Jammu-Kashmir: बालकृष्ण उस दिन न थामते बंदूक...तो राजौरी में एक साथ उठती कईं अर्थियां
punjabkesari.in Thursday, Jan 05, 2023 - 02:55 PM (IST)

नेशनल डेस्क: आतंकियों ने जम्मू-कश्मीर के राजौरी में पिछले दिनों तीन घरों में ओपन फायरिंग की जिससे दो बच्चों समेत छह लोगों की मौत हो गई थी और करीब 11 लोग घायल हुए थे। दहशतगर्दों के हाथों में बड़ी-बड़ी बंदूकें थीं. वो तीन घरों को निशाना बना चुके थे और चौथे की तरफ आगे बढ़ रहे थे। तभी राजौरी के बाल कृष्ण ने ऐसी हिम्मत दिखाई की बुजदिल आतंकी जंगलों की तरफ भाग गए।
गोलियों की आवाज सुन उठाई अपनी राइफल
आतंकी तीन घरों में कोहराम मचा चुके थे, और चौथे घर की तरफ बढ़ रहे थे तभी बालकृष्ण ने गोलियों की आवाज सुनी और देखा कि आतंकी उनके घर की तरफ बढ़ रहे हैं। तभी बालकृष्ण ने अपनी रायफल से दो फायर किए। आतंकियों को लगा कि सुरक्षाबलों ने उनको घेर लिया है। फायर की आवाज सुन आतंकी जंगल की तरफ भाग गए।
बचाई कई जानें
बालकृष्ण ने कहा कि उसके पास राइफल का लाइसेंस नहीं था और उनको कभी इसकी जरुरत पड़ेगी ऐसा सोचा भी नहीं था। बालकृष्ण ने बताया कि नए साल की शाम 42 वर्षीय बालकृष्ण अपनी कपड़े की दुकान से घर लौटे ही थे कि उन्होंने गोलियों की आवाज सुनी। बालकृष्ण ने कहा, ‘मैंने अपनी राइफल उठाई और बाहर निकल गया, मैंने दो बंदूकधारियों को पड़ोस में घूमते देखा, वे मेरे घर के बहुत करीब थे। मैंने दो राउंड फायरिंग की तो दहशतगर्द घबरा गए और पास के जंगलों में भाग गए। बालकृष्ण की हिम्मत से पड़ोस के लोग भी घरों से बाहर निकले और घायलों को तुरंत अस्पताल पहुंचाया। पुलिस और ऊपरी डांगरी पंचायत के सरपंच दर्शन शर्मा का कहना है कि अगर बालकृष्ण तुरंत ऐसा नहीं सोचते और डर जाते तो शायद हताहतों की संख्या कहीं अधिक होती। बालकृष्ण के गोलीबारी करने के बाद उग्रवादी जंगलों में भाग गए, इससे ग्रामीणों को अपने घरों से बाहर निकलने और घायलों को देखने में मदद मिली।
जिंदगी में दूसरी बार उठाई बंदूक
बाल कृष्ण ने बिना लाइसेंस वाली 303 राइफल का इस्तेमाल दूसरी बार किया। पहली बार 1998-99 में सेना द्वारा आयोजित एक शस्त्र प्रशिक्षण शिविर में उन्हें और वीडीसी के अन्य सदस्यों को जम्मू-कश्मीर पुलिस ने बंदूकें दी थीं। बालकृष्ण ने बताया कि 1998-99 में सेना ने प्रशिक्षण के दौरान सभी को 100 राउंड कारतूस दिए गए। हमने सेना के प्रशिक्षण शिविर में 10 राउंड का इस्तेमाल किया, बाकी कारतूस बच गए।
सेना ने दी ट्रेनिंग
बाल कृष्ण ने 24 साल से रायफल का इस्तेमाल नहीं किया। 1990 के दशक में घाटी अशांत थी, आए दिन आतंकी और उग्रवादी कश्मीरियों की हत्या कर रहे थे। उस वक्त जम्मू के 10 जिलों में अपनी और आसपास के इलाके की रक्षा के लिए VDC (Village Defence Committees) की स्थापना की गई थी। गांव के कुछ लोगों को सेना ने ट्रेनिंग दी थी और हथियार भी मुहैया कराए थे। 2002 के बाद इसने धीरे-धीरे अपना दबदबा खो दिया। डांगरी में भी शांति कायम रहने पर कुछ साल पहले जिला प्रशासन ने घोषणा की कि 60 से ऊपर के लोगों को अपने हथियार वापस करने होंगे। बालकृष्ण का कहना है कि चूंकि उसकी उम्र 60 साल से कम थी, इसलिए पुलिस ने उसे राजौरी पुलिस स्टेशन में एक पासपोर्ट फोटो जमा करने के लिए कहा, ताकि उसे अपनी बंदूक का लाइसेंस जारी किया जा सके। उन्होंने बताया कि उन्हें अभी तक अपना लाइसेंस नहीं मिला है जबकि लगभग 8-9 महीने पहले राजौरी पुलिस ने अपने हथियार के साथ पुलिस स्टेशन आने के लिए कहा था। इसकी जांच करने के बाद अधिकारी ने इसे साफ रखने के निर्देश के साथ मुझे बंदूक वापस कर दी।