bander apna dost: AI से वीडियो बनाकर एक साल में 38 करोड़ रुपये की कमाई!
punjabkesari.in Wednesday, Dec 31, 2025 - 02:36 PM (IST)
नेशनल डेस्क: बिना किसी महंगे कैमरे, बिना किसी एक्टर और बिना किसी आलीशान स्टूडियो के कोई सालाना 38 करोड़ रुपये कैसे कमा सकता है? सुनने में यह किसी फिल्मी स्क्रिप्ट जैसा लगता है, लेकिन भारत के एक यूट्यूब चैनल 'बंदर अपना दोस्त' ने इसे हकीकत बना दिया है। यह कहानी है उस 'डिजिटल क्रांति' की, जहाँ इंसान सिर्फ बटन दबाता है और पैसा आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) बनाती है।
इंटरनेट की इस नई और चौंकाने वाली दुनिया के मुख्य पहलू यहां दिए गए हैं:
1. 'AI Slop': क्वालिटी नहीं, क्वांटिटी का खेल
इंटरनेट की भाषा में इसे 'AI स्लोप' कहा जा रहा है। यह ऐसा कंटेंट है जो मशीनों द्वारा थोक के भाव में तैयार किया जाता है। एक रिसर्च के मुताबिक, दुनिया भर में ऐसे लगभग 278 बड़े चैनल हैं, जिन्होंने मिलकर 63 अरब व्यूज बटोरे हैं। इनका फॉर्मूला सरल है—हजारों वीडियो, एक जैसा पैटर्न और एल्गोरिदम की पसंद।
2. 'बंदर अपना दोस्त' की जादुई कमाई
भारत से संचालित होने वाला यह चैनल AI वीडियो के जरिए करोड़ों की छप्परफाड़ कमाई कर रहा है। इसके वीडियो में अजीबोगरीब किरदार, फनी हरकतें और तेज कट्स होते हैं। बच्चों को पसंद आने वाला यह मासूम कंटेंट असल में एक बेहद सोची-समझी मशीनरी का हिस्सा है, जो साल भर में लगभग 38 करोड़ रुपये का बिजनेस खड़ा कर चुका है।
3. एल्गोरिदम बनाम असली क्रिएटर्स
यूट्यूब या फेसबुक के सिस्टम को इससे फर्क नहीं पड़ता कि वीडियो किसने बनाया है। उसे बस 'इंगेजमेंट' चाहिए। AI वीडियो इतने तेज और आकर्षक होते हैं कि लोग चाहकर भी स्क्रॉल करना बंद नहीं कर पाते। नतीजा यह है कि मेहनत से स्क्रिप्ट लिखने और शूट करने वाले असली क्रिएटर्स अब मशीनों से पिछड़ रहे हैं। AI कभी थकता नहीं और वह दिन भर में दर्जनों वीडियो रिलीज कर सकता है।
4. मानवीय संवेदनाओं से खिलवाड़
ये AI चैनल अक्सर इंसानी दिमाग की कमजोरियों को पकड़ते हैं। कभी जरूरत से ज्यादा 'क्यूटनेस' दिखाई जाती है तो कभी अजीब विजुअल्स। हमारा दिमाग प्राकृतिक रूप से ऐसी चीजों पर रुक जाता है, जिसका फायदा उठाकर ये चैनल अपनी जेबें भर रहे हैं। खासकर भारत जैसे देशों में जहाँ सस्ता डेटा और शॉर्ट वीडियो की भारी खपत है, वहां यह ट्रेंड आग की तरह फैल रहा है।
5. कैसा होगा इंटरनेट का भविष्य?
सबसे बड़ा सवाल यह है कि क्या आने वाले समय में इंटरनेट केवल मशीनी कचरे (Slop) से भर जाएगा? क्या रचनात्मकता की जगह केवल रफ्तार ले लेगी? जब मशीनें खुद ही कहानियां सुनाने और खुद ही पैसे बनाने लगें, तो दर्शकों को यह तय करना होगा कि वे क्या देख रहे हैं और उसका उनकी सोच पर क्या असर पड़ रहा है।
