लोकसभा चुनाव 2019: नजर रखनी होगी इन 10 पर

punjabkesari.in Monday, Mar 11, 2019 - 11:03 AM (IST)

नई दिल्ली(नीरज): चुनावी रणभेरी बज चुकी है और सबसे बड़ा सवाल यही है कि क्या मोदी सरकार की वापसी होगी? सत्तारूढ़ एनडीए के सामने 10 ऐसी चुनौतियां हैं, जो राह में रोड़े अटकाती दिख रही हैं। सत्ता में वापसी तभी संभव है, जब एनडीए इनकी काट ढूंढ़ ले...

PunjabKesari

दिल्ली में केजरीवाल
दिल्ली में लोकसभा की 7 सीटें हैं। 2014 के आम चुनाव में बीजेपी ने सभी सीटों पर जीत हासिल की थी, लेकिन पिछले विधानसभा चुनाव में अरविंद केजरीवाल के नेतृत्व में आम आदमी पार्टी के प्रदर्शन को देखते हुए बीजेपी के कान खड़े हैं। यह वजह है कि बीजेपी कई सीटों पर नए चेहरों को आजमाने पर विचार कर रही है। 

PunjabKesari

यूपी में बुआ-बबुआ 
उत्तर प्रदेश में दूसरे सभी राज्यों से ज्यादा लोकसभा की 80 सीटें हैं और इसीलिए कहा जाता है कि केंद्र की सत्ता का रास्ता यूपी से होकर निकलता है। 2014 में यूपी ने बीजेपी की झोली भरकर मोदी सरकार के गठन में अहम भूमिका निभाई थी। मोदी लहर में बीजेपी ने यूपी में 71 सीटें और सहयोगी अपना दल ने 2 सीटें जीती थी। सपा के हिस्से में 5 और कांग्रेस को 2 सीटें मिली थी। जबकि बीएसपी का सूपड़ा साफ हो गया था। इस लोकसभा चुनाव के पहले बीएसपी-एसपी ने पुरानी अदावतों को भुलाकर गठबंधन किया है और बुआ-बबुआ की जोड़ी बीजेपी के लिए सबसे बड़ी चुनौती बन गई है। राज्य में अपनी जमीन खो चुकी कांग्रेस ने भी प्रियंका गांधी को पूर्वी यूपी की जिम्मेदारी सौंपकर चुनौती पेश करने की कोशिश की है, साथ ही ‘बैक चैनल’ से बीएसपी-एसपी गठबंधन से भी बातचीत जारी है। यानी कि इस बार विपक्षी एकता की व्यूह को भेद पाना एनडीए के लिए आसान नहीं होगा।  "
 

PunjabKesari

पश्चिम बंगाल में दीदीगीरी
पश्चिम बंगाल में लोकसभा की 42 सीटें हैं और बीजेपी की चुनावी रणनीति है कि यूपी के संभावित नुकसान की भरपाई इस बार पश्चिम बंगाल में की जाए। त्रिस्तरीय निकाय चुनाव में प्रदर्शन ने बीजेपी के हौसले को बढ़ाया है, लेकिन मुख्यमंत्री ममता बनर्जी की दीदीगीरी की तोड़ निकाल पाना बीजेपी के लिए आसान नहीं है। मोदी सरकार के खिलाफ ममता बनर्जी विपक्षी एकता की धुरी बनी हुई हैं। वहीं, प्रदेश में कभी सबसे बड़ी ताकत रहे वामदल इस बार कांग्रेस के साथ समझौता कर आम चुनाव को त्रिकोणीय बनाने की कोशिश में हैं। 2014 में देश में मोदी लहर के बावजूद टीएमसी ने 34 सीटें जीती थी। कांग्रेस को 4, बीजेपी 2 और वाममोर्चे को 2 सीटें मिली थी। 

PunjabKesari

महाराष्ट्र में पवार
महाराष्ट्र में लोकसभा की 48 सीटें हैं। राज्य में बीजेपी अगुवाई वाली सरकार है, लेकिन राजनीति के पुराने धुरंधर और एनसीपी सुप्रीमो शरद पवार एनडीए के लिए चुनौती खड़ी कर सकते हैं। एनसीपी ने इस बार भी कांग्रेस के साथ गठबंधन का ऐलान कर दिया है। बीजेपी के लिए राहत की बात यह है कि अलग राग अलापने के बावजूद शिवसेना ने आखिरकार गठबंधन में बने रहने का फैसला लिया है। 2014 के लोकसभा चुनाव में राज्य में बीजेपी ने 23 और शिवसेना ने 18 सीटें जीती थी। एनसीपी के खाते में 4 और कांग्रेस ने 2 सीटें जीती थी। स्वाभिमानी पक्ष को 1 सीट मिली थी।

