मुंबई ट्रेन ब्लास्ट 2006: हाईकोर्ट के फैसले पर सुप्रीम कोर्ट ने लगाई रोक, सभी 12 आरोपियों को नोटिस जारी

punjabkesari.in Thursday, Jul 24, 2025 - 04:39 PM (IST)

नेशनल डेस्क : 2006 के मुंबई लोकल ट्रेन बम धमाकों के 12 आरोपियों को बरी करने के बॉम्बे हाईकोर्ट के हालिया फैसले पर सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को रोक लगा दी है। जस्टिस एम.एम. सुंदरेश और एन. कोटिश्वर सिंह की पीठ ने इस मामले की सुनवाई करते हुए कहा कि हाईकोर्ट के निर्णय को मिसाल नहीं माना जाएगा। महाराष्ट्र सरकार की ओर से दायर याचिका पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने सभी 12 आरोपियों को नोटिस जारी कर जवाब तलब किया है।

हाईकोर्ट ने 21 जुलाई को सुनाया था बरी करने का फैसला
21 जुलाई 2024, सोमवार को बॉम्बे हाईकोर्ट की विशेष पीठ — जिसमें जस्टिस अनिल किलोर और जस्टिस श्याम चांडक शामिल थे — ने 2006 के मुंबई ट्रेन बम ब्लास्ट मामले में सभी 12 आरोपियों को बरी कर दिया था। अदालत ने कहा कि अभियोजन पक्ष मामले को साबित करने में पूरी तरह विफल रहा और यह मानना कठिन है कि इन आरोपियों ने ही इस आतंकी हमले को अंजाम दिया।

हाईकोर्ट के इस फैसले के बाद महाराष्ट्र एटीएस (एंटी टेररिज्म स्क्वॉड) की कार्यप्रणाली पर सवाल उठने लगे। एटीएस ने जांच के दौरान कहा था कि सभी आरोपी स्टूडेंट्स इस्लामिक मूवमेंट ऑफ इंडिया (सिमी) से जुड़े थे और उन्होंने पाकिस्तान स्थित आतंकी संगठन लश्कर-ए-तैयबा (LeT) के साथ मिलकर हमले की साजिश रची थी।

2006 में हुए धमाकों ने देश को दहला दिया था
11 जुलाई 2006 को मुंबई की पश्चिमी रेलवे लाइन पर चलने वाली लोकल ट्रेनों को निशाना बनाकर सिर्फ नौ मिनट में सात सीरियल ब्लास्ट किए गए थे। ये धमाके शाम 6:24 से 6:35 बजे के बीच हुए। धमाकों में 180 से अधिक लोगों की मौत हुई थी जबकि 824 से ज्यादा लोग घायल हुए थे।

धमाके मुख्य रूप से लोकल ट्रेनों के फर्स्ट क्लास डिब्बों में किए गए थे। ये धमाके मुंबई के इन स्टेशनों के पास हुए:

1. बांद्रा

2. खार

3. माहिम

4. माटुंगा

5. जोगेश्वरी

6. बोरीवली

7. मीरा-भायंदर

2015 में सुनाई गई थी सजा, अब सभी बरी
घटना के बाद एटीएस ने कुल 30 लोगों को आरोपी बनाया, लेकिन कोर्ट में सिर्फ 12 की पहचान की जा सकी। 9 साल तक मामला चलने के बाद, 2015 में स्पेशल मकोका कोर्ट ने 5 आरोपियों को फांसी और 7 को आजीवन कारावास की सजा सुनाई थी। फैसले को सभी आरोपियों ने बॉम्बे हाईकोर्ट में चुनौती दी, जिस पर 19 साल बाद अब निर्णय आया।

हाईकोर्ट के आदेश के बाद नागपुर की केंद्रीय जेल से दो आरोपियों को रिहा कर दिया गया था। एहतेशाम सिद्दीकी, जिसे निचली अदालत ने फांसी की सजा सुनाई थी। दूसरा मोहम्मद अली, जिसे उम्रकैद मिली थी। हालांकि, नवीद खान को जेल से रिहा नहीं किया गया क्योंकि उस पर हत्या की कोशिश का एक और मामला लंबित है।

सुप्रीम कोर्ट की अगली सुनवाई से तय होगी दिशा
सुप्रीम कोर्ट द्वारा हाईकोर्ट के फैसले पर रोक लगाए जाने के बाद अब सभी की नजरें आगामी सुनवाई पर टिकी हैं। यह मामला न केवल आतंकवाद से जुड़ी न्यायिक प्रक्रिया, बल्कि जांच एजेंसियों की विश्वसनीयता और साक्ष्य प्रणाली की पारदर्शिता पर भी बड़ा प्रभाव डाल सकता है।


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Content Editor

Shubham Anand

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