'खूबसूरती से लेकर व्यापार' तक, लद्दाख की है अलग ही पहचान

punjabkesari.in Wednesday, Oct 30, 2019 - 01:16 PM (IST)

नेशनल डेस्क: लद्दाख 31 अक्तूबर को जम्मू-कश्मीर से अलग होकर केंद्र शासित क्षेत्र बन जाएगा। इसका प्रशासन अलग होगा उप-राज्यपाल भी। एक समय पर लद्दाख मध्य एशिया से कारोबार के लिए बड़ा गढ़ माना जाता था। प्राचीन काल में सिल्क रूट की एक शाखा लद्दाख क्षेत्र से ही होकर गुजरती थी। दूसरे देशों के व्यापारी यहां ऊंट, घोड़े, खच्चर, रेशम और कालीन का व्यापार करने आते थे। और बदले में हिंदुस्तान से मसाले, जड़ी-बूटियां आदि लेकर जाते थे।

 

दुनियाभर में यहां की सुंदरता के चर्चे
हिमालय पर्वत से घिरा लद्दाख अपनी प्राकृतिक बनावट और सुंदरता के कारण पूरी दुनिया में फेमस है। उत्तर में काराकोरम पर्वत और दक्षिण में हिमालय पर्वत के बीच में यह बसा है। इसके उत्तर में चीन और पूर्व में तिब्बत की सीमाएं हैं। यहां पर ज्यादा ठंड होने के कारण नदियां साल के कुछ वक्त के लिए ही बह पाती है। बाकी समय में ठंड के कारण जमी रहती हैं। यहां की मुख्य नदी सिंधु है। 1947 में देश के आजाद होने के साथ ही पाकिस्तान ने कश्मीर पर हमला कर दिया था। जिस कारण उसने यहां के बड़े हिस्से पर कब्जा कर लिया। जिसके बाद सिंधु का थोड़ा ही हिस्सा लद्दाख से बहता है।

 

भारत की सबसे बड़ी लोकसभा सीट लद्दाख
देश की सबसे बड़ी लोकसभा सीट लद्दाख है। खूबसूरत वादियों से घिरी यह सीट अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित है। एलओसी पर स्थित यह लोकसभा सीट कारगिल युद्ध के बाद राजनीतिक रूप से कमजोर और अस्थिर होती चली गई। वैसे अगर क्षेत्रफल की दृष्टि से देखें तो जरूर यह सीट भारत की सबसे बड़ी लोकसभा सीट है। यहां की लोकसभा क्षेत्र का क्षेत्रफल 1.74 लाख वर्ग किलोमीटर है। लेकिन जनसंख्या के अनुसार देखा जाए तो यह दूसरी सबसे छोटी लोकसभा सीट है।

 

लद्दाख लोकसभा सीट का इतिहास
पहली बार साल 1967 में हुए लोकसभा चुनाव में यहां से कांग्रेस के केजी बुकला ने जीत दर्ज की थी। इस जीत का सिलसिला 1971 में भी बरकारार रहा और बुकला दोबारा यहां से सांसद चुने गए। इसके बाद 1977 में कांग्रेस की पार्वती देवी, 1980 और 1984 में पी नामग्याल यहां से संसद पहुंचे। 1989 में लोकसभा चुनाव में लद्दाख से पहली बार निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में मोहम्मद हसन कमांडर ने जीत दर्ज की थी। लेकिन 1996 में तीसरी बार कांग्रेस के टिकट पर लड़ने वाले पी. नामग्याल चुनाव जीत गए। इसके दो साल बाद 1998 हुए लोकसभा चुनाव में पहली बार नेशनल कांफ्रेंस ने इस सीट पर जीत दर्ज की। 2004 में फिर से यह सीट निर्दलीय उम्मीदवार थुपस्तान छेवांग के पास चली गई।

 

साल 2009 में भी यह सीट निर्दलीय उम्मीदवार हसन खान ने ही जीती थी। लेकिन साल 2014 तो मोदी लहर का साल था। 2004 में निर्दलीय सांसद बन चुके छेवांग इस बार भाजपा की टिकट से लड़े औऱ पहली बार लद्दाख में कमल खिला। लद्दाख लोकसभा सीट में कुल वोटरों की संख्या 1.66 लाख है। जिसमें पुरुष मतदाताओं की संख्या 86,256 तो महिला मतदाताएं 80,503 है। यह पहाड़ी इलाका है यहां कि ज्यादातर आबादी जहां पर मुस्लिम और बौद्ध धर्मी बहुसंख्या में है। इसी वजह से 2014 में इस सीट को अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित किया गया था।


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Seema Sharma

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