ये हैं भारत के पहले ‘जेम्स बांड’, नाम सुनते ही कांपते थे दुश्मन!(Pics)
punjabkesari.in Monday, Apr 04, 2016 - 02:35 PM (IST)

नई दिल्ली: भारतीय खुफिया एजेंसी रॉ का नाम पूरी दुनिया जानती है। लेकिन क्या आपको पता है कि रॉ आज जिस मुकाम पर है, उसमें इस खुफिया विंग के पहले चीफ रामनाथ काओ की बड़ी भूमिका है। जानकारी के मुताबिक, 1962 में चीन से युद्ध में देश का राजनीतिक नेतृत्व यह तय ही नहीं कर पाया था कि अपनी सेना को कहां और कैसे तैनात करें। इसका खामियाजा यह हुआ कि भारत युद्ध हार गया। भारत को 1383 जवानों के साथ-साथ अपनी 38,000 वर्ग किलोमीटर जमीन भी खोनी पड़ी।
ऐसे हुई थी RAW की स्थापना
तीन साल पहले चीन से युद्ध हारने के बाद अब देश फिर से एक युद्ध झेलने की हालत में नहीं था। पाकिस्तान ने इसी बात का फायदा उठाते हुए 1965 में भारत को ‘ऑपरेशन जिब्राल्टर’ के जरिए युद्ध के लिए उकसाया, जोकि भारत के लिए एक वेकअप कॉल थी। तब देश की तेजतर्रार आईपीएस ऑफीसर रामनाथ काओ इस नतीजे पर पहुंचे कि देश को अब ऐसे संगठन की जरूरत है जो देश के सामरिक हितों का ध्यान रखे। इसके बाद रॉ यानि रिसर्च एंड एनालिसिस विंग की स्थापना की गई, जिसकी कमान रामनाथ काओ को सौंपी गई।
काओ की दूरदर्शिता की कायल थी दुनिया
स्वभाव से शांत और दूरदर्शी रामनाथ काओ की लोकप्रियता विदेशों तक थी। उनके प्रशंसकों में जॉर्ज एच डब्ल्यू बुश भी थे, जो उस समय सीआईए के निदेशक थे। काओ के नजदीकी बताते हैं कि भारत ने रामनाथ काओ जैसा खुफिया एजेंट पहले कभी नहीं देखा। 1971 के युद्ध में भारत की रणनीति में रॉ ने बड़ी भूमिका अदा की। 71 में पाकिस्तान की हार के बाद काओ का कद दिल्ली में और बढ़ गया। काओ की दूरदर्शिता का ही नतीजा था कि 62 में हार के बाद भी चीन को सिक्किम हड़पने से बचा लिया।
काओ:- 1918 से 2002 तक
रामनाथ काओ की टीम को पूरी दुनिया काओबॉयज के नाम से जानती थी। ज्वाइंट इंटेलिजेंस कमेटी के चेयरमैन के. एन. दारूवाला काओ की तारीफ करते हुए बताते हैं कि काओ के कॉन्टैक्ट्स पूरे एशिया में थे। अफगानिस्तान, चीन, ईरान जैसे देशों में किसी भी काम के लिए उनका एक फोन ही काफी होता था। बनारस के रहने वाले काओ का जन्म 10 मई 1918 में हुआ था। उन्होंने इलाहाबाद यूनिवर्सिटी से ग्रेजुएट की थी और 20 जनवरी 2002 को दिल्ली में उनका निधन हो गया था।