ग्लोबल हंगर इंडेक्स में भारत का सबसे खराब रैंक, पाकिस्तान और बांग्लादेश से भी फिसला

punjabkesari.in Wednesday, Oct 16, 2019 - 11:11 AM (IST)

नई दिल्ली: वैश्विक भूख सूचकांक (ग्लोबल हंगर इंडेक्स) ने भारत को लेकर बहुत चौंकाने वाले आंकड़े पेश किए हैं। भारत ग्लोबल हंगर इंडेक्स में 102वें स्थान पर पिछड़ गया है, यह दक्षिण एशियाई देशों का सबसे निचला पायदान है। भारत को छोड़कर बाकि दक्षिण एशियाई देश 66वें से 94 स्थान के बीच हैं। भारत ब्रिक्स (ब्राजील, रूस, इंडिया, चीन और साउथ अफ्रीका) के बाकी देशों से बहुत पीछे है। ब्रिक्स का सबसे खराब प्रदर्शन करने वाला देश दक्षिण अफ्रीका 59वें स्थान पर है।

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पाकिस्तान से भी पीछे भारत
साल 2015 में भारत की ग्लोबल हंगर इंडेक्स (जीएचआई) रैंकिंग 93 थी। इतना ही नहीं तब पाकिस्तान भारत से नीचे था लेकिन इस साल यानि कि 2019 मेें पाकिस्तान 94वें स्थान पर आ गया है। 2014 से 2018 के बीच जुटाए गए आंकड़ों से तैयार ग्लोबल हंगर इंडेक्स विभिन्न देशों में कुपोषित बच्चों की आबादी, उनमें लंबाई के अनुपात में कम वजन या उम्र के अनुपात में कम लंबाई वाले पांच वर्ष तक के बच्चों का प्रतिशत और पांच वर्ष तक के बच्चे की मृत्यु दर पर आधारित हैं।

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भारत में भूख 'गंभीर समस्या'
ग्लोबल हंगर इंडेक्स में भूख की स्थिति के आधार पर देशों को 0 से 100 अंक दिए गए और जीएचआई तैयार किया गया। इसमें 0 अंक सर्वोत्तम यानी भूख की स्थिति नहीं होना है। 10 से कम अंक का मतलब है कि देश में भूख की समस्या बेहद कम है। वहीं 20 से 34.9 अंक का मतलब भूख का गंभीर संकट, 35 से 49.9 अंक का मतलब हालात चुनौतीपूर्ण हैं और 50 या इससे ज्यादा अंक का मतलब है कि वहां भूख की स्थिति बेहद भयावह है। भारत को 30.3 अंक मिला है जिसका मतलब है कि यहां भूख का गंभीर संकट है।

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नेपाल की स्थिति अच्छी
जीएचआई रिपोर्ट के मुताबिक साल 2000 के बाद से नेपाल ने इस मामले में सबसे ज्यादा सुधार किया है। जब भारत की स्थिति अफ्रिका के उप-सहारा क्षेत्र से भी बदतर हो गई। भारत में 6 से 23 महीनों के सिर्फ 9.6% बच्चों को ही न्यूनतम स्वीकृत भोजन उपलब्ध हो पाता है। हालांकि केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय की ओर से जारी हालिया रिपोर्ट में तो यह आंकड़ा 6.4% ही बताया गया था।

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इस कारण बढ़ा भूख का संकट
जीएचआई रिपोर्ट में कहा गया कि जलवायु परिवर्तन के कारण भूख का संकट चुनौतीपूर्ण स्तर पर पहुंच गया जिस कारण दुनिया के पिछले क्षेत्रों में लोगों के लिए भोजन की उपलब्धता और कठिन हो गई है। इतना ही नहीं, जलवायु परिवर्तन से भोजन की गुणवत्ता और साफ-सफाई भी प्रभावित हो रही है। फसलों से मिलने वाले भोजन की पोषण क्षमता भी घट रही है। रिपोर्ट में कहा गया कि भूख की समस्या से निपटने के लिए अभी एक लंबी दूरी तय करनी होगी।

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Seema Sharma

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