बिहार में महागठबंधन 
बिहार में लोकसभा की 40 सीटें हैं। राज्य में जेडीयू-बीजेपी गठबंधन सरकार के बावजूद विपक्ष का महागठबंधन (आरजेडी, कांग्रेस, आरएलएसपी, हम और विकासशील इंसान पार्टी) इस लोकसभा चुनाव में एनडीए के सामने चुनौती पेश कर सकता है। भ्रष्टाचार मामले में आरजेडी सुप्रीमो लालू प्रसाद यादव जेल की सजा भुगत रहे हैं, पर प्रदेश में उनकी राजनीतिक ताकत को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता है। मोदी सरकार के साथी रहे उपेंद्र कुशवाहा आरजेडी गठबंधन में हैं। 2014 के आम चुनाव में जेडीयू ने एनडीए से नाता तोड़ लिया था, लेकिन एनडीए के लिए सबसे बड़ी राहत की बात यह कि जेडीयू की गठबंधन में वापसी हो गई है। 

ओडीशा में नवीन 
प्रदेश में लोकसभा की 21 सीटें हैं और 19 साल से राज्य की सत्ता पर काबिज बीजेडी इस आम चुनाव में भी एनडीए के सामने चुनौती है। हालांकि, बीजेपी की भरपूर कोशिश इस बार बीजेडी को पछाडऩे की है। बीजेडी ना तो एनडीए के साथ है, ना ही यूपीए के। 2009 में बीजेडी ने एनडीए से नाता तोड़ा था। 2009 में बीजेडी ने 14 सीटें और 2014 में देशभर में मोदी लहर के बावजूद 20 सीटें बटोरने में कामयाबी पाई थी। बीजेपी को उम्मीद है कि प्रदेश की सत्ता विरोधी लहर का लाभ मिलेगा।

गहलोत और कमलनाथ 
राजस्थान में लोकसभा की 25 और मध्यप्रदेश में 29 सीटें हैं। इन दोनों राज्यों में बीजेपी की सत्ता थी और 2014 के लोकसभा चुनाव में पार्टी को जबरदस्त जीत मिली थी। 2014 में राजस्थान की सभी सीटें बीजेपी के खाते में गई थी, वहीं मध्यप्रदेश में 26 सीटें मिली थी। मध्यप्रदेश की 3 सीटें कांग्रेस के हिस्से में थी। पिछले साल हुए विधानसभा चुनावों में राजस्थान और मध्यप्रदेश की सत्ता बीजेपी से छिटक कर कांग्रेस के हाथों चली गई। अब राजस्थान में अशोक गहलोत और मध्यप्रदेश में कमलनाथ की सरकार है और एनडीए के लिए 2014 का प्रदर्शन दोहरा पाना काफी मुश्किल होगा।

आंध्रप्रदेश में चंद्रबाबू
आंध्र में लोकसभा की 25 सीटें हैं और सत्ताधारी टीडीपी के मुख्यमंत्री चंद्रबाबू नायडु इस बार बीजेपी विरोधी मोर्चे में पूरी तरह सक्रिय हैं। 2014 का चुनाव बीजेपी और टीडीपी ने साथ मिलकर लड़ा था, लेकिन पिछले साल राज्य को विशेष दर्जा देने की मांग उठाकर टीडीपी ने एनडीए से नाता तोड़ लिया। इसके बाद से तलवारें खिचीं हुई हैं। वहीं, वाईएसआर कांग्रेस सुप्रीमो जगनमोहन रेड्डी ने अभी तक एनडीए और यूपीए से दूरी दिखाने की कोशिश की है। 2014 में संयुक्त आंध्रप्रदेश की 42 सीटों में से टीडीपी ने 16 सीटें और बीजेपी ने 3 सीटें जीती थी। टीआरएस को 11, वाईएसआर कांग्रेस को 9 और कांग्रेस को 2 सीटें मिली थी।

तेलंगाना में राव
नए राज्य तेलंगाना में लोकसभा की 17 सीटें हैं। सत्ताधारी टीआरएस ने हाल में ही हुए विधानसभा चुनाव में जोरदार जीत हासिल करते हुए वापसी की। मुख्यमंत्री के. चंद्रशेखर राव ऐसे नेताओं में शामिल हैं, जो कि केंद्र में मोदी सरकार की जगह तीसरे मोर्चे की सरकार के लिए सबसे पहले अपनी सक्रियता दिखाई। उन्होंने  कई क्षेत्रीय दलों से मुलाकात भी की थी।   

तमिलनाडु में स्टालिन 
तमिलनाडु में लोकसभा की 39 सीटें हैं। सत्ताधारी एआईएडीएमके की सुप्रीमो रहीं जयललिता और मुख्य विपक्षी डीएमके के सुप्रीमो रहे करुणानिधि के निधन के बाद राज्य के राजनीतिक काफी हालात बदले हुए हैं। एआईएडीएमके ने बीजेपी के साथ समझौता कर चुनाव लडऩे का ऐलान किया है। बीजेपी  5 सीटों और बाकी सीटों पर एआईएडीएमके के उम्मीदवार उतारे जाएंगे। डीएमके सुप्रीमो एमके स्टालिन ने 20 सीटों पर उम्मीद खड़े करने का ऐलान किया है, जबकि बाकी सीटें कांग्रेस, सीपीएम, सीपीआई, वीसीके, आईयूएमएल, केएनएमडीके और आईजेके के हिस्से में रहेंगी। 2014 के आम चुनाव में एआईएडीएमके ने 37 सीटें जीतकर विरोधियों का सफाया कर दिया था। बीजेपी को 1 सीट मिली थी।

 


सबसे ज्यादा पढ़े गए

Anil dev

Recommended News

Related News