127 साल बाद भारत लौटे पवित्र पिपरहवा रत्न, बुद्ध के अवशेषों की वापसी से जुड़ी अनसुनी कहानी

punjabkesari.in Thursday, Jul 31, 2025 - 02:39 PM (IST)

नेशनल डेस्क: भारत के इतिहास और संस्कृति के लिए एक बेहद महत्वपूर्ण क्षण तब आया जब बुद्ध के पवित्र पिपरहवा अवशेषों के आभूषण, जिन्हें 127 साल पहले ब्रिटिश औपनिवेशिक काल में विदेश ले जाया गया था, भारत वापस लौट आए। ये रत्न हाल ही में हांगकांग की प्रसिद्ध नीलामी संस्था सोथबी में नीलामी के लिए रखे गए थे। हालांकि, भारत सरकार की त्वरित कार्रवाई और सार्वजनिक-निजी भागीदारी के कारण ये अनमोल कलाकृतियाँ भारत की मातृभूमि में वापस आ गईं।

पिपरहवा रत्न: ऐतिहासिक और सांस्कृतिक महत्व

पिपरहवा अवशेष उत्तर प्रदेश के पिपरहवा क्षेत्र में एक प्राचीन बौद्ध स्तूप की खुदाई के दौरान मिले थे। ये अवशेष बौद्ध धर्मावलंबियों के लिए अत्यंत पवित्र माने जाते हैं और भगवान बुद्ध के जीवन और शिक्षाओं से जुड़े हैं। रत्नों के साथ-साथ इन अवशेषों में सोपस्टोन और क्रिस्टल के ताबूत तथा बलुआ पत्थर का संदूक भी शामिल है। इन रत्नों का संग्रह विलियम क्लैक्सटन पेप्पे के निजी संग्रह का हिस्सा था, जिन्होंने खुदाई का काम किया था। 127 वर्षों तक ये रत्न विदेशों में रखे गए थे, और अब 2025 में भारत वापस आए हैं।

गोदरेज समूह की पहल: रत्नों की खरीद और संरक्षण

गोदरेज इंडस्ट्रीज समूह के पिरोजशा गोदरेज ने इस संग्रह को खरीदने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। यह सार्वजनिक-निजी भागीदारी की एक मिसाल है, जिससे इन अनमोल रत्नों को भारत वापस लाना संभव हुआ। संस्कृति मंत्री गजेंद्र सिंह शेखावत ने बताया कि ये रत्न राष्ट्रीय संग्रहालय को पाँच साल के लिए ऋण पर दिए जाएंगे, साथ ही तीन महीने तक आम जनता के लिए प्रदर्शित किए जाएंगे।

प्रधानमंत्री मोदी की प्रतिक्रिया

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इस ऐतिहासिक वापसी पर गर्व जताते हुए कहा कि यह अवशेष भगवान बुद्ध और भारत के बीच गहरे संबंध को दर्शाते हैं। यह हमारी गौरवशाली संस्कृति के संरक्षण की प्रतिबद्धता भी दर्शाता है।

जब ये पवित्र रत्न नीलामी के लिए रखे गए थे, तब संस्कृति मंत्रालय ने कड़ी कार्रवाई करते हुए नीलामी को रोक दिया। हांगकांग की सोथबी को कानूनी नोटिस जारी कर भारत को वापस लौटाने का आग्रह किया गया। इसके साथ ही, विभिन्न बौद्ध संगठनों ने भी इस नीलामी के खिलाफ आवाज उठाई।

पिपरहवा रत्नों की खोज और विवाद

पिपरहवा रत्न 1898 में उत्तर भारत के पिपरहवा इलाके में खोजे गए थे। इसके बाद ये ब्रिटिश औपनिवेशिक अधिकारियों के कब्जे में आ गए। विलियम क्लैक्सटन पेप्पे ने खुदाई की थी और इन रत्नों को अपने निजी संग्रह में रखा। परिवार के उत्तराधिकारियों ने इन्हें हांगकांग में नीलामी के लिए रखा था, लेकिन भारत सरकार की त्वरित प्रतिक्रिया ने इस योजना को विफल कर दिया।


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Content Editor

Ashutosh Chaubey

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