हीटवेव की सर्वाधिक मार झेलने वाला दुनिया का पहला देश बना भारत, जून में 62 करोड़ लोग आए चपेट में

punjabkesari.in Monday, Jul 01, 2024 - 08:57 AM (IST)

नेशनल डेस्क: दुनिया भर में जलवायु परिवर्तन का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि इस साल जून में माह में 61.9 करोड़ लोगों को अत्याधिक गर्मी यानी हीटवेव की मार झेलनी पड़ी है। क्लाइमेट सेंट्रल द्वारा किए गए एक विश्लेषण के अनुसार भारत दुनिया भर में सबसे अधिक गर्मी झेलने वाला पहला देश बन गया है। चीन दूसरे स्थान पर है जहां 57.9 करोड़ लोगों ने जून माह में हीटवेव को झेला है। रिपोर्ट के मुताबिक विश्लेषण से पता चला है कि इस अवधि के दौरान दुनिया भर में लगभग पांच अरब लोगों ने अत्यधिक गर्मी का सामना किया, जिसमें वैश्विक आबादी के 60 फीसदी से अधिक लोगों ने जलवायु परिवर्तन के कारण कम से कम तीन गुना अधिक तापमान का प्रकोप झेला। 

कोयला, तेल और प्राकृतिक गैस जलाने से भी हुए ऐसी हालत
डाउन टू अर्थ की रिपोर्ट में शोधकर्ता के हवाले से कहा है कि निरंतर कार्बन उत्सर्जन के भयानक परिणामों को इसके लिए जिम्मेदार ठहराया है। शोधकर्ता ने कहा कि पिछली एक सदी से कोयला, तेल और प्राकृतिक गैस को जलाने के कारण हम एक खतरनाक दुनिया में प्रवेश कर गए हैं। इस गर्मी में दुनिया भर में आने वाली हीटवेव अप्राकृतिक हैं जो कार्बन प्रदूषण बंद होने तक और भी आम होती जाएंगी। भारत ने सबसे खतरनाक और लंबी अवधि की लू में से एक का सामना किया है। हालांकि यह जून के मध्य में कम हो गई थी, लेकिन इसके कारण 40 हजार से अधिक हीट स्ट्रोक के मामले और 100 से अधिक मौतें हुई। अधिकतम तापमान लगभग 50 डिग्री सेल्सियस तक बढ़ गया, जबकि रात का न्यूनतम तापमान देश में अब तक सर्वाधिक 37 डिग्री सेल्सियस तक पहुंच गया।

हज यात्रा में हीटवेव से गई करीब 1300 लोगों की जान
सऊदी अरब में हज यात्रा के दौरान अत्यधिक गर्मी से होने वाली बीमारियों के कारण कम से कम 1,300 लोगों की मृत्यु हुई। कुछ शहरों में तापमान 50 डिग्री सेल्सियस से अधिक हो गया। क्लाइमेट सेंट्रल के मुताबिक, मक्का में मई के मध्य से जलवायु परिवर्तन के कारण तापमान में कम से कम तीन गुना वृद्धि हुई है। क्लाइमेट मीटर द्वारा किए गए पिछले विश्लेषण से पता चलता है कि जलवायु परिवर्तन ने सऊदी अरब में लू को 2.5 डिग्री सेल्सियस तक बढ़ा दिया है। ग्रीस में भी अत्यधिक गर्मी का सामना करना पड़ा है। एथेंस में एक्रोपोलिस 43 डिग्री सेल्सियस से अधिक तापमान के कारण बंद हो गया, जिसके कारण छह पर्यटकों की मृत्यु हुई। भूमध्य सागर, मध्य पूर्व और उत्तरी अफ्रीका में भी इसी तरह उच्च तापमान महसूस किया गया।

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मेक्सिको और मध्य अमरीका भी प्रभावित
अमरीका ने लगातार दो बार गर्म हवाओं का सामना किया, जिसका असर दक्षिणी क्षेत्र, मेक्सिको और मध्य अमरीका पर पड़ा। मेक्सिको में, सोनोरा में तापमान 52 डिग्री सेल्सियस तक पहुंच गया और कम से कम 125 लोगों की मौत हो गई। इसके बाद पूर्वी अमरीका में भी लू चली, जिससे न्यूयॉर्क में गर्मी से संबंधित आपातकालीन यात्राओं में 500-600 फीसदी की वृद्धि हुई। क्लाइमेट मीटर के तेज विश्लेषण में पाया गया कि जलवायु परिवर्तन ने तापमान को दो डिग्री सेल्सियस तक बढ़ा दिया। अत्यधिक गर्मी ने कोपा अमेरिका फुटबॉल टूर्नामेंट को भी प्रभावित किया, जहां पेरू और कनाडा के बीच मैच के दौरान 38 डिग्री सेल्सियस के तापमान और भारी उमस के कारण एक सहायक रेफरी बेहोश हो गया था।

चीन में भी 50 डिग्री पहुंचा तापमान
चीन में जून में तापमान 50 डिग्री सेल्सियस तक पहुंच गया, जबकि रात का तापमान 30 डिग्री सेल्सियस के बीच में रहा। वुहान शहर ने एयर कंडीशनर के बढ़ते उपयोग के कारण संभावित बिजली कटौती की चेतावनी दी। दक्षिणी गोलार्ध में, सर्दियों के तापमान में उछाल आया, पैराग्वे में 38 डिग्री सेल्सियस और पेरू में 36 डिग्री सेल्सियस तापमान दर्ज किया गया, जो जून के लिए ऐतिहासिक उच्चतम तापमान है। मिस्र में तापमान 50 डिग्री सेल्सियस के करीब पहुंच गया, असवान में कम से कम 40 मौतें हुई और बढ़ती ऊर्जा खपत को नियंत्रित करने के लिए रोजना बिजली कटौती की गई।

वैश्विक स्तर पर मानवाधिकारों को बड़ा खतरा
शोधकर्ता ने शोध के हवाले से कहा कि जलवायु संकट वैश्विक स्तर पर मानवाधिकारों के लिए सबसे बड़ा खतरा है। अगर सिस्टमिक उत्सर्जक खतरनाक गर्मी और अन्य चरम मौसम की घटनाओं को बढ़ावा देने वाले जीवाश्म ईंधन पर तेजी से लगाम नहीं लगाते हैं, तो लोगों की जान और लोगों की भलाई को होने वाला नुकसान और भी बढ़ जाएगा।
दुनिया भर में तापमान में वृद्धि जारी है, इसलिए जलवायु परिवर्तन के प्रभावों को कम करने, दुनिया भर में जीवन की रक्षा के लिए कार्बन उत्सर्जन को कम करने और नवीकरणीय ऊर्जा को अपनाने के लिए तेजी से तथा निर्णायक कार्रवाई की आवश्यकता और भी अधिक अहम हो जाती है। 


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Content Editor

Mahima

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