"कोई तो बचा लो यार" आग से बचाने के लिए पिता ने बच्चों को 9वीं मंजिल से फेंका, तमाशबीन बन देखते रहे लोग

punjabkesari.in Tuesday, Jun 10, 2025 - 04:57 PM (IST)

नेशनल डेस्क: दिल्ली के द्वारका सेक्टर 13 स्थित 'शब्द अपार्टमेंट' सोसाइटी में मंगलवार की सुबह एक दिल दहला देने वाली घटना सामने आई। सुबह करीब 7 बजे जब लोग अपने दिन की शुरुआत कर रहे थे, उसी समय नौवीं मंजिल पर स्थित यश यादव के घर में आग लग गई। इस भीषण अग्निकांड में यश यादव और उनके दोनों बच्चों की दर्दनाक मौत हो गई, क्योंकि पड़ोसी और RWA सदस्य कथित तौर पर तमाशबीन बने रहे और कोई मदद के लिए आगे नहीं आया।

आग की भयावहता और पिता का संघर्ष-

बताया जा रहा है कि आग लगने के समय यश यादव अपने दो बच्चों के साथ घर में थे। आग तेजी से फैली और पूरा घर धुएं से भर गया। कुछ महिलाओं को तो सुरक्षित बाहर निकाल लिया गया, लेकिन यश के दोनों बच्चे दूसरे कमरे में फंस गए। जब धुएं के कारण सांस लेना मुश्किल हो गया, तो यश ने अपने बच्चों को लेकर बालकनी की ओर दौड़ लगाई। उन्होंने मदद के लिए जोर-जोर से चीखना-चिल्लाना शुरू कर दिया, "कोई तो बचा लो यार!" लेकिन उनकी पुकार का कोई जवाब नहीं मिला।

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तमाशबीन बने रहे लोग, फिर उठाया भयावह कदम-

नीचे खड़े गार्ड, पड़ोसी और RWA (रेजिडेंट वेलफेयर एसोसिएशन) के सदस्य सब कुछ देखते रहे, लेकिन कोई भी मदद के लिए आगे नहीं बढ़ा। न कोई सीढ़ियों से ऊपर गया, न किसी ने रस्सी लाने की कोशिश की। जब धुआं और घना होता गया और समय निकलता गया, तो यश यादव ने एक बेहद भयावह फैसला लिया। उन्होंने अपने बेटे और बेटी को नौवीं मंजिल की बालकनी से नीचे फेंक दिया। शायद उन्हें उम्मीद थी कि नीचे कोई उन्हें थाम लेगा या बचाने के लिए कुछ करेगा, लेकिन अफसोस, दोनों बच्चे जमीन पर गिरे और गंभीर रूप से घायल हो गए। इसके बाद यश खुद भी कूद गए। दुखद रूप से, तीनों में से किसी की जान नहीं बचाई जा सकी।

मानवीय संवेदना पर सवाल-

यह घटना समाज में बढ़ती मानवीय संवेदना की कमी पर एक बड़ा सवाल खड़ा करती है। जहां एक पिता अपने बच्चों को बचाने के लिए अपनी आखिरी सांस तक लड़ा और अपनी जान दे दी, वहीं पूरी सोसाइटी सिर्फ तमाशा देखती रही। यह उस सोसाइटी की बात है जहां हर महीने 3600 रुपये मेंटेनेंस के नाम पर लिए जाते हैं, लेकिन फायर फाइटिंग सिस्टम काम नहीं कर रहा था। पाइपों में पानी नहीं था, अलार्म नहीं बजा और कोई मॉक ड्रिल भी नहीं हुई थी।

आज इंसान की जान की कीमत 'रील्स' जितनी रह गई है। लोग इंतजार करते हैं कि अग्निशमन दल, पुलिस और एम्बुलेंस आए, लेकिन जब मौत सामने हो, तो इंसान ही इंसान के काम आता है। यह हमारी सभ्यता रही है, लेकिन इस घटना में एक पिता को बेबस होकर अपने बच्चों को बचाने के लिए मौत के मुंह में धकेलना पड़ा, और लोग खामोश रहे।

यश यादव की मौत को सिर्फ एक हादसा नहीं, बल्कि "हमारी सामाजिक संवेदना की हार" और "सामूहिक विफलता" बताया गया है। यह एक ऐसा आईना है जिसमें हमें खुद को देखना चाहिए।

 


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News Editor

Radhika

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