ये है मां की ममता! आग में बुरी तरह झुलसी मां, अपनी खाल से दी 8 साल के मासूम को जिंदगी, बन गई मिसाल
punjabkesari.in Monday, Jul 28, 2025 - 12:21 PM (IST)

नेशनल डेस्क: 12 जून की वह दोपहर अहमदाबाद के मेघाणीनगर स्थित बीजे मेडिकल कॉलेज की एक रिहायशी बिल्डिंग पर हुए विमान हादसे के रूप में हमेशा के लिए दर्ज हो गई। जब एयर इंडिया का विमान इस इमारत से टकराया, तो चारों तरफ आग, धुआं और चीख-पुकार मच गई। लेकिन इसी मलबे के बीच एक मां ने अपने आठ महीने के मासूम बेटे को अपने शरीर से ढंककर मौत के मुंह से बचा लिया। यह एक मां के अटूट प्रेम और ममता की ऐसी मिसाल है, जो हर किसी को भावुक कर देती है।
आग के बीच मां ने बचाई बेटे की जान
30 वर्षीय मनीषा कच्छाड़िया और उनका बेटा ध्यान्श उसी इमारत में रहते थे, जिस पर विमान गिरा था। प्लेन क्रैश के बाद वहां इतना घना धुआं था कि कुछ भी दिखाई नहीं दे रहा था। ऐसे भयावह माहौल में भी मनीषा ने अपने बेटे ध्यान्श को अपने सीने से लगाया और किसी भी तरह बाहर की ओर भागीं। इस भीषण आग में मां-बेटे दोनों बुरी तरह झुलस गए थे, लेकिन सबसे बड़ी बात यह थी कि वे जिंदा थे।
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'मैंने सोचा अब नहीं बचेंगे...'
एक रिपोर्ट के अनुसार इस खौफनाक हादसे के बाद मनीषा और ध्यान्श ने पांच हफ्ते तक अस्पताल में जिंदगी और मौत की लड़ाई लड़ी। आखिरकार शुक्रवार को उन्हें अस्पताल से छुट्टी मिल गई। मनीषा का शरीर 25% तक जल गया था, जिसमें उनका चेहरा और हाथ बुरी तरह झुलस गए थे। वहीं ध्यान्श 36% तक जल गया था, जिसके चेहरे, पेट, छाती और हाथ-पैरों पर गहरे जख्म थे। मनीषा ने उस भयावह पल को याद करते हुए कहा, "एक पल ऐसा आया जब लगा कि अब हम नहीं बचेंगे। पर मेरे बेटे के लिए मुझे लड़ना था। जो दर्द हमने झेला है, उसे शब्दों में नहीं कहा जा सकता।"
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मां की खाल से बेटे को मिली नई जिंदगी
इस चमत्कार में डॉक्टरों का भी अहम योगदान रहा। केडी हॉस्पिटल के प्लास्टिक सर्जन डॉ. ऋत्विज पारिख ने बताया, "ध्यान्श की उम्र बहुत छोटी थी। उसके शरीर से थोड़ी सी ही त्वचा ली जा सकती थी, इसलिए हमने मनीषा की त्वचा को भी उसके शरीर पर ग्राफ्ट किया। संक्रमण का जोखिम बहुत था, लेकिन हमें यह सुनिश्चित करना था कि उसकी ग्रोथ पर कोई असर न पड़े।" इस तरह मनीषा ने सिर्फ एक बार नहीं, बल्कि दो बार अपने शरीर से अपने बेटे की जान बचाई। पहले आग की लपटों से बचाकर और फिर अपनी ही खाल से उसके जले हुए शरीर को नई जिंदगी देकर।
शरीर पर जख्म, आंखों में तसल्ली
केडी हॉस्पिटल ने प्लेन क्रैश में घायल हुए छह मरीजों का मुफ्त इलाज किया, जिनमें कच्छाड़िया मां-बेटा भी शामिल थे। डॉक्टरों और नर्सों की अथक मेहनत के साथ-साथ एक मां की अटूट ममता ने इस चमत्कार को संभव कर दिखाया। आज भी मनीषा के शरीर पर उस हादसे के जख्म मौजूद हैं, मगर उनकी आंखों में एक सुकून और तसल्ली है। वह कहती हैं, "मेरे लिए अब जीना बस उसके चेहरे की मुस्कान और सांसों में सुकून है।" ध्यान्श के लिए उसकी मां की गोद सिर्फ एक आश्रय नहीं थी, बल्कि एक ऐसी मजबूत ढाल थी जो आग, पीड़ा और मौत के सामने डटकर खड़ी हो गई। यह हादसा एक बार फिर साबित करता है कि मां सिर्फ जननी नहीं होती, वह जीवन की सबसे मजबूत दीवार होती है।