India GDP 2014 to 2025: जानिए मोदी सरकार में क्या-क्या आए बदलाव और केस रहा देश का आर्थिक हाल
punjabkesari.in Saturday, Feb 01, 2025 - 03:51 PM (IST)
नेशनल डेस्क: भारतीय अर्थव्यवस्था ने 2014 से 2025 के बीच कई अहम बदलाव देखे हैं, खासकर जब से नरेंद्र मोदी की सरकार ने सत्ता संभाली। इस अवधि में भारत ने न केवल आर्थिक विकास और वैश्विक आर्थिक चुनौतियों का सामना किया, बल्कि सरकार ने कई महत्वपूर्ण सुधारात्मक कदम भी उठाए। इस आर्टिकल में हम जीडीपी के आंकड़ों की गहराई से समीक्षा करेंगे और इसके पीछे के कारणों और प्रभावों पर चर्चा करेंगे।
GDP और इसके महत्व को समझना
सकल घरेलू उत्पाद (GDP) एक महत्वपूर्ण आर्थिक संकेतक है, जो किसी देश के भीतर उत्पादित सभी वस्तुओं और सेवाओं के कुल मौद्रिक मूल्य को दर्शाता है। यह किसी देश की आर्थिक सेहत का मापदंड है और नीति निर्माताओं, निवेशकों, और अर्थशास्त्रियों के लिए एक महत्वपूर्ण आंकड़ा होता है। GDP को तीन प्रमुख तरीकों से मापा जाता है: व्यय विधि, उत्पादन विधि, और आय विधि। व्यय विधि में उपभोक्ता खर्च, निवेश, सरकारी खर्च और निर्यात-आयात को शामिल किया जाता है, जबकि उत्पादन विधि में उद्योगों द्वारा उत्पादित कुल मूल्य का आकलन किया जाता है। आय विधि में श्रमिकों की आय, उत्पादन पर कर और अन्य आय के स्रोतों का योग किया जाता है।
GDP को दो मुख्य रूपों में मापा जाता है
1. नॉमिनल GDP: यह वर्तमान बाजार कीमतों पर आधारित होता है और इसमें महंगाई का प्रभाव शामिल होता है।
2. वास्तविक GDP: यह स्थिर कीमतों पर आधारित होता है, जिससे महंगाई का प्रभाव समायोजित किया जाता है।
मोदी सरकार के दौरान GDP में उतार-चढ़ाव
- 2014-15: नरेंद्र मोदी की सरकार के पहले साल में भारतीय अर्थव्यवस्था ने 7.4% की सकारात्मक GDP वृद्धि दर दर्ज की। यह वृद्धि मुख्य रूप से सरकार द्वारा शुरू की गई योजनाओं जैसे 'मेक इन इंडिया', 'डिजिटल इंडिया', और 'स्वच्छ भारत अभियान' से प्रेरित थी। इन पहलों ने निवेश को आकर्षित किया और औद्योगिक उत्पादन में वृद्धि की।
- 2015-16: अगले वर्ष में GDP वृद्धि दर 8.0% रही। यह वर्ष भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए महत्वपूर्ण था, क्योंकि इसमें विदेशी निवेश में वृद्धि हुई और बुनियादी ढांचे के विकास पर जोर दिया गया। सड़कों, पुलों और अन्य इंफ्रास्ट्रक्चर परियोजनाओं के तेजी से निर्माण ने अर्थव्यवस्था को गति दी।
- 2016-17: मोदी सरकार ने नोटबंदी का कदम उठाया, जो एक विवादास्पद निर्णय था। इसका असर GDP पर पड़ा, लेकिन कुछ विशेषज्ञों के अनुसार, यह कदम लंबी अवधि में डिजिटल भुगतान को बढ़ावा देने और भ्रष्टाचार पर अंकुश लगाने के लिए था।
- 2019-20: हालांकि, 2019-20 में GDP वृद्धि दर घटकर केवल 4.0% रही, जो मुख्य रूप से घरेलू मांग की कमी और निवेश की धीमी गति का परिणाम था। वैश्विक आर्थिक मंदी और व्यापार युद्ध भी इसके मुख्य कारण थे।
