भीड़ हत्या की घटनाओं पर जल्द लगाम नहीं लगने वाली: विशेषज्ञ

punjabkesari.in Wednesday, Jul 25, 2018 - 04:58 PM (IST)

नई दिल्ली: देश के अलग - अलग हिस्सों से भीड़ के हाथों लोगों की पीट - पीटकर हत्या के मामले सामने आने के बीच विशेषज्ञों का कहना है कि इन घटनाओं पर जल्द लगाम नहीं लगने वाली है।  मुंबई के मणिबेन नानावटी महिला कॉलेज के मनोविज्ञान विभाग की अध्यक्ष डॉ . सिसिलिया चेट्टीयार ने लोगों की जान लेने पर उतारू भीड़ की मानसिकता के बारे में कहा कि देश ‘‘ सामूहिकतावादी और व्यक्तिवादी सूक्ष्म संस्कृतियों ’’ का मिलाजुला रूप है।


चेट्टीयार ने बताया कि भीड़ हत्या की घटनाओं पर जल्द लगाम नहीं लगने वाली , क्योंकि समाज सत्ता का भूखा और भावनात्मक तौर पर ‘उदासीन’ है। उन्होंने बातचीत में कहा, ‘‘हम उदासीन समाज हैं। हम ऐसी संस्कृति हैं जो दिखाती है कि मैं तुमसे बड़ा हूं, मेरे पास तुमसे ज्यादा ताकतवर चीजें हैं। वह ताकतवर या अहम चीज सकारात्मक या नकारात्मक कुछ भी हो सकती है। जब तक यह ताकतवर है कि यह पहले मुझे मिला-शायद किसी मरते हुए व्यक्ति या किसी दुर्घटना का वीडियो - यह अपना प्रभाव दिखाने की भावन दर्शाता है।’’  उन्होंने कहा कि कभी - कभी लोगों की ओर से पीट-पीटकर किसी की जान ले लिए जाने से उनका कोई संबंध नहीं होता।

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विशेषज्ञों के मुताबिक, सोशल मीडिया साइटों तक आसान पहुंच ने लोगों में किसी का दुख देखकर खुश होने की प्रवृति बढ़ा दी है और लोग चाहने लगे है कि वे किसी ‘खबर’ को सबसे पहले दिखाएं या बताएं। उन्होंने बताया कि हालात को बद से बदतर होने से रोकने की बजाय लोग या तो तमाशबीन बने रहते हैं या हिंसा कर रही भीड़ में शामिल हो जाते हैं।

पुडुचेरी में रहने वाली मनोविज्ञानी डॉ. अदिति कौल ने कहा कि हर शख्स हर चीज का हिस्सा बनना चाहता है। कौल ने बताया, ‘‘हम हर चीज रिकॉर्ड करना चाहते हैं। हम जो कुछ करते हैं उसके बारे में मानते हैं कि उसे लोगों तक पहुंचना चाहिए। यह मान्यता पाने का बहुत विकृत रूप है। वे अपनी निशानी छोडऩा चाहते हैं .... हर कोई सिर्फ एक ही बात पर जोर दे रहा है - मुझे देखो , मैं भी यहां हूं।’’ दिल्ली में रहने वाली मनोविज्ञानी पल्लवी राम के मुताबिक , ऐसा माना जाता है कि भीड़ जितनी बड़ी होगी , उसे उतनी ही अधिक मान्यता मिलेगी।    
  
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अदिति ने कहा कि किसी समूह के तौर पर लिए जाने वाले फैसले किसी व्यक्ति के निर्णयों से ज्यादा चरमोन्मुखी होते हैं। कोलकाता के एमिटी लॉ स्कूल के सहायक प्रोफेसर सौविक मुखर्जी ने बताया, ‘‘अकेले रहने पर आप ज्यादा चौकस होते हैं। समूह में आपको दूसरे सदस्यों की सहजता प्राप्त होती है। जिम्मेदारी और जवाबदेही का भी बंटवारा होता है।’’  तो क्या भीड़ इसी तरह ङ्क्षहसा करती रहेगी और राहगीर तमाशबीन बने रहेंगे, इस पर सौविक ने कहा, ‘‘ किसी व्यक्ति पर हमला होते देखकर उसमें दखल देने के लिए कोई व्यक्ति कानूनी तौर पर बाध्य नहीं है। आप सिर्फ ऐसी स्थिति में नैतिक जिम्मेदारी डाल सकते हैं जो व्यक्ति - व्यक्ति पर निर्भर करता है।’’  

सौविक ने बताया कि जब तक अपराध करके छूट जाने की संस्कृति से प्रभावी तौर पर नहीं निपटा जाएगा और लोग जब तक मदद की बजाय उकसाते रहेंगे , तब तक ऐसी हिंसा भड़कती रहेगी। उन्होंने कहा कि इनसे जल्द निजात दिलाने वाला कोई दिख नहीं रहा।      


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Anil dev

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