पाकिस्तान क्यों हुआ मजबूर? क्या है वह बड़ा कारण, जिससे लौटाना पड़ा भारत का BSF जवान
punjabkesari.in Wednesday, May 14, 2025 - 01:03 PM (IST)

नेशनल डेस्क: दो हफ्ते की बेचैनी और कूटनीतिक कोशिशों के बाद आखिरकार वह घड़ी आ ही गई, जब पाकिस्तान ने भारत के उस बीएसएफ जवान को लौटाया जो गलती से सीमा पार कर गया था। वाघा-अटारी बॉर्डर पर सुबह का माहौल आम दिनों से अलग था- भारत के हाथ में था अपना एक सपूत, जिसे पाकिस्तान रेंजर्स ने हिरासत में ले रखा था।
लेकिन क्या ये वापसी महज एक सद्भावना का इशारा था? नहीं। इसके पीछे एक मजबूत वैश्विक कानून है, जिसे हर देश को मानना पड़ता है—चाहे हालात कितने भी तनावपूर्ण क्यों न हों। ये कानून है जिनेवा कन्वेंशन।
क्यों लौटाया गया जवान?
बीएसएफ का जवान जब गलती से सीमा पार कर गया, तब वह निहत्था था और हमला नहीं कर रहा था। ऐसे मामलों में किसी देश को अधिकार नहीं होता कि वह बर्बरता करे या सैनिक को अनिश्चितकाल तक रोके रखे। अंतरराष्ट्रीय कानून के मुताबिक, अगर कोई जवान या नागरिक किसी अन्य देश की सीमा में गलती से प्रवेश कर लेता है और वह लड़ नहीं रहा होता, तो उसे एक निश्चित प्रक्रिया के तहत सुरक्षित तरीके से वापस लौटाया जाना होता है। यही वजह है कि पाकिस्तानी रेंजर्स ने बातचीत के बाद भारतीय जवान को सौंप दिया।
क्या है जिनेवा कन्वेंशन?
जिनेवा कन्वेंशन एक ऐसा अंतरराष्ट्रीय समझौता है जिसे युद्ध के दौरान मानवीय मूल्यों की रक्षा के लिए बनाया गया था। इसका उद्देश्य घायल सैनिकों, युद्धबंदियों और आम नागरिकों के साथ मानवता और सम्मान से पेश आना सुनिश्चित करना है। इस समझौते की शुरुआत 1864 में हुई थी और अब तक इसकी चार प्रमुख संधियां लागू की जा चुकी हैं। इनमें यह स्पष्ट रूप से कहा गया है कि अगर कोई सैनिक बिना लड़ाई के पकड़ में आता है, तो उसे न तो प्रताड़ित किया जा सकता है और न ही मारा जा सकता है।
ऐसे होती है वापसी की प्रक्रिया
किसी भी ऐसे मामले में जहां जवान सीमा पार कर जाता है, सबसे पहले दोनों देशों की सेनाओं के बीच फ्लैग मीटिंग होती है। इसके बाद जवान की स्थिति और स्वास्थ्य की पुष्टि होती है, फिर तय तारीख और समय पर सीमा पर उसे लौटाया जाता है। इस पूरी प्रक्रिया में मानवीय दृष्टिकोण और अंतरराष्ट्रीय नियमों का पालन किया जाता है।
क्यों जरूरी है ये नियम?
इतिहास में हमने देखा है कि जब ये नियम नहीं थे, तो युद्ध के बाद नरसंहार, बलात्कार और अपहरण जैसी अमानवीय घटनाएं आम थीं। जिनेवा कन्वेंशन ने इन्हें रोकने की दिशा में अहम भूमिका निभाई है। आज भले ही देशों के बीच तलवारें खिंची हों, लेकिन इंसानियत की एक पतली रेखा इन समझौतों के ज़रिए अब भी कायम है।