देर से ही सही भारत ने मलेशिया और तुर्की के खिलाफ उठाए सख्त कदम

punjabkesari.in Wednesday, Oct 16, 2019 - 05:55 PM (IST)

नेशनल डेस्कः जम्मू-कश्मीर मसले पर पाकिस्तान के सुर में सुर मिलाने वाले तुर्की और मलेशिया के खिलाफ भारत ने सख्त रूख अख्तियार कर लिया है। पिछले महीने संयुक्त राष्ट्र महासभा के 74वें सत्र में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने तुर्की के लिहाज से अहम माने जाने वाले आर्मेनिया और साइप्रस के राष्ट्रपतियों से अलग-अलग मुलाकात की थी। इससे तुर्की को स्पष्ट संदेश देने की कोशिश की गई है कि यदि वह भारत के हित के खिलाफ जाकर पाकिस्तान का साथ देगा तो इसके नतीजे के लिए भी वह तैयार रहे।

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दरअसल, जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 को हटा कर उसे दो अलग केंद्र शासित प्रदेश बनाने के मसले पर तुर्की के राष्ट्रपति तैयप एर्दोगन ने पाकिस्तान के रूख का समर्थन किया था और अपने भाषण में भारत विरोधी टिप्पणी की थी। पीएम मोदी ने आर्मेनिया और साइप्रस के राष्ट्रपति से मिलकर तुर्की को कूटनीतिक जवाब दिया है। मोदी ने इन देशों को भरोसा दिया है कि उनके साथ द्विपक्षीय संबंधों को नया आयाम दिया जाएगा।

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क्यों खराब हुए तुर्की और आर्मेनिया के संबंध
दरअसल, तुर्की और आर्मेनिया के बीच पुरानी रंजिश है। वर्ष 1915 से 1918 के बीच तुर्की के आटोमन साम्राज्य ने 15 लाख आर्मेनियाई लोगों की हत्या कर दी थी। इसके चलते लाखों आर्मेनियाई को देश छोड़कर दूसरे देशों में शरण लेनी पड़ी थी। यही एक बड़ी वजह कि दोनों देशों के कूटनीतिक संबंध आज भी खराब है। आर्मेनिया लगातार दूसरे देशों से आग्रह करता आ रहा है कि वे निर्दोष आर्मेनियाई नागरिकों के सामूहिक नरसंहार को वैश्विक जनसंहार का दर्जा दें। दुनिया के 31 देशों ने तुर्की की तरफ से किये गये इस हत्याकांड को नरसंहार का दर्जा दिया है। आर्मेनिया भारत से भी इस संबंध में कई बार आग्रह कर चुका है। तुर्की पर दबाव बनाने के लिए भारत के पास यह विकल्प अभी खुला है।

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सीरिया में कुर्दों पर तुर्की के हमलों की निंदा कर भारत ने इसकी शुरूआत कर दी है। वैसे, तुर्की भारत को अपना मित्र बताता है। लेकिन वैश्विक मंचों पर वह हमेशा से ही पाकिस्तान के साथ खड़ा रहा है। 1965 और 1971 के युद्ध में भी तुर्की ने पाकिस्तान का साथ दिया था और उसे हथियार मुहैया कराए थे।

साइप्रस और तुर्की के रिश्ते भी काफी तल्खी भरे हैं। साइप्रस का एक हिस्सा (उत्तरी साइप्रस) तुर्की के कब्जे में है। साइप्रस तुर्की पर आरोप लगाता है कि वह उसके आंतरिक मामलों में दखल देता है और आतंकवाद को बढ़ावा देता है। भारत और साइप्रस के बीच अंतरराष्ट्रीय आतंकवाद पर भी बातचीत हुई है। तुर्की के लिए यह संदेश काफी है कि साइप्रस और आर्मेनिया के साथ भारत अपने रिश्तों को मजबूत करने को तैयार है।

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मलेशिया को भी दिया सख्त संदेश
वर्ष 2018-19 में भारत ने मलेशिया से 10.8 अरब डॉलर का आयात और मलेशिया को 6.4 अरब डॉलर का निर्यात किया। इसकी तुलना में मलेशिया-पाकिस्तान द्विपक्षीय व्यापार तकरीबन 1.3 अरब डॉलर का है। भारत मलेशिया से हर साल 2.5 अरब डॉलर का पाम ऑयल आयात करता है। यदि इसे वह इंडोनेशिया या किसी अन्य देश से आयात करना शुरू कर दें तो मलेशिया को बड़ा झटका लगेगा। इसके साथ ही मलेशिया भारत को पुराने मिग-29 विमान बेचना चाहता है। मलेशियाई प्रधानमंत्री महातिर मोहम्मद की संयुक्त राष्ट्र महासभा में भारत विरोधी टिप्पणी के चलते यह सौदा भी खटाई में पड़ सकता है। भारत सरकार के सख्त कदम उठाने की आशंका के चलते ही भारतीय कारोबारियों ने पहले ही पाम ऑयल के आयात बंद कर दिया है। सुत्रों के मुताबिक भारत सरकार मलेशिया पर कार्रवाई की तैयारियों में जुटी है। इसके मद्देनजर सरकार ने मलेशिया को सख्त संदेश भेज भी दिया है। देर से ही सही लेकिन भारत ने अपने हितों के खिलाफ जाने वाले देशों पर सख्त रूख दिखाना शुरू कर दिया है।


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Edited By

Ravi Pratap Singh

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