‘नेशनल बायोबैंक’ से बदलेगा स्वास्थ्य क्षेत्र का भविष्य, जानिए कैसे करेगा मदद
punjabkesari.in Monday, Jul 07, 2025 - 01:17 PM (IST)

नेशनल डेस्क: रविवार को केंद्रीय विज्ञान और प्रौद्योगिकी राज्य मंत्री डॉ. जितेंद्र सिंह ने दिल्ली के CSIR-इंस्टीट्यूट ऑफ जीनोमिक्स एंड इंटीग्रेटिव बायोलॉजी (IGIB) में भारत की पहली अत्याधुनिक नेशनल बायोबैंक का उद्घाटन किया। इस बायोबैंक का नाम फेनोम इंडिया (Phenome India) रखा गया है। यह पहल भारत की स्वास्थ्य सेवा में एक बड़ा बदलाव लाने का वादा करती है, जिससे भविष्य में हर भारतीय को उसकी जरूरत के हिसाब से इलाज मिल सकेगा।
फेनोम इंडिया: हर भारतीय के लिए व्यक्तिगत इलाज
डॉ. जितेंद्र सिंह ने बताया कि फेनोम इंडिया बायोबैंक का मुख्य लक्ष्य हर व्यक्ति को उसकी जेनेटिक जानकारी, जीवनशैली और पर्यावरण के आधार पर व्यक्तिगत इलाज उपलब्ध कराना है। इसका मतलब है कि अब इलाज 'एक सबके लिए' नहीं होगा, बल्कि हर व्यक्ति के लिए उसकी विशिष्ट आवश्यकताओं के अनुसार तैयार किया जाएगा।
इस बायोबैंक के जरिए पूरे भारत से 10,000 लोगों का विस्तृत डेटा इकट्ठा किया जाएगा, जिसमें उनकी जीनोमिक (आनुवंशिक) जानकारी, स्वास्थ्य संबंधी आंकड़े और जीवनशैली से जुड़ी जानकारी शामिल होगी। यह परियोजना यूके की बायोबैंक से प्रेरणा लेती है, लेकिन इसे भारत की अनूठी भौगोलिक और सामाजिक-आर्थिक विविधता को ध्यान में रखते हुए विशेष रूप से डिजाइन किया गया है। इस डेटा की मदद से लोगों के स्वास्थ्य की जानकारी लंबे समय तक रखी जा सकेगी, जिससे बीमारियों को समझने और उनके इलाज में मदद मिलेगी।
भारतीय स्वास्थ्य समस्याओं को समझने में सहायक
डॉ. जितेंद्र सिंह ने इस अवसर पर कहा कि अब व्यक्तिगत स्वास्थ्य देखभाल केवल एक विचार नहीं रह गया है, बल्कि भारतीय नवाचारों के कारण यह हकीकत में बदल रहा है। उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि भारत में कुछ अनूठी स्वास्थ्य समस्याएं हैं, जैसे कि सेंट्रल ओबेसिटी, जिसमें व्यक्ति पतला दिखता है, लेकिन उसकी कमर के पास चर्बी जमा होती है। उन्होंने कहा, "हमारे देश की स्वास्थ्य समस्याएं बहुत अलग-अलग तरह की और मुश्किल हैं। इसीलिए बायोबैंक की शुरुआत होना बहुत जरूरी है।
मरीजों और शोधकर्ताओं को कैसे मिलेगा फायदा?
यह नेशनल बायोबैंक कई तरीकों से मरीजों और वैज्ञानिकों दोनों को फायदा पहुंचाएगा:
बीमारियों को बेहतर समझना: वैज्ञानिक अब डायबिटीज, कैंसर, दिल की बीमारी और कुछ दुर्लभ आनुवंशिक बीमारियों जैसी विभिन्न बीमारियों को बेहतर तरीके से समझ पाएंगे।जल्दी पता लगाना और नए इलाज: इससे इन बीमारियों का जल्दी पता लगाने और इलाज करने के नए तरीके विकसित किए जा सकेंगे। AI और जीन आधारित इलाज: भविष्य में, इस बायोबैंक में जमा डेटा का उपयोग कृत्रिम बुद्धिमत्ता (AI) और जीन-आधारित इलाज (gene-based treatment) को बेहतर बनाने के लिए भी किया जा सकेगा।
शोध अब प्रयोगशाला तक सीमित नहीं
डॉ. जितेंद्र सिंह ने आगे कहा कि भारत अब विज्ञान के क्षेत्र में तेजी से आगे बढ़ रहा है। हमारा देश अब क्वांटम टेक्नोलॉजी, CRISPR और एंटीमाइक्रोबियल रेजिस्टेंस (AMR) जैसी समस्याओं से लड़ने में अग्रणी है। उन्होंने कहा कि बायोबैंक जैसे प्रयास यह सुनिश्चित करेंगे कि शोध अब केवल प्रयोगशालाओं तक सीमित न रहें, बल्कि आम लोगों और बाजार के लिए भी फायदेमंद साबित हों।
CSIR की महानिदेशक और DSIR की सचिव डॉ. एन. कलैसेल्वी ने बताया कि इस बायोबैंक की शुरुआत भारत को अपने स्वास्थ्य डेटा में आत्मनिर्भर बनाने की दिशा में एक बड़ा और साहसी कदम है। डॉ. जितेंद्र सिंह ने यह भी रेखांकित किया कि अनुसंधान संस्थानों, जैव प्रौद्योगिकी विभाग और उद्योग जगत को विशेष रूप से एएमआर और नई दवाओं को विकसित करने के लिए मिलकर काम करना बहुत ज़रूरी है।