हिमालय पर 23 साल में सबसे कम बर्फबारी हुई, विस्तार से जानिए पूरा विश्लेषण

punjabkesari.in Thursday, May 01, 2025 - 05:41 PM (IST)

नेशनल डेस्क: हिमालय-हिंदुकुश पर्वत श्रृंखला में इस साल की बर्फबारी पिछले 23 वर्षों में सबसे कम रही है। इंटरनेशनल सेंटर फॉर इंटीग्रेटेड माउंटेन डेवलपमेंट (ICIMOD) की नई रिपोर्ट में इस बात की पुष्टि हुई है। रिपोर्ट के अनुसार, इस क्षेत्र में मौसमी बर्फ का आवरण औसतन 23.6 प्रतिशत कम रहा है, जो जल सुरक्षा के लिए बड़ा खतरा बन सकता है। यह स्थिति लगातार तीसरे साल देखने को मिली है और इसने दो अरब से अधिक लोगों की चिंता बढ़ा दी है, जो ग्लेशियरों से निकलने वाले पानी पर निर्भर हैं।
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कहां-कहां फैलता है यह संकट

हिमालय-हिंदुकुश क्षेत्र अफगानिस्तान से लेकर म्यांमार तक फैला है और यह क्षेत्र आर्कटिक व अंटार्कटिक के बाद दुनिया में बर्फ और ग्लेशियरों का तीसरा सबसे बड़ा भंडार है। इस क्षेत्र की नदियां – जिनमें गंगा, ब्रह्मपुत्र, सिंधु, मेकांग और सालवीन प्रमुख हैं – लगभग दो अरब लोगों के जीवन और आजीविका का आधार हैं। खेती, पीने का पानी और घरेलू ज़रूरतें इन्हीं जल स्रोतों पर निर्भर हैं।

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क्यों है यह गिरावट चिंताजनक

ICIMOD के जलवायु वैज्ञानिक शेर मोहम्मद के मुताबिक, "इस साल बर्फबारी देर से शुरू हुई और पूरे मौसम में औसत से काफी कम रही।" इसका सीधा असर नदी के बहाव, भूजल के स्तर और कृषि उत्पादन पर पड़ने की आशंका है। साथ ही सूखा, जल संकट और गर्मी की लहरें भी अधिक घातक रूप ले सकती हैं।

सूखे का खतरा और बढ़ता तापमान

रिपोर्ट में यह भी बताया गया है कि कई देशों – जैसे पाकिस्तान, भारत, नेपाल और अफगानिस्तान – ने पहले ही सूखे की चेतावनी जारी कर दी है। लगातार कम होती बर्फबारी और बढ़ता तापमान इन क्षेत्रों में जल संकट को और गहरा कर सकता है। दक्षिण और दक्षिण-पूर्व एशिया की प्रमुख नदियों मेकांग और सालवीन की लगभग आधी बर्फ पहले ही पिघल चुकी है।

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क्या करें देश?

ICIMOD ने अपनी रिपोर्ट में सदस्य देशों – भारत, पाकिस्तान, नेपाल, भूटान, चीन, बांग्लादेश, म्यांमार और अफगानिस्तान – से जल प्रबंधन सुधारने, सूखे के लिए तैयारी करने और क्षेत्रीय सहयोग बढ़ाने की अपील की है। रिपोर्ट के मुताबिक जल संकट की इस चुनौती से निपटने के लिए जल्द ही ठोस और साझा कदम उठाना जरूरी है।

कार्बन उत्सर्जन से बिगड़ी हालत

ICIMOD के महानिदेशक पेमा गियामात्सु ने चेताया कि "कार्बन उत्सर्जन के चलते हिंदुकुश क्षेत्र में बर्फ की हानि अब एक अपरिवर्तनीय रास्ते पर चल पड़ी है।" उन्होंने कहा कि यदि अभी भी पर्यावरण संरक्षण के लिए ठोस कदम नहीं उठाए गए तो स्थिति और भी गंभीर हो सकती है।
संयुक्त राष्ट्र के मौसम विज्ञान संगठन ने भी चेताया है कि एशिया जलवायु आपदाओं से सबसे अधिक प्रभावित क्षेत्र बन चुका है। पिछले छह वर्षों में से पांच साल ऐसे रहे हैं, जब ग्लेशियरों में सबसे ज्यादा गिरावट दर्ज की गई।


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Content Editor

Ashutosh Chaubey

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