जब अदृश्य हो जाएंगे बद्रीनाथ और केदारनाथ, तब इन पवित्र स्थानों पर विराजेंगे भगवान विष्णु और भोलेनाथ
punjabkesari.in Tuesday, Apr 29, 2025 - 03:08 PM (IST)

नेशनल डेस्क: चारधाम यात्रा भारत के प्रमुख धार्मिक यात्रा मार्गों में से एक है, जिसमें बद्रीनाथ और केदारनाथ की विशेष मान्यता है। परंतु शास्त्रों में ऐसा वर्णन है कि एक समय ऐसा आएगा जब ये दोनों तीर्थ स्थल विलुप्त हो जाएंगे और तब भगवान विष्णु और भगवान शिव की पूजा नए स्थानों पर की जाएगी। इस खबर में आपको भविष्य बद्री और भविष्य केदार से जुड़ी महत्वपूर्ण जानकारी मिलेगी...
जब केदारनाथ और बद्रीनाथ हो जाएंगे अदृश्य
उत्तराखंड की ऊंची हिमालयी चोटियों पर स्थित केदारनाथ और बद्रीनाथ न केवल पौराणिक दृष्टि से महत्वपूर्ण हैं बल्कि लाखों श्रद्धालुओं की आस्था का केंद्र भी हैं। परंतु शास्त्रों के अनुसार आने वाले समय में ये दोनों धाम लुप्त हो जाएंगे। यह तब होगा जब ‘नर’ और ‘नारायण’ पर्वत आपस में मिल जाएंगे। माना जाता है कि इन पर्वतों के मिलते ही इन तीर्थों तक पहुंचना असंभव हो जाएगा।
भगवान नृसिंह की मूर्ति का संकेत
जोशीमठ में स्थित भगवान नृसिंह मंदिर में एक विशेष मूर्ति है जिसकी एक भुजा धीरे-धीरे पतली होती जा रही है। स्कंद पुराण में वर्णन है कि जब यह भुजा पूरी तरह से टूट जाएगी, तब बद्रीनाथ और केदारनाथ के रास्ते हमेशा के लिए बंद हो जाएंगे। यही वह संकेत होगा कि अब भगवान विष्णु और शिव की पूजा अन्य स्थलों पर होगी।
भविष्य में कहां होंगे भगवान विष्णु और भोलेनाथ के दर्शन?
भविष्य बद्री: विष्णु जी का नया धाम
भविष्य बद्री उत्तराखंड के जोशीमठ से लगभग 25 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। यह स्थान धौलीगंगा नदी के रास्ते स्थित है और वहां पहुंचने के लिए लगभग 3 किलोमीटर की पहाड़ी चढ़ाई करनी होती है। जब अधर्म का प्रभाव बढ़ेगा और पुरानी तीर्थ यात्राएं संभव नहीं होंगी, तब भगवान विष्णु की पूजा भविष्य बद्री में होगी। यह स्थान पंच बद्री में से एक है। पंच बद्री में बद्रीविशाल (बद्रीनाथ), योगध्यान बद्री, वृद्ध बद्री, आदि बद्री और भविष्य बद्री शामिल हैं। भविष्य बद्री में भगवान विष्णु को नरसिंह रूप में पूजा जाता है।
भविष्य केदार: शिव भक्तों का नया केंद्र
भविष्य केदार मंदिर भी जोशीमठ क्षेत्र में स्थित है। यह स्थान पौराणिक मान्यताओं के अनुसार उसी शक्ति और आध्यात्मिक ऊर्जा से परिपूर्ण है जैसी केदारनाथ धाम में मानी जाती है। यहां एक शिवलिंग और माता पार्वती की प्रतिमा है। यही वह स्थान होगा जहां भविष्य में शिव भक्त भोलेनाथ की पूजा करेंगे। माना जाता है कि इसी क्षेत्र में आदि शंकराचार्य ने तपस्या की थी। मंदिर के पास शंकराचार्य गुफा और नृसिंह मंदिर भी स्थित हैं, जो इस स्थान की पवित्रता को और बढ़ाते हैं।
क्यों जरूरी है यह जानकारी जानना?
यह जानकारी केवल धार्मिक मान्यता नहीं है, बल्कि यह आस्था, विश्वास और समय की परिवर्तनशीलता का प्रतीक है। यह संदेश देती है कि भले ही परिस्थिति कैसी भी हो, श्रद्धा और पूजा का स्थान बदल सकता है लेकिन आस्था बनी रहती है। भविष्य बद्री और भविष्य केदार उन श्रद्धालुओं के लिए आशा की किरण होंगे जो आने वाले युगों में भी भगवान विष्णु और शिव की भक्ति करना चाहेंगे।