54 करोड़ की आबादी पर बनी थीं 543 सीटें, 2034 तक नहीं बढ़ेंगी
punjabkesari.in Monday, Mar 18, 2019 - 12:37 PM (IST)

जालंधर(नरेश कुमार): देश की आबादी पिछले 48 साल में 54 करोड़ से बढ़ कर 130 करोड़ के पार जा चुकी है लेकिन क्या कभी आपने सोचा है कि आबादी में इतनी वृद्धि के बावजूद देश में लोकसभा सदस्यों की संख्या क्यों नहीं बढ़ रही? लोकसभा की सीटों की मौजूदा संख्या 1971 की जनगणना पर आधारित है और 1977 में देश में हुए चुनाव के दौरान निर्धारित की गई सीटों की संख्या आज भी वही है। उस समय देश की आबादी 54 करोड़ थी और हर राज्य में आबादी के हिसाब से लोकसभा सीटों का आबंटन हुआ था।
जब आबादी कम करना तमिलनाडु को पड़ा भारी
जब देश एक संविधान बना और रिप्रैजेंटेशन ऑफ पीपल एक्ट अस्तित्व में आया तो हर 10 लाख की आबादी में एक संसदीय क्षेत्र बनाने का फैसला हुआ। इसका नतीजा यह हुआ कि 1951 में 494 लोकसभा हलकों की जगह 1971 तक देश में 518 लोकसभा क्षेत्र बन गए। देश उस दौर में बढ़ रही आबादी की समस्या से जूझ रहा था लेकिन कई दक्षिणी राज्य आबादी पर काबू पाने के तौर-तरीकों पर गंभीरता से काम कर रहे थे। इसका परिणाम यह हुआ कि आबादी के लिहाज से इन प्रदेशों का प्रतिनिधित्व संसद में कम हो रहा था जबकि जिन राज्यों की आबादी बढ़ रही थी उनका प्रतिनिधित्व लोकसभा में बढ़ रहा था।
मद्रास ने आबादी नियंत्रण के लिए कईं कदम उठाए
1961 के लोकसभा चुनाव में मद्रास (अब तमिलनाडु) की आबादी 4 करोड़ 10 लाख थी तो उसके हिस्से में 41 लोकसभा सीटें थीं लेकिन मद्रास ने आबादी नियंत्रण के लिए कदम उठाए और 1967 में आबादी कम होकर 3 करोड़ 90 लाख रह गई तो उसकी सीटों की संख्या कम हो कर 39 हो गई, ऐसे में दक्षिणी राज्यों को इस बात की चिंता सता रही थी कि देश के लिए अहम फैसले लेने वाली संसद में उनकी सुनवाई नहीं हो पाएगी। इस समस्या का समाधान उस समय हुआ जब इंदिरा गांधी देश की प्रधानमंत्री थीं और देश में आपातकाल चल रहा था। 1976 में आपातकाल के दौरान संविधान के 42 संशोधन के जरिए देश में लोकसभा सीटों की संख्या फ्रीज कर दी गई। इसे फ्रीज करते समय 1971 की जनगणना को आधार बनाया गया और उस समय जिस राज्य की जितनी जनसंख्या थी उसे 10 लाख से विभाजित करके लोकसभा सीटों का आबंटन किया गया। उत्तर प्रदेश (संयुक्त) को उस समय 85 सीटें मिलीं। यदि उस वक्त सीटें फ्रीज न होतीं तो 2011 की जनगणना के आधार पर उत्तर प्रदेश में आज 20 करोड़ की आबादी के लिहाज से उत्तर प्रदेश में लोकसभा की 200 सीटें होतीं।
अगले 3 चुनाव तक नहीं बढ़ेंगी सीटें
1971 में फ्रीज की गई लोकसभा की सीटों पर समय-समय पर मंथन होता रहा है और समय-समय पर लोकसभा की सीटों की डीलिमिटेशन भी होती रही है। लोकसभा क्षेत्रों के मौजूदा स्वरूप का निर्धारण 2001 की जनगणना के आधार पर हुआ है। इसी जनगणना के आधार पर 2008 की डीलिमिटेशन को अंतिम रूप दिया गया था लेकिन डीलिमिटेशन के दौरान सीटों की सीमा निर्धारित की गई है और सीटों की संख्या के साथ छेड़-छाड़ नहीं हुई है। 2002 में किए गए संविधान संशोधन के दौरान यह फैसला लिया गया है कि 2026 तक लोकसभा सीटों की संख्या नहीं बढ़ाई जाएगी और इसके बाद 2031 में होने वाली जनगणना के आधार पर एक बार फिर से सीटों की संख्या पर विचार किया जा सकता है। यानी इस साल होने वाले आम चुनाव के अलावा 2024, 2029 के आम चुनाव भी 543 सीटों पर होंगे, 2031 में होने वाली जनगणना के नतीजे आने में समय लगेगा लिहाजा 2034 के चुनाव में भी सीटों की संख्या बढऩे की संभावना नहीं है।
1977 के चुनाव दौरान निर्धारित हुई राज्यवार लोकसभा सीटेें