- 2020-21: कोविड-19 महामारी ने भारतीय अर्थव्यवस्था को बुरी तरह प्रभावित किया। देश भर में लॉकडाउन और अन्य प्रतिबंधों के कारण उद्योग, सेवाएं और उपभोक्ता खर्च प्रभावित हुए, जिससे GDP में -7.3% की भारी गिरावट आई।
- 2021-22: कोविड के बाद, भारत ने कुछ सुधारात्मक कदम उठाए और अर्थव्यवस्था में सुधार देखने को मिला। 2021 में बढ़ते वैक्सीनेशन अभियान और आर्थिक गतिविधियों के फिर से शुरू होने के कारण GDP वृद्धि दर 9.1% रही।
- 2022-23: 2022 में GDP अनुमानित रूप से 7.0% रही, जो पुनः एक सकारात्मक संकेत था। हालांकि, महंगाई और बेरोजगारी जैसे मुद्दे सामने आए, सरकार ने इन पर ध्यान केंद्रित करने की कोशिश की।
- 2023-24: भारत के आर्थिक सर्वेक्षण के अनुसार, 2023-24 में GDP वृद्धि दर का अनुमान 6.5% से 7.3% था। विभिन्न विशेषज्ञ संस्थानों के मुताबिक, 2024-25 में GDP वृद्धि का अनुमान 6.3% से 6.6% के बीच हो सकता है।
'डिजिटल इंडिया', और कृषि क्षेत्र में सुधार शामिल
मोदी सरकार ने कई आर्थिक सुधारात्मक योजनाओं की शुरुआत की, जिनमें 'आत्मनिर्भर भारत अभियान', 'डिजिटल इंडिया', और कृषि क्षेत्र में सुधार शामिल हैं। इन योजनाओं का उद्देश्य देश को आत्मनिर्भर बनाना, डिजिटल बुनियादी ढांचे को मजबूत करना और कृषि क्षेत्र को समृद्ध बनाना था। इन पहलुओं के परिणामस्वरूप विभिन्न क्षेत्रों में निवेश में वृद्धि हुई और नए रोजगार सृजित हुए।हालांकि, इन सुधारों के बावजूद, भारत को कई चुनौतियों का सामना करना पड़ा। महंगाई की दर कई सालों तक उच्च स्तर पर रही, जो उपभोक्ता खर्च को प्रभावित करती थी। बेरोजगारी भी एक बड़ी समस्या बनी रही, खासकर युवा वर्ग के लिए।
भारतीय अर्थव्यवस्था पर दबाव
महंगाई एक महत्वपूर्ण चुनौती रही, जो भारतीय अर्थव्यवस्था पर दबाव डालती रही। 2020 और 2021 में महंगाई की दर 7% के आसपास रही, जो भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) की अधिकतम सीमा से अधिक थी। इसके अलावा, बेरोजगारी भी एक गंभीर समस्या रही, खासकर शहरी युवाओं के लिए, जहां 2022 में बेरोजगारी दर 16.8% तक पहुँच गई।
वैश्विक अर्थव्यवस्था का प्रभाव
भारत को वैश्विक आर्थिक स्थिति से भी असर पड़ा है। जैसे कि रूस-यूक्रेन युद्ध के कारण ऊर्जा की कीमतों में वृद्धि हुई, जिसका असर भारतीय अर्थव्यवस्था पर पड़ा। वैश्विक मंदी और अन्य देशों के आर्थिक संकट ने भी भारतीय निर्यात पर दबाव डाला। इन चुनौतियों के बावजूद, भारत ने अपने विकास को जारी रखने के लिए कई योजनाएं और सुधार लागू किए।
आगे की दिशा सकारात्मक
भारत के लिए आगे की दिशा सकारात्मक दिखती है, बशर्ते सरकार सही नीतियों को लागू करे। कृषि क्षेत्र को मजबूत करने, तकनीकी नवाचार को बढ़ावा देने, और निर्यात में वृद्धि करने पर जोर देने की आवश्यकता है। इसके अलावा, भ्रष्टाचार पर नियंत्रण और प्रशासनिक बाधाओं को दूर करना भी आवश्यक होगा। अगर भारत अपने संसाधनों का सही उपयोग करता है, तो वह न केवल अपनी घरेलू जरूरतों को पूरा कर सकता है, बल्कि वैश्विक मंच पर एक प्रमुख आर्थिक शक्ति भी बन सकता है।