देश ने खोया एक बड़ा सितारा, भारत को दिलाई थी अंतरिक्ष में नई पहचान, शोक की लहर दौड़ी
punjabkesari.in Friday, Apr 25, 2025 - 02:23 PM (IST)

नेशनल डेस्क: देश ने आज एक महान वैज्ञानिक और दूरदर्शी नेतृत्वकर्ता को खो दिया। इसरो के पूर्व प्रमुख डॉ. के. कस्तूरीरंगन का 84 वर्ष की उम्र में निधन हो गया है। उनके जाने से वैज्ञानिक जगत में शोक की लहर दौड़ गई है। डॉ. कस्तूरीरंगन वही शख्सियत थे जिनके मार्गदर्शन में भारत ने अंतरिक्ष के क्षेत्र में ऐतिहासिक छलांग लगाई थी। PSLV और GSLV जैसे प्रक्षेपण यानों की सफलता से लेकर INSAT और IRS सैटेलाइट्स की नई पीढ़ी तक, उन्होंने भारत को एक अंतरिक्ष महाशक्ति के रूप में स्थापित करने में अहम भूमिका निभाई। उनके योगदान को देश कभी नहीं भूल पाएगा। उनके निधन से पूरे देश में शोक की लहर है। डॉ. कस्तूरीरंगन इसरो के इतिहास में सबसे लंबे समय तक अध्यक्ष पद पर कार्यरत रहे। उन्होंने करीब 10 वर्षों तक इसरो चीफ के रूप में सेवाएं दीं। 27 अगस्त 2003 को सेवानिवृत्ति से पहले वे भारतीय अंतरिक्ष आयोग के चेयरमैन और भारत सरकार के अंतरिक्ष विभाग के सचिव के रूप में भी कार्यरत थे।
PSLV और GSLV की उड़ान के साक्षी रहे
डॉ. कस्तूरीरंगन के कार्यकाल के दौरान भारत ने PSLV (ध्रुवीय उपग्रह प्रक्षेपण यान) का सफल प्रक्षेपण किया जो इसरो की सबसे बड़ी सफलताओं में से एक रहा। उनके मार्गदर्शन में ही भारत ने GSLV (जियोसिंक्रोनस सैटेलाइट लॉन्च व्हीकल) का पहला सफल उड़ान परीक्षण भी पूरा किया।
INSAT और IRS सैटेलाइट सीरीज को दी नई दिशा
उनके नेतृत्व में INSAT-2 सीरीज और IRS-1C तथा 1D जैसे उन्नत सैटेलाइट्स का विकास हुआ जिसने भारत को वैश्विक अंतरिक्ष मानचित्र पर मजबूती से खड़ा किया। ये उपग्रह देश के संचार, मौसम पूर्वानुमान और कृषि सर्वेक्षण जैसे क्षेत्रों के लिए बेहद अहम साबित हुए।
INSAT-2 और IRS उपग्रह विकास में था विशेष योगदान
इसरो के अध्यक्ष बनने से पहले डॉ. कस्तूरीरंगन इसरो सैटेलाइट सेंटर के निदेशक थे। इस भूमिका में उन्होंने INSAT-2 और IRS-1A तथा 1B जैसे उपग्रहों के निर्माण और लॉन्चिंग में अहम भूमिका निभाई।
देश ने खोया एक विज्ञान सितारा
उनके निधन से न केवल इसरो बल्कि पूरा वैज्ञानिक जगत शोक में डूबा है। डॉ. कस्तूरीरंगन की सोच और विज्ञान के क्षेत्र में उनका योगदान आज भी देश को प्रेरित करता है। उन्होंने विज्ञान और टेक्नोलॉजी को जनहित से जोड़ा और भारत को स्पेस टेक्नोलॉजी में आत्मनिर्भर बनाने की दिशा में महत्वपूर्ण कदम उठाए।