Bhagat Singh Birthday : मां कहती भगता शादी कर ले, भगत सिंह बोलते-''मेरी दुल्हन बनने का हक सिर्फ मेरी मौत को''

punjabkesari.in Wednesday, Sep 28, 2022 - 11:23 AM (IST)

नेशनल डेस्क: भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के इतिहास में शहीद-ए-आजम भगत सिंह, राजगुरु एवं सुखदेव का नाम आदरपूर्वक लिया जाता है, जो अंतिम सांस तक आजादी के लिए अंग्रेजों से टक्कर लेते रहे। आज 28 सितंबर को आजादी के मतवाले और हंसते-हंसते मातृभूमि पर अपनी जान न्योछावर करने वाले शहीद-ए-आजम भगत सिंह की जयंती है। भारत मां के वीर सपूत और भारत के महान स्वतंत्रता सेनानी भगत सिंह की जयंती पर देश भर में कार्यक्रम आयोजित हो रहे हैं। आईए, एक नजर डालते है भगत सिंह के जीवन से जुड़े उन किस्सों पर जो कोई नहीं जानता...

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जब-जब आजादी की बात होगी तब-तब इंकलाब का नारा देने वाले भारत माता के इन वीर सपूतों को याद किया जाएगा। वो आखिरी रात जब फांसी के तख्ते पर चढ़कर पहले तो तीनों ने फंदे को चूमा और फिर अपने ही हाथों से उस फंदे को सहर्ष गले में डाल लिया। यह देखकर जेल के वार्डन ने कहा था, ‘‘इन युवकों के दिमाग बिगड़े हुए हैं, ये पागल हैं।’’ 

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भगत सिंह जन्म से ही स्वतंत्र विचारधारा के व्यक्ति थे। अपने पिता सरदार किशन सिंह तथा चाचा अजीत सिंह के स्वतंत्र विचार उनकी रग-रग में समाए हुए थे। उनकी पांच साल की उम्र रही होगी, वह अपने पिता के साथ जब खेत में गए तो वहां कुछ तिनके चुनकर जमीन में गाडऩे लगे। जब पिता ने पिता ने पूछा, ‘‘बेटा क्या कर रहे हो?’’तो उत्तर में भगत सिंह ने कहा, ‘‘मैं बंदूकें बो रहा हूं, इनसे बहुत सारी बंदूकें बन जाएंगी जिसका इस्तेमाल अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ किया जाएगा।’’

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सरदार जगमोहन सिंह ने बताया, "भगत मामा बचपन से ही कसरत के बेहद शौकीन थे। वे लाहौर में हुई लट्ठबाजी प्रतियोगिता के चैम्पियन भी रहे। एक बार वो अपनी मां (मेरी नानी) के साथ तांगे से कहीं जा रहे थे। कुछ दूर चलने के बाद तांगा एक गड्ढे में पलट गया, जिससे मामा के सीने की दो पसलियां दब गईं। उसी की वजह से वे नानी से कहते रहते थे- मैं इतनी कसरत करता हूं, लेकिन मेरा सीना पूरा नहीं फूलता। आपकी वजह से मेरी दो पसलियां दब गईं। आप मुझे लेकर नहीं गई होतीं तो शायद मेरी पसलियां न दबतीं और मेरा सीना पूरा फूलता।" वहीं एक बार जब उनके माता-पिता ने उनसे शादी को लेकर बात की तो वे भागकर कानपुर आ गए। उन्होंने अपने माता-पिता से कह दिया कि अगर मैं अंग्रेजी शासन काल में शादी करुंगा तो मेरी 'दुल्हन' केवल मौत होगी। वे लेनिन से भी प्रभावित हुए। वे कहते थे कि वे (अंग्रेज) मुझे भले ही मार देंगे लेकिन मेरे विचारों को नहीं मार पाएंगे। वे मुझे भले ही मार देंगे लेकिन मेरी आत्मा को नहीं मार पाएंगे।

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13 अप्रैल, 1919 को हुए जलियांवाला बाग हत्‍याकांड ने भगत सिंह पर गहरा असर डाला और वे भारत की आजादी के सपने देखने लगे। जानकर हैरानी होगी कि परिजनों ने जब भगत सिंह की शादी करनी चाही तो वह घर छोड़कर कानपुर भाग गए।  अपने पीछे वे जो खत छोड़ गए, उसमें उन्‍होंने लिखा कि उन्‍होंने अपना जीवन देश को आजाद कराने के महान काम के लिए समर्पित कर दिया है। इसलिए कोई दुनियावी इच्‍छा या ऐशो-आराम उनको अब आकर्षित नहीं कर सकता। ऐसे में, शहीद-ए-आजम की शादी हुई, पर कैसे हुई, इसके बारे में बताते हुए भगत सिंह की शहादत के बाद उनके घनिष्ठ मित्र भगवती चरण वोहरा की धर्मपत्नी दुर्गा भाभी ने, जो स्वयं एक क्रांतिकारी वीरांगना थीं, कहा था, "फांसी का तख्ता उसका मंडप बना, फांसी का फंदा उसकी वरमाला और मौत उसकी दुल्हन।"


तीनों ही साथियों ने साइमन कमीशन का जमकर विरोध किया। पुलिस की बर्बरता से लाला लाजपत राय गंभीर रूप से घायल हो गए तथा 17 नवम्बर, 1928 को उनका देहांत हो गया। भगत सिंह, राजगुरु, सुखदेव और उनके साथियों ने लाला जी की मौत का बदला लेने की योजना बनाई। चंद्रशेखर आजाद और राजगुरु ने साथ मिलकर पुलिस अधीक्षक सांडर्स को 17 दिसम्बर, 1928 को गोली से उड़ा दिया। इस घटना के तुरन्त बाद भगत सिंह वेश बदलकर कलकत्ता के लिए प्रस्थान कर गए। वहीं रहते हुए भगत सिंह ने बम बनाने की विधि सीखी। बम फैंकने के अपराध में सरदार भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव को 7 अक्तूबर, 1930 को फांसी की सजा सुना दी गई। 23 मार्च, 1931 को लाहौर जेल में भारत माता के तीनों सपूतों को फांसी दे दी गई और पुलिस ने उनकी लाशों को रात्रि के समय फिरोजपुर (पंजाब) में जला दिया। सारे देश में शोक की लहर दौड़ गई तथा इन शहीदों के बलिदान पर 23 मार्च को शोक दिवस के रूप में मनाया गया।


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News Editor

Angrez Singh

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