1954 के पंचशील समझौते पर ज्यादा दिन नहीं टिका था चीन

punjabkesari.in Saturday, Sep 12, 2020 - 10:18 AM (IST)

नई दिल्ली(विशेष): 28 अप्रैल 1954 को भारत और चीन के बीच प्रसिद्ध पंचशील समझौता हुआ था। यह समझौता दोनों को तिब्बत क्षेत्र में अपने व्यापार और अन्य गतिविधियों के संबंध में था। यह समझौता दोनों देशों के बीच आर्थिक सहयोग बढ़ाने और सुरक्षा से जुड़ा था। इस समझौते के पांच बिंदू थे। इस समझौते से उत्साहित तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू ने कुछ दिन बाद ही कोलम्बों में आसियान देशों के प्रधानमंत्रियों की बैठक में कहा था अगर आपसी विश्वास बढ़ाने वाले ऐसे समझौते देश करें तो युद्ध की आशंकाएं ही खत्म हो जाएंगी। मगर चीन खुद इस समझौते पर ज्यादा दिन तक कायम नहीं रहा। 1958 में चीन ने अक्साईचिन पर कब्जा कर लिया। भारत ने उसे रोकने के लिए सीमा पर मोर्चाबंदी की जो 1962 में युद्ध में बदल गई। 

गुटनिरपेक्ष आंदोलन
इंडोनेशिया के बानडुंग में 1955 को हुई आशियान देशों के प्रधानमंत्रियों की बैठक में पंचशील के इन नियमों को दस करते हुए सभी आशियान देशों ने सैद्धांतिक रूप से स्वीकार कर लिया। पंचशील के ये नियम ही आगे चलकर 1961 में युगोस्लाविया में निर्गुट आंदोलन की स्थापना का आधार बने। 

चीन के विदेश मंत्रालय, पीएलए मीडिया का रुख अलग-अलग 
29 जून 1981 को जब प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी से चीन के विदेश मंत्री हुआंग हुआ ने मुलाकात की तो यह रुख स्पष्ट था कि जब तक सीमा विवाद नहीं सुलझ जाते, दोनों देशों के बीच मित्रता मुश्किल है। मगर इसके 39 साल बाद आज चीन की पीपल्स लिब्रेशन आर्मी (पीएलए) और चीन के विदेश मंत्रालय का एकदूसरे से भिन्न रुख नजर आ रहा है। जहां पीएलए अब भी 1959 में उनके नेता चाउ एन लाई द्वारा नक्शे पर बनाई हरी लाइन को ही लक्ष्य मानकर काम कर रही है, वहीं चीनी विदेश मंत्रालय आर्थिक संबंध मजबूत बनाने के लिए काम कर रहा है। चीन के विदेश मंत्री वांग यी ने मास्को में जब भारतीय विदेश मंत्री एस जयशंकर से दो घंटे तक मुलाकात की तो पूर्वी लद्दाख में युद्ध जैसे हालात बने हुए थे। दोनों देशों के बीच 1981 की नीति ही काम करती दिख रही थी। अगर आपस में अच्छे संबंध बनाने हैं तो पहले सीमा विवाद सुलझाना होगा। जब से  वास्तविक नियंत्रण रेखा आस्तित्व में आई है तब से दोनों देशों में लद्दाख में ही 65 पेट्रोलिंग प्वाइंट्स पर विवाद है। यहां पर जब कहीं भी दोनों ओर के सैनिक एक समय पर गश्त करते हुए पहुंच जाते हैं, उनमें आमना-सामना हो जाता है।

चीनी मिडिया का रुख अलग
हालांकि जयशंकर और वांग यी के बीच सीमा विवाद को लेकर पांच बिंदुओं पर सहमति बन गई है, मगर चीन का सरकारी मीडिया युद्ध की बात कर रहा है। ग्लोबल टाइम्स के संपादकीय के स्वर युद्धोन्मादी है। वह लिखता है कि अगर भारत को शांति चाहिए तो 7 नवंबर 1957 वाली एलएसी को मानना होगा। अगर भारत युद्ध छेड़ता है तो चीन उसका शुक्रगुजार होगा। 


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Anil dev

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