गलोबल वार्मिग: वैश्विक तापमान ने बढ़ाई चिंता : राजीव आचार्य

punjabkesari.in Saturday, Aug 31, 2024 - 05:38 PM (IST)

नेशनल डेस्क: इंडियन वाटर वर्क्स एसोसिएशन मुंबई के सदस्य और पर्यावरणविद्  राजीव आचार्य बयान देते हुए कहा कि इस वर्ष 2024 में वैश्विक तापमान में हुई वृद्धि ने ग्लोबल वार्मिग के प्रति पूरे विश्व में चिंता बढ़ा दी है। विश्व मौसम विज्ञान संगठन की स्टेट ऑफ द ग्लोबल ​क्लाइमेंट की रिपोर्ट में  यह खुलासा किया गया है कि अगस्त 2024  में वैश्विक औसत तापमान सामान्य से 1.5 डिग्री सेल्सियस अधिक दर्ज किया गया, जो पेरिस समझौते में निर्धारित लक्ष्य से काफी ऊपर है। यह रिपोर्ट बताती है कि इस तापमान में इस वृद्धि का कारण मुख्य रूप से ग्रीनहाउस गैसों का उत्सर्जन और बढ़ता औद्योगीकरण है। इसके कारण पूरे विश्व में तेजी से पर्यावरण में परिवर्तन देखने को मिल रहा है। 

राजीव आचार्य के अनुसार, "हम ज़्यादा गर्म दिन, ज्यादा गर्म महीने और ज्यादा गर्म साल का अनुभव कर रहे हैं। तापमान में ये वृद्धि हमारे ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन के कारण हो रही है और दुनियाभर के लोगों और पारिस्थितिकी तंत्रों पर इसका असर पड़ रहा है। ग्लोबल वार्मिंग का प्रभाव केवल मौसम के तापमान तक ही सीमित नही है । नेशनल ओशनिक एंड एटमॉस्फेरिक एडमिनिस्ट्रेशन क्लाइमेट प्रेडिक्शन सेंटर के वैज्ञानिकों ने  जुलाई से सितंबर के बीच ला नीना के विकसित होने की 69% संभावना का अनुमान लगाया है।"

राजीव आचार्य कहते हैं कि नेशनल ओशिएनिक एंड एटमोस्फरिक एडमिनिस्ट्रेशन (एनओएए) द्वारा जारी ग्लोबल ओशियन सर्फेस टेम्परेचर रिपोर्ट में भी समुद्र की सतह के तापमान में रिकॉर्ड वृद्धि होने की जानकारी दी है। अगस्त 2024 में समुद्र की सतह का औसत तापमान 21 डिग्री सेल्सियस तक पहुंच गया । इस तापमान वृद्धि का समुद्री जीवन पर बुरा प्रभाव पड़ सकता है, जिससे मछली उद्योग और समुद्री जनजीवन खतरे में आ सकते हैं। रिपोर्ट में यह भी चेतावनी दी गई है कि यह वृद्धि समुद्री तूफानों की तीव्रता को बढ़ा सकती है, जिससे तटीय क्षेत्रों में विनाशकारी बाढ़ और आपदाएं हो सकती हैं। वैज्ञानिकों और विशेषज्ञों का मानना है कि यदि समय रहते कदम नहीं उठाए गए, तो भविष्य में इन संकटों का सामना करना और भी कठिन हो जाएगा।

सबसे ज्यादा प्रभाव पड़ा कृषि पर
वर्ल्ड इकोनॉमिक फोरम द्वारा अगस्त में जारी जलवायु परिवर्तन की रिपोर्ट में भारत के संदर्भ में कहा गया है कि भारत में जलवायु परिवर्तन के कारण कृषि का क्षेत्र सबसे ज्यादा प्रभावित है, जो भारत की जीडीपी का 15% है और इसकी लगभग 40% आबादी को रोजगार देता है, जिसमें से 70% ग्रामीण परिवार हैं। 2015 और 2021 के बीच भारत ने भारी बारिश के कारण 33.9 मिलियन हेक्टेयर फसलों का नुकसान उठाया और सूखे के कारण अतिरिक्त 35 मिलियन हेक्टेयर फसलें खो दीं। रिपोर्ट में चेताया गया कि यदि यही स्तिथि रही तो 2050 तक 45 मिलियन लोग जलवायु परिवर्तन के परिणामस्वरूप अपने घरों से पलायन करने को मजबूर हो जाएंगे।

तेजी से पिछल रही है बर्फ, बढ़ रहा जलस्तर
राजीव आचार्य के अनुसार, नेशनल स्नो एंड आईस डाटा सेंटर (एनएसआईडीसी) की आर्कटिक सी आईस मेल्ट* रिपोर्ट ने भी चिंताजनक आंकड़े पेश किए हैं। अगस्त 2024 में आर्कटिक समुद्री बर्फ का स्तर 1979 के बाद से अपने सबसे निचले स्तर पर पहुंच गया है। बर्फ पिघलने का सीधा प्रभाव समुद्र जलस्तर की वृद्धि और वैश्विक जलवायु पैटर्न में अस्थिरता के रूप में देखा जा सकता है। इस रिपोर्ट में चेतावनी दी गई है कि आर्कटिक में तेजी से पिघलती बर्फ का असर पूरी दुनिया के मौसम पर पड़ सकता है, जिसमें तेज तूफान और मानसून शामिल हो सकते हैं।

इन रिपोर्टों से यह स्पष्ट होता है कि जलवायु परिवर्तन का प्रभाव अब और अधिक तीव्र और व्यापक होता जा रहा है। इन शोधों का उद्देश्य न केवल पर्यावरणीय संकट की गंभीरता को उजागर करना है बल्कि समाज को ग्लोबल वार्मिंग, जलवायु परिवर्तन के प्रति जागरूक भी करना है। राजीव आचार्य कहते हैं कि ग्लोबल वार्मिग से निपटने के लिए सबसे उत्तम उपाय अधिक से अधिक वृषारोपण करना है । यदि हर व्यक्ति कम से कम 5 पेड़ लगाने का संकल्प कर ले तो इस विभीषिका से निजात पाई जा सकती है ।


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Content Editor

rajesh kumar

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