मेट गाला में छाया दिलजीत का देसी अंदाज, बोले- मैं अपनी पगड़ी, संस्कृति और मातृभाषा को लेकर आया हूं
punjabkesari.in Tuesday, May 06, 2025 - 05:21 PM (IST)

नेशनल डेस्क. मशहूर गायक और अभिनेता दिलजीत दोसांझ ने मेट गाला 2025 में अपनी पहली उपस्थिति दर्ज कराई, जो उनके गृह राज्य पंजाब और सिख धर्म के प्रति उनके गहरे सम्मान को दर्शाती है। उन्होंने इस प्रतिष्ठित कार्यक्रम में सफेद रंग का पारंपरिक परिधान पहना था, जिसके साथ उन्होंने कृपाण और पगड़ी भी धारण की थी। उनका यह पहनावा पटियाला के महाराजा भूपिंदर सिंह को श्रद्धांजलि अर्पित कर रहा था।
अपने मधुर गानों के लिए जाने जाने वाले दिलजीत ने अमेरिकी-नेपाली डिजाइनर प्रबल गुरुंग द्वारा डिजाइन किया गया तहमत भी पहना था। पंजाब के दोसांझ गांव के रहने वाले इस गायक ने जो पगड़ी पहनी थी। वह सफेद कलगी और आभूषणों से जड़ी हुई थी। उन्होंने एक कृपाण भी धारण किया था, जिसके मुख पर शेर की आकृति बनी हुई थी।
अपनी फिल्म 'चमकीला' के एक गीत की पंक्तियों को साझा करते हुए दिलजीत दोसांझ ने इंस्टाग्राम पर लिखा- 'मैं हूं पंजाब... #मेटगाला'। उन्होंने आगे कहा कि वह 'ब्लैक डांडीज्म' की थीम से प्रेरित होकर मेट गाला में अपनी पगड़ी, अपनी संस्कृति और अपनी मातृभाषा पंजाबी को लेकर आए हैं। दिलजीत की टीम ने उनके आधिकारिक इंस्टाग्राम पेज पर मेट गाला के कुछ वीडियो भी साझा किए हैं।
दिलजीत की स्टाइलिस्ट अभिलाषा देवनानी ने बताया कि गायक का यह खास अंदाज रंगीन मिजाज के लिए प्रसिद्ध पटियाला के महाराजा की पुरानी तस्वीरों पर आधारित था। उन्होंने इस रात के लिए महाराजा के प्रतिष्ठित कार्टियर हार को उधार लेने की कोशिश की थी, लेकिन वह फिलहाल एक संग्रहालय में सुरक्षित रखा गया है।
महाराजा भूपिंदर सिंह ने 1928 में मशहूर लक्जरी आभूषण ब्रांड 'कार्टियर' को 1,000 कैरेट का हीरे का हार बनाने का काम सौंपा था। यह फ्रांसीसी आभूषण निर्माता कंपनी द्वारा बनाया गया 'सबसे बड़ा हार' था। 1900 से 1938 तक पटियाला रियासत पर शासन करने वाले महाराजा भूपिंदर सिंह अक्सर अपने प्रसिद्ध कार्टियर हार के साथ 'चोकर' पहनते थे। दुर्भाग्य से यह हार 1948 में भारत से गायब हो गया।
अभिलाषा देवनानी ने आगे बताया कि अंततः उन्होंने मूल संग्रह से मिलता-जुलता हार बनवाने के लिए भारतीय जौहरी गोलेचा से संपर्क किया। इस प्रकार दिलजीत दोसांझ का मेट गाला में पारंपरिक सिख वेशभूषा और महाराजा भूपिंदर सिंह से प्रेरित अंदाज उनकी जड़ों और संस्कृति के प्रति उनके गहरे सम्मान का प्रतीक बना।