लता दीदी ने हमारे लिए न शादी की, न बच्चे पैदा किए और न ही खुद का घर बनाया हम उन्हें कुछ नहीं दे सकेः मीना मंगेशकर
punjabkesari.in Monday, Feb 07, 2022 - 01:03 PM (IST)

नेशनल डेस्क: भारत की स्वर कोकिला लता मंगेशकर का 6 फरवरी को 92 वर्ष की आयु में निधन हो गया जिससे पूरे देश में शोक की लहर है। वहीं रविवार को मुंबई के शिवाजी पार्क में उनका अंतिम संस्कार किया गया जहां पीएम मोदी समेत कई बड़ी दिग्गज हस्तियां श्रद्धांजलि देने के लिए पहुंची।
अपनी दीदी की ज़िंदगी के इस सतत संघर्ष और योगदान को याद करने के लिए उनकी छोटी बहन, मीना मंगेशकर खाडीकर ने दो बरस पहले यानी लता जी के 90वें जन्मदिन पर उनकी स्मृतियों को एक किताब की शक्ल में लता जी को समर्पित किया था। जिसमें मीना मंगेशकर खाडीकर ने उनके लिए किताब 'दीदी और मैं' लिखी थी।
इसमें उन्होंने लता दीदी के संघर्षों के बारे में बताया था। मीना ताई ने बताया कि बाबा के बीमार पड़ने के बाद नाटक कंपनी बंद हो गई थी, जिसके बाद हम पुणे आ गए थे। 41 की उम्र में वे हमें छोड़कर चले गए, उस वक्त हम पांच लोग और उनकी देखभाल करने वाला कोई नहीं था। हम सब की ज़िंदगी एक अजीब से अंधेरे के मुहाने पर खड़ी दिख रही थी।
उस वक्त दीदी आगे आकर खड़ी हुई, 13 साल की उम्र से उन्होंने काम करना शुरू किया, वे फिल्मों में काम करती थी ताकि घर का राशन पानी चल सके। हालांकि उन्हें काम करना बिलकुल भी पसंद नहीं था, उनका पहला प्यार तो संगीत था।
दीदी इधर-उधर म्यूजिक डायरेक्टर से मिलती, उनको अपने गाने सुनाती तब हरिशचंद्र बाली ने उन्हें मौका दिया। दीदी ने उनके लिए दो गाने गाएं, फिर जाकर सबको पता चला कि दीदी गाना भी गाती है।
मीना ताई ने इस पुस्तक के जरिए बताया कि दीदी ने आजतक कभी हमसे अपनी मायुसी या दुख जाहिर नहीं किया। यकीनन वे कई बार टूटी भी होंगी, लेकिन हमारे सामने वे हमेशा हंसती रहीं, कभी अपनी तकलीफों को हम लोगों के सामने जाहिर नहीं होने दिया।
वो वक्त इतना कठिन था और बाहर के लोगों ने क्या कुछ नहीं कहा, लेकिन उन्होंने बाहर की निगेटिविटी हम तक कभी नहीं आने दी, आखिर तक वे हमें वैसे ही संभालती रहीं, जैसे पहले संभाला था।
उन्होंने हम भाई बहनों को मां-बाप की तरह संभाला। बाबा के जाने के बाद बाबा की तरह खड़ी रही और मां के जाने के बाद मां की तरह संभाला।
लता दीदी ने हमारे लिए न शादी की, न बच्चे पैदा किए और न ही खुद का घर बनाया। बदले में उन्होंने हमसे कुछ भी नहीं मांगा. उनकी तबीयत भी खराब हो जाए, तो भी नहीं कहती हैं कि मेरे लिए कुछ करो, मैं उन्हें कुछ नहीं दे सकी, इसलिए मैंने सोचा कि उनके जन्मदिन पर उन्हें यह किताब भेंट करूं।