंट तैयार किए और भारतीय नौसेना के जहाजों, पनडुब्बियों और अन्य रक्षा प्रतिष्ठानों के लोकेशन और आवाजाही से जुड़ी गोपनीय और संवेदनशील सूचनाएं/जानकारी एकत्र करना है। उन्होंने कहा, ‘‘जांच में यह बात सामने आयी है कि नौसेना के कुछ कर्मी फेसबुक और व्हाट्सऐप जैसे सोशल मीडिया ऐप के जरिए पाकिस्तानी नागरिकों के संपर्क में आए और क्षणिक मौद्रिक/वित्तीय लाभ के लिए गोपनीय सूचनाएं साझा कीं। नौसैनिकों के खातों में जिन भारतीय सहयोगियों ने धन जमा किया, उन सभी के व्यापारिक हित पाकिस्तान से जुड़े हुए थे।''

 


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Yaspal

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