भगवान शिव पर भी है मां सिद्धिदात्री की कृपा, आप भी उठाएं लाभ
punjabkesari.in Monday, Oct 07, 2019 - 07:30 AM (IST)
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सिद्धगन्धर्वयक्षाद्यैरसुरैरमरैरपि। सेव्यमाना सदा भूयात् सिद्धिदा सिद्धिदायिनी॥
मां दुर्गा जी की नौवीं शक्ति का नाम सिद्धिदात्री है। ये सभी प्रकार की सिद्धियों को देने वाली हैं। मार्कंडेय पुराण के अनुसार अणिमा, महिमा, गरिमा, लघिमा, प्राप्ति, प्राकाम्य, ईशित्व और वशित्व- ये आठ सिद्धियां होती हैं। ब्रह्मवैवर्त्त पुराण के श्रीकृष्ण जन्म खंड में यह संख्या 18 बताई गई है। इनके नाम इस प्रकार हैं : 1. अणिमा, 2. लघिमा, 3. प्राप्ति, 4. प्राकाम्य, 5. महिमा, 6. ईशित्व, वाशित्व, 7. सर्वकामावसायिता, 8. सर्वज्ञत्व, 9. दूरश्रवण, 10. परकायप्रवेशन, 11. वाक् सिद्धि, 12. कल्पवृक्षत्व, 13. सृष्टि, 14. संहारक सामर्थ्य, 15. अमरत्व, 16. सर्वन्यायकत्व, 17. भावना तथा 18. सिद्धि।
मां सिद्धिदात्री भक्तों और साधकों को ये सभी सिद्धियां प्रदान करने में समर्थ हैं। देवी पुराण के अनुसार, भगवान शिव ने इनकी कृपा से ही इन सिद्धियों को प्राप्त किया था। इनकी अनुकम्पा से ही भगवान शिव का आधा शरीर देवी का हुआ था। इसी कारण वह लोक में ‘अर्धनारीश्वर’ नाम से प्रसिद्ध हुए।
मां सिद्धिदात्री चार भुजाओं वाली हैं। इनका वाहन सिंह है। ये कमल पुष्प पर भी आसीन होती हैं। इनकी दाहिनी तरफ के नीचे वाले हाथ में चक्र, ऊपर वाले हाथ में गदा तथा बाईं तरफ के नीचे वाले हाथ में शंख और ऊपर वाले हाथ में कमल-पुष्प है। नवरात्र पूजन के नौवें दिन इनकी उपासना की जाती है। इस दिन शास्त्रीय विधि-विधान और पूर्ण निष्ठा के साथ साधना करने वाले साधक को सभी सिद्धियों की प्राप्ति हो जाती है। सृष्टि में कुछ भी उसके लिए अगम्य नहीं रह जाता। ब्रह्मांड पर पूर्ण विजय प्राप्त करने की सामर्थ्य उसमें आ जाती है।
प्रत्येक मनुष्य का यह कर्तव्य है कि वह मां सिद्धिदात्री की कृपा प्राप्त करने का निरंतर प्रयत्न करे। उनकी आराधना की ओर अग्रसर हो। इनकी कृपा से अनंत दुख रूप संसार से निर्लिप्त रहकर सारे सुखों का भोग करता हुआ, वह मोक्ष को प्राप्त कर सकता है। नव दुर्गाओं में मां सिद्धिदात्री अंतिम हैं। अन्य आठ दुर्गाओं की पूजा-उपासना शास्त्रीय विधि-विधान के अनुसार करते हुए भक्त दुर्गा पूजा के नौंवे दिन इनकी उपासना में प्रवृत्त होते हैं। इन सिद्धिदात्री मां की उपासना पूर्ण कर लेने के बाद भक्तों और साधकों की लौकिक-परालौकिक सभी प्रकार की कामनाओं की पूर्ति हो जाती है लेकिन सिद्धिदात्री मां के कृपापात्र भक्त के भीतर कोई ऐसी कामना शेष बचती ही नहीं है, जिसे वह पूर्ण करना चाहे।
वह सभी सांसारिक इच्छाओं और आवश्यकताओं से ऊपर उठकर मानसिक रूप में मां भगवती के दिव्य लोकों में विचरण करता हुआ उनके कृपा रस पीयूष का निरंतर पान करता हुआ, विषय-भोग शून्य हो जाता है। मां भगवती का परम सान्निध्य ही उसका सर्वस्व हो जाता है। इस परम पद को पाने के बाद उसे अन्य किसी भी वस्तु की आवश्यकता नहीं रह जाती। मां के चरणों का यह सान्निध्य प्राप्त करने के लिए हमें निरंतर नियम निष्ठ रहकर उनकी उपासना करनी चाहिए। मां भगवती का स्मरण, ध्यान, पूजन हमें इस संसार की असारता का बोध करवाते हुए वास्तविक परम शांतिदायक अमृत पद की ओर ले जाने वाला है।