सवर्ण आरक्षण: क्या लोकसभा चुनाव में इससे भाजपा को फायदा होगा?

punjabkesari.in Tuesday, Jan 08, 2019 - 06:15 PM (IST)

नेशनल डेस्क (मनोज कुमार झा) : भाजपा नीत राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन ने आर्थिक तौर पर कमजोर सवर्णों के लिए आरक्षण का बिल पेश करने के बाद इसके लिए जरूरी संविधान संशोधन विधेयक भी पेश कर दिया है, जबकि इसे पारित करा पाना उसके लिए असंभव ही होगा। संविधान में संशोधन का विधेयक इसलिए पेश किया गया, क्योंकि संविधान में आर्थिक आधार पर आरक्षण दिए जाने का कोई प्रावधान नहीं है।

सवर्णों को आर्थिक आधार पर आरक्षण दिए जाने के भाजपा के प्रस्ताव का चुनावी मौसम को देखते हुए कांग्रेस समेत तमाम दलों ने विरोध नहीं किया, यद्यपि इसे चुनावी स्टंट जरूर बताया। यह अलग बात है कि मोदी सरकार ने पहली बार आर्थिक आधार पर सवर्णों को आरक्षण देने के लिए संसद में बिल पेश किया है, पर आर्थिक आधार पर आरक्षण दिए जाने की बात पहले से उठती रही है।

PunjabKesariउल्लेखनीय है कि उत्तर प्रदेश में लोकसभा की सर्वाधिक सीटें हैं, जिनमें 10 फीसदी सीटें सवर्ण बहुल हैं। उत्तर प्रदेश में सवर्णों की संख्या सबसे ज्यादा है। ये कुल आबादी का 20 प्रतिशत हैं। सवर्णों में भी ब्राह्मण सबसे ज्यादा हैं जो कुल आबादी का करीब 10 प्रतिशत हैं। भाजपा मुख्य रूप से सवर्णों और ब्राह्मणों की ही पार्टी मानी जाती है। भाजपा के करीब तमाम नेता, खासकर उत्तर प्रदेश के ऊंची जातियों से ही संबंध रखने वाले हैं। भाजपा नेतृत्व को यह उम्मीद है कि सवर्णों को आर्थिक आधार पर आरक्षण दिए जाने की बात कर वह सवर्णों का वोट आसानी से ले सकती है। साथ ही, इसका दूसरे राज्यों में भी उसे फायदा मिल सकता है, पर सभी को यह भली-भांति मालूम है कि आर्थिक आधार पर सवर्णों को आरक्षण दिला पाना संभव नहीं होगा।

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गौरतलब है कि 8 जनवरी को संसद के सत्र आखिरी दिन है। यह मोदी सरकार के लिए भी संसद का आखिरी सत्र है। लेकिन सरकार ने सामान्य वर्ग के आर्थिक रूप से कमजोर लोगों को शिक्षा एवं नौकरियों में 10 आरक्षण प्रतिशत आरक्षण प्रदान करने संबंधी संविधान 124वां संशोधन विधेयक 2019 पेश कर दिया। इसे मोदी सरकार का मास्टरस्ट्रोक माना जा रहा है, क्योंकि चुनाव प्रचार के दौरान भाजपा साफ तौर पर कहेगी कि उसने सवर्णों को आरक्षण दिलाने के लिए बिल तो पेश किया ही, इसके लिए जरूरी संविधान संशोधन विधेयक भी पेश कर दिया।

PunjabKesariउल्लेखनीय है कि मंडल कमीशन लागू होने के बाद 1991 में नरसिम्हा राव सरकार ने अगड़ी जातियों में गरीबों के लिए 10 प्रतिशत आरक्षण की शुरुआत की, लेकिन 1992 में कोर्ट ने उसे निरस्त कर दिया था। इसके पहले 1978 में बिहार के तत्कालीन मुख्यमंत्री कर्पूरी ठाकुर ने पिछड़ी जातियों को 25 प्रतिशत आरक्षण देने के बाद सवर्णों को भी 3 प्रतिशत आरक्षण दिया था, पर कोर्ट ने इसे भी खत्म कर दिया था। जहां तक राज्यों का सवाल है, 2016 में गुजरात सरकार ने सामान्य वर्ग के आर्थिक रूप से पिछड़े लोगों को 10 फीसदी आरक्षण दिए जाने की घोषणा की थी, लेकिन गुजरात हाईकोर्ट ने इसे असंवैधानिक बताते हुए निरस्त कर दिया था। 2015 में राजस्थान सरकार ने भी सामान्य वर्ग के आर्थिक दृष्टि से कमजोर लोगों को सरकारी नौकरियों में 17 प्रतिशत आरक्षण देने का वादा किया था, पर कोर्ट ने इसे असंवैधानिक करार दिया था।
PunjabKesariबहरहाल, माना यह जा रहा है कि सवर्णों को आरक्षण मिलना भले ही संवैधानिक दृष्टि से संभव नहीं हो सकेगा और यह एक शिगूफा होकर ही रह जाएगा, पर भाजपा को इसका लाभ जरूर मिलेगा। यह भी नहीं भूला जा सकता कि एससी/एसटी एक्ट लागू हो जाने के कारण सवर्ण मतदाताओं में भाजपा के प्रति नाराजगी रही है और विधानसभा चुनावों में भी इसका असर 'नोटा' के रूप में देखने को मिला है। विधानसभा चुनावों में नोटा ने भाजपा को अच्छा-खासा नुकसान पहुंचाया है। इसलिए सवर्णों को आर्थिक आधार पर आरक्षण दिए जाने के लिए बिल पेश किए जाने को इस रूप में देखा जा रहा है कि भाजपा नाराज सवर्ण मतदाताओं को मनाना चाहती है। वैसे भी भाजपा का आधार सवर्णों में रहा है। 

PunjabKesariउल्लेखनीय है कि 2004 के लोकसभा चुनाव में भाजपा को सामान्य वर्ग के 35.3 प्रतिशत वोट मिले थे, वहीं कांग्रेस को 25.5 प्रतिशत वोट मिले थे। 2014 में भाजपा को सामान्य वर्ग के सबसे ज्यादा 47.8 प्रतिशत वोट मिले, जबकि कांग्रेस को सिर्फ 13.8 प्रतिशत ही मत मिले। समझा जा सकता है कि सवर्ण मतों का भाजपा के लिए कितना महत्व है। ये जहां अगले लोकसभा चुनाव में भाजपा की नैया को पार लगा सकते हैं, वहीं इनका मत नहीं मिलने से भाजपा को अपने परंपरागत वोटों का भी नुकसान उठाना पड़ेगा। 


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