कार्बन उत्सर्जन में कमी की अपनी जिम्मेदारी से पीछे न हटें विकसित देश: जावड़ेकर

punjabkesari.in Saturday, Dec 05, 2015 - 08:20 AM (IST)

नई दिल्ली: केन्द्रीय वन एवं पर्यावरण मंत्री प्रकाश जावड़ेकर ने ग्लोबल वार्मिंग के खतरे को एचआईवी एड्स से भी खतरनाक बताते हुए आज कहा कि विकसित देशों को कार्बन उत्सर्जन में कमी करने की अपनी जिम्मेदारी से पीछे नहीं हटना चाहिए। जावड़ेकर ने फ्रांस की राजधानी पेरिस में इस मुद्दे पर उच्च स्तरीय वार्ता में शामिल होने के लिए रवाना होने से पहले यूनीवार्ता से बातचीत में उम्मीद जताई कि जलवायु परिवर्तन पर हो रही विश्व वार्ता के सकारात्मक परिणाम निकलेंगे।


उन्होंने कहा कि इस मुद्दे पर भारत की भूमिका बेहद सकारात्मक है और वह इसमें बढ़चढ़ कर योगदान देने को तैयार है। भारत ने कार्बन उत्सर्जन में कमी के जो लक्ष्य घोषित किए हैं वह काफी बड़े हैं और इससे भारत की जिम्मेदारी पूरी हो रही है। वन एवं पर्यावरण मंत्री ने कहा कि ग्लोबल वार्मिंग के कारण हो रही समस्या में भारत की कोई भूमिका नहीं है लेकिन वह इसके समाधान में बड़ा भागीदार बनने को तैयार है।

उन्होंने कहा कि विकसित देशों को अपनी जिम्मेदारी को स्वीकार करते हुए कार्बन उत्सर्जन में कमी के अपने लक्ष्यों को पूरा करना होगा। विकसित देशों के साथ समय समय पर जो बात हुई हैं और उनमें जो सहमति बनी है वह अब पेरिस में उभरकर सामने आनी चाहिए। उन्होंने कहा कि दुनिया भर में पर्यावरण पर पड़ रहे असर और विनाश की घटनाओं से सभी को स्थिति की गंभीरता का अहसास हो रहा है और उन्हें उम्मीद है कि विकसित देशों सहित सभी प्रमुख देश अपना योगदान देंगे।

जावड़ेकर ने कहा कि ग्लोबल वार्मिंग से होने वाले खतरे जानलेवा रोग एच आईवी एड्स से भी कहीं अधिक खतरनाक हैं। यह असाधारण समस्या है इसलिए इससे निपटने के लिए असाधारण कदम उठाने होंगे और बड़ी पहल करनी होगी। इस समस्या से निपटने के लिए बहुत अधिक वित्तीय संसाधनों की जरूरत होगी । इसे पूरा करने के लिए विकसित देशों को विकासशील देशों की मदद के लिए आगे आना होगा और उन्हें न केवल वित्तीय मदद करनी होगी बल्कि जरुरी प्रौद्योगिकी भी देनी होगी।

साथ ही उन्होंने कहा कि इस मुद्दे को जटिल बनाने के बजाय सबको मिलकर अपने अपने हिस्से का काम करना होगा। उन्होंने कहा कि यह समय आरोप प्रत्यारोप का नहीं है और सभी को अपनी जिम्मेदारी समझते हुए उसके अनुरूप कदम उठाने होंगे। उन्होंने कहा कि भारत ने कार्बन उत्सर्जन में कमी के लिए पर्याप्त कदम उठाए हैं और उसे इस दिशा में अभी आगे कदम उठाने की जरूरत नहीं है।

भारत ने सौर ऊर्जा जैसे अक्षय ऊर्जा के विकल्प सुझाये हैं और यह दुनिया में अपनी तरह का पहला प्रस्ताव है जिसमें उसने 100 देशों का एक क्लब बनाकर सौर ऊर्जा उत्पादन को बढ़ाने का बीड़ा उठाया है। जावड़ेकर ने कहा कि इसी तरह के कुछ और कदम उठाए जाने की जरूरत है जैसे कि कार्बन उत्सर्जन में कमी के अपने लक्ष्यों को पूरा करने वाले देशों को प्रोत्साहन दिया जा सकता है। इन लक्ष्यों को अमल में लाने के लिए एक तंत्र बनाये जाने की भी उन्होंने वकालत की। एक सवाल के जवाब में उन्होंने कहा कि विकासशील देश इस मुद्दे पर एकजुट हैं और वे मिलकर अपनी आवाज उठा रहे हैं। उन्होंने कहा कि चीन भी इस मुद्दे पर विकासशील देशों के साथ है।


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