मनीष तिवारी बोले- अविश्वास प्रस्ताव स्वीकार होने के बाद बिल पास होना संवैधानिक रूप से संदिग्ध
punjabkesari.in Sunday, Jul 30, 2023 - 05:38 PM (IST)

नेशनल डेस्कः कांग्रेस सांसद मनीष तिवारी ने रविवार को दावा किया कि लोकसभा द्वारा अविश्वास प्रस्ताव को मंजूर किए जाने के बाद पारित हुए सभी विधेयक ‘‘संवैधानिक रूप से संदिग्ध'' हैं। तिवारी ने जोर देकर कहा कि कोई भी विधायी कामकाज प्रस्ताव के परिणाम सामने आने के बाद ही होना चाहिए, ना कि इससे पहले। पूर्व केन्द्रीय मंत्री ने कहा कि अविश्वास प्रस्ताव स्वीकार किए जाने के बाद 10 दिन की अवधि का इस्तेमाल विधेयकों को पारित कराने के लिए नहीं किया जा सकता।
लोकसभा सदस्य ने यह बात तब कही जब दिल्ली सेवा अध्यादेश के स्थान पर संसद में एक विधेयक पेश किया जाना है। उन्होंने कहा कि एक बार अविश्वास प्रस्ताव लोकसभा में पेश कर दिया जाए, तो उसके बाद कोई विधेयक अथवा संसद के समक्ष लाया गया कोई भी कामकाज ‘‘ नैतिकता, औचित्य और संसदीय परंपराओं का पूरी तरह से उल्लंघन है।''
तिवारी ने दावा किया कि लोकसभा द्वारा अविश्वास प्रस्ताव को मंजूर किए जाने के बाद राज्यसभा अथवा लोकसभा से पारित सभी विधेयकों की वैधता की पड़ताल कानून द्वारा की जानी चाहिए और यह पता लगाया जाना चाहिए कि ये कानूनी तरीके से पारित किए गए हैं अथवा नहीं। उन्होंने दावा किया कि अविश्वास प्रस्ताव को मंजूर किए जाने के बाद सभी विधायी कामकाज ‘‘संवैधानिक रूप से संदिग्ध'' हैं।
भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) द्वारा नरेन्द्र मोदी सरकार के खिलाफ 2018 में लाए गए अविश्वास प्रस्ताव और उसके बाद 2019 के चुनाव में मिली भारी जीत की तुलना आज के परिदृश्य से किए जाने पर कांग्रेस नेता ने कहा ‘‘ अगर इतिहास एक बार खुद को दोहराता है तो यह त्रासदी है और अगर वह ऐसा दोबारा करता है तो यह तमाशा है।'' कांग्रेस ने मणिपुर हिंसा के मुद्दे पर गत बुधवार को लोकसभा में सरकार के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव पेश किया जिस पर चर्चा के लिए सदन ने मंजूरी दे दी है।
मणिपुर के मुद्दे पर प्रधानमंत्री मोदी से संसद के भीतर जवाब मांग रहे विपक्षी गठबंधन ‘इंडियन नेशनल डेवलपमेंटल इन्क्लूसिव अलायंस' (इंडिया) की ओर से कांग्रेस ने इस रणनीति के साथ यह कदम उठाया है कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को सदन में बोलने के लिए बाध्य किया जा सके। तिवारी ने कहा, ‘‘ मणिपुर में जो हुआ और जो वहां लगातार हो रहा है वह निंदनीय है। राज्य में भाजपा की सरकार है,केन्द्र में भाजपा की सरकार है, इसलिए किसी को तो जिम्मेदारी लेनी होगी।''
