पिछले दो सालों में दलितों के खिलाफ मामलों में हुई है 1 प्रतिशत की बढ़ोत्तरी

punjabkesari.in Tuesday, Apr 03, 2018 - 06:02 PM (IST)

नेशनल डेस्कः सुप्रीम कोर्ट के फैसले के खिलाफ सोमवार को पूरे देश में दलित संगठनों द्वारा भारत बंद का आयोजन किया गया था। इस प्रदर्शन के चलते कई जगह हिंसा भड़क गई और 13 लोगों की जान चली गई। राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड के मुताबिक वर्ष 2014-16 में मध्यप्रदेश, हरियाणा, उत्तर प्रदेश और गुजरात में अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के लोगों के खिलाफ अपराधों में बढ़ोत्तरी हुई है। जिसके बाद देश भर में प्रदर्शन किया गया था, इसमें तथाकथित कुुछ राजनीतिक पार्टियों का समर्थन भी मिला था।

दलितों के खिलाफ अपराध में एक प्रतिशत की बढ़ोत्तरी
राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड के मुताबिक अनूसूचित जातियों और जनजातियों के खिलाफ मध्य प्रदेश में 49, हरियाणा में 35, उत्तर प्रदेश में 29, गुजरात में 21 और केरला में 14 प्रतिशत मामले बढ़े हैं। झारखंड में 42, छत्तीसगढ़ में 32, बिहार में 28, राजस्थान और तमिलनाडु में 14 प्रतिशत अपराध में कमी दर्ज की गई है। पूरे भारत में दलितों के खिलाफ होने वाले अपराध में एक प्रतिशत की बढ़ोत्तरी दर्ज की गई है।

रोहित वेमुला के बाद हुए देशभर में विरोध प्रदर्शन
जनवरी 2016 में पीएचडी स्कॉलर रोहित वेमुला की आत्महत्या के बाद देशभर में विरोध प्रदर्शन हुए। उसके बाद गुजरात के ऊना में दलितों की पिटाई का मामला सामने आया, जिससे दलित समुदाय नाराज हो गया। वहीं गत वर्ष उत्तर प्रदेश के सहारनपुर में दलितों और पुलिस के बीच हिंसक झड़प हो गई। जिसमें दलित संगठन भीम आर्मी के संस्थापक चंद्रशेखर आजाद को दंगा फैलाने के आरोप में गिरफ्तार किया गया। गुजरात चुनाव के दौरान कई दलित नेताओं ने राजनीति के क्षेत्र में कदम रखा, जिसमें जिग्नेश मेवानी का नाम भी शामिल है और जनवरी 2018 में महाराष्ट्र के कोरेगांव में हुए दलित दंगे के दौरान एक शख्स की मौत हो गई।

क्या था सुप्रीम कोर्ट का फैसला
सुप्रीम कोर्ट ने 20 मार्च को एससी/एसटी एक्ट पर सुनवाई करते हुए फैसला दिया था कि एससी/एसटी मामले में तत्काल गिरफ्तारी नहीं की जाएगी और एक्ट के तहत दर्ज होने वाले केस में अग्रिम जमानत भी मिल सकेगी। कोर्ट ने कहा था कि एससी/एसटी एक्ट के अंतर्गत मामलों में तुरंत गिरफ्तारी के बजाय पुलिस को सात दिनों के भीतर जांच करनी होगी और उस जांच के आधार पर एक्शन लेगी। इसके अलावा सरकारी अधिकारी की सीधे गिरफ्तारी नहीं होगी। इसके लिए उच्चाधिकारी की मंजूरी लेनी होगी। वहीं गैर सरकारी कर्मी को गिरफ्तार करना है तो एसएसपी की मंजूरी लेना जरूरी होगा। अदालत के फैसले के बाद 2 अप्रैल को दलित विधायकों ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से मुलाकात की। जिसके बाद सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में पुनर्विचार याचिका दाखिल की। वहीं दूसरी ओर दलित संगठनों ने 2 अप्रैल को देशभर में भारत बंद कर प्रदर्शन किया।


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Yaspal Singh

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