मुस्लिम पर्सनल ला बोर्ड भंग करने की मांग
punjabkesari.in Thursday, Nov 03, 2016 - 06:32 PM (IST)

नई दिल्ली : देश के ‘जानेमाने मुस्लिम बुद्धिजीवियों ने तीन तलाक’का पुरजोर विरोध करते हुए मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड को भंग करने और पर्सनल लॉ में सुधार करने की मांग की है। गैर सरकारी संगठन अनहद और ऑल इंडिया डेमोक्रेटिक विमेंस एसोसिएशन द्वारा तीन तलाक और समान नागरिक संहिता तथा महिलाओं की समानता के संघर्ष विषय पर आयोजित सम्मेलन में बुद्धिजीवियों ने यह मांग की।
मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड की सदस्य उज्मां नाहिद ने कहा कि तीन तलाक और मुस्लिम महिलाओं के अधिकारों के मामले में बीच का रास्ता निकलना चाहिए और तलाक होने पर निर्दोष महिलाओं को मेहर की रकम दो गुनी मिलनी चाहिए। उन्होंने कहा कि मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड 1973में बना एक गैर सरकारी संगठन है और वह मुस्लिम समाज का पूरी तरह प्रतिनिधित्व नहीं करता। वह केवल तीन तलाक के मुद्दे उठाता है। उसने आज तक मुस्लिम महिलाओं को संपत्ति के अधिकार मिलने का मुद्दा कभी नहीं उठाया और मेहर की राशि दिलवाने में दिलचस्पी नहीं दिखाई।
वक्ताओं का यह भी कहना था कि मुस्लिम पर्सनल लॉ में सुधार तो होना ही चाहिए क्योंकि यह पर्सनल लॉ अंग्रेजों ने 1937) में बनाया था। मुस्लिम समाज में महिलाओं को उनका अधिकार मौलवियों और मुल्लाओं ने छीन रखा है और पर्सनल लॉ बोर्ड कभी उनके खिलाफ नहीं आता। मौलवियों ने भी कभी अपनी लड़कियों को अधिकार नहीं दिए। वक्ताओं ने कहा कि 1986 में शाहबानों के मामले में मुस्लिम महिलाओं को आगे आना चाहिए था लेकिन अब मुस्लिम समाज के भीतर से ही तीन तलाक का मुद्दा उठा है लेकिन सवाल केवल तीन तलाक का ही नहीं बल्कि महिलाओं के संपूर्ण अधिकार का है।
वक्ताओं ने यह भी कहा आज भारतीय जनता पार्टी तीन तलाक के मुद्दे पर महिलाओं के प्रति इतनी हमदर्दी दिखा रही है। अगर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी वाकई महिलाओं के इतने शुभ चिन्तक हैं तो वह 33 प्रतिशत आरक्षण क्यों नहीं दे देते और महिलाओं को उनके हक क्यों नहीं दिलवाते। वह केवल चुनाव देख कर ऐसी बाते करते हैं। वक्ताओं का यह भी कहना था कि तीन तलाक का मुद्दा केवल तलाक तक ही सीमित नहीं बल्कि महिलाओं के साथ अन्याय और दमन का मसला है। समाज में पुरुषवादी सोच इस तरह हावी है कि वह महिलाओं को उनके अधिकारों और उनकी आजादी से वंचित रखना चाहती है।
सम्मेलन में पूर्व केन्द्रीय मंत्री आरिफ मोहम्मद खान, पूर्व विदेश सचिव सलमान हैदर, राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग के पूर्व अध्यक्ष वजाहत हम्बीबुल्लाह,योजना आयोग की पूर्व सदस्य सईदा हमीद, भारतीय प्रगतिशील लेखक संघ के महासचिव अली जावेद मिल्ली, गजट के संपादक जफ्रुरुल इस्लाम खान, मशहूर पत्रकार जावेद नकवी, सामाजिक कार्यकत्र्ता जुलेखा जबीं ,कविता कृष्णन ,सहबा फारुकी ,एवं इतिहासकार एस इरफान हबीब, आदि ने शिरकत की।