कांग्रेस नेता ने कहा कि विपक्ष यह उम्मीद कर रहा था कि प्रधानमंत्री मणिपुर के ‘‘बेहद खतरनाक हालात''पर संसद के दोनों सदनों में स्वत: संज्ञान लेते हुए बयान देंगे और उस पर चर्चा होगी। उन्होंने कहा, लेकिन दुर्भाग्य से प्रधानमंत्री ने मानसून सत्र के शुरू होने से पहले बेहद ‘‘सतही बयान'' दिया। कांग्रेस नेता ने कहा,‘‘ इसके बाद पीठासीन अधिकारी ने लगातार पेश किए गए स्थगन प्रस्ताव को स्वीकार नहीं किया। इसलिए संयुक्त विपक्ष के पास यह अविश्वास प्रस्ताव लाने के सिवाय और कोई विकल्प नहीं बचा था..।''
इस अविश्वास प्रस्ताव पर प्रधानमंत्री मोदी के जवाब को लेकर क्या उम्मीदें हैं, यह पूछे जाने पर पंजाब के आनंदपुर साहिब से सांसद ने कहा कि प्रस्ताव में कहा गया है कि,‘‘ यह सदन मंत्रिपरिषद के प्रति विश्वास के अभाव को व्यक्त करता है'' और उस विश्वास की मांग का कारण पिछले एक सप्ताह से सार्वजनिक तौर पर बताया जा रहा है।'' उन्होंने कहा, ‘‘ तो उन परिस्थितियों में अगर प्रधानमंत्री मणिपुर पर प्रतिक्रिया नहीं देने का चुनाव करते हैं तो यह उपहास का विषय होगा।''
भाजपा का तर्क है कि पूर्वोत्तर में अतीत में हुई हिंसा की घटनाओं पर मंत्रियों ने जवाब दिया है प्रधानमंत्री ने नहीं,इस पर तिवारी ने कहा कि मोदी सरकार को विपक्षी सांसदों के स्थगन प्रस्ताव मंजूर करने चाहिए थे। उन्होंने कहा, ‘‘ हम हर दिन स्थगन प्रस्ताव पेश कर रहे थे। सरकार को उन्हें स्वीकार करना चाहिए था जिन पर मंत्री जवाब दे सकते थे। सरकार ने उन्हें स्वीकार नहीं करने का चयन किया।''
यह पूछे जाने पर कि क्या दिल्ली सेवा अध्यादेश के स्थान पर विधेयक अविश्वास प्रस्ताव पर चर्चा और मतदान के बाद लाया जाना चाहिए, तिवारी ने कहा ‘‘ यहां तक कि एमएन कौल और एसएल शकधर (द्वारा लिखी गई पुस्तक), जिसका मैंने जिक्र किया है, में स्पष्ट किया गया है कि एक बार अध्यक्ष अविश्वास प्रस्ताव स्वीकार कर लेता है,तो किसी अन्य विधायी कामकाज को प्राथमिकता नहीं दी जानी चाहिए।''
तिवारी ने जिक्र किया कि जुलाई 1966 में जब सरकार के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव लाया गया था तब तत्कालीन संसदीय कार्य मंत्री सत्येन्द्र नारायण सिन्हा ने इस तथ्य को स्वीकार किया था कि एक बार ऐसा प्रस्ताव सदन के सामने आने के बाद कोई अन्य महत्वपूर्ण कार्य नहीं किया जाना चाहिए। इस बारे में पूछे जाने पर कि अविश्वास प्रस्ताव स्वीकार किए जाने के 10 दिन के भीतर चर्चा कराने के नियम के बावजूद विपक्ष इस पर तत्काल चर्चा की मांग कर रहा था, उन्होंने कहा कि इसके पीछे यह कारण था कि जब मंत्रिपरिषद के प्रति विश्वास के अभाव को व्यक्त किया जा रहा है, तो इस बात का क्या औचित्य है कि सरकार विधेयक पेश कर रही है और उन्हें सदन से पारित करा रही है।
दिल्ली अध्यादेश को प्रतिस्थापित करने वाला विधेयक अविश्वास प्रस्ताव से पहले विचार के लिए लाया जाता है तो क्या विपक्षी दलों के गठबंधन ‘इंडियन नेशनल डेवलपमेंटल इन्क्लूसिव अलायंस' (इंडिया) के घटक दल बहस में भाग लेंगे या इसका विरोध करेंगे और प्रस्ताव पर चर्चा तक इसका बहिष्कार करेंगे? इस सवाल पर तिवारी ने कहा कि इस पर गठबंधन कोई फैसला करेगा।