वैवाहिक रिश्ते से इनकार और बच्चों की जिम्मेदारी नहीं लेना मानसिक क्रूरताः दिल्ली HC

punjabkesari.in Saturday, Apr 27, 2024 - 09:05 AM (IST)

नेशनल डेस्कः दिल्ली उच्च न्यायालय ने कहा है कि वैवाहिक रिश्ते को अस्वीकार करना और निर्दोष पीड़ित बच्चों की जिम्मेदारी लेने से इनकार करना सबसे गंभीर प्रकार की मानसिक क्रूरता है। उच्च न्यायालय ने अपनी अलग रह रही पत्नी से क्रूरता के आधार पर तलाक के अनुरोध संबंधी एक पति की अपील को खारिज करते हुए यह टिप्पणी की और कहा कि क्रूरता का शिकार महिला हुई है, पुरुष नहीं। 

अदालत ने कहा कि जीवनसाथी पर लगाए गए विश्वासघात के निंदनीय, निराधार आरोप और यहां तक कि बच्चों को भी नहीं बख्शना, अपमान और क्रूरता का सबसे खराब रूप होगा, जो व्यक्ति के लिए तलाक मंजूर नहीं करने के लिए पर्याप्त है। न्यायमूर्ति सुरेश कुमार कैत और न्यायमूर्ति नीना कृष्ण बंसल की पीठ ने कहा कि तलाक की याचिका खारिज करने वाली कुटुंब अदालत के आदेश को चुनौती देने संबंधी व्यक्ति की अपील में कोई दम नहीं है। 

पीठ ने कहा कि पति पत्नी के खिलाफ लगाए गए अपने किसी भी आरोप को साबित नहीं कर पाया है और उसने आत्महत्या करने की धमकी देने और आपराधिक मामलों में फंसाने के बारे में अस्पष्ट आरोप लगाए हैं। उच्च न्यायालय ने कहा कि विवाह एक ऐसा संबंध है जो आपसी विश्वास पर फलता-फूलता है और एक मधुर संबंध में कभी भी किसी की गरिमा को ठेस नहीं पहुंचाई जाती। 

व्यक्ति ने कहा है कि वह अपनी पत्नी से सितंबर 2004 में मिला था और अगले साल उसने शादी कर ली। इस व्यक्ति ने आरोप लगाया कि जब वह शराब के नशे में था तब महिला ने उसके साथ यौन संबंध बनाने के बाद उस पर शादी करने का दबाव डाला और बाद में उसे बताया कि वह गर्भवती है। इस व्यक्ति ने आरोप लगाया कि पत्नी आत्महत्या करने की धमकी देती थी और उसके कई पुरुषों के साथ अवैध संबंध थे। महिला ने हालांकि दावा किया कि उसका शारीरिक उत्पीड़न किया गया क्योंकि वह बच्चे पैदा करने में सक्षम नहीं थी और उसकी सहमति के बिना उसकी कई जांच कराई गई। 

महिला ने आरोप लगाया कि बच्चों को जन्म न दे पाने के कारण उसे ताने दिए जाते थे और उस व्यक्ति के परिवार का उद्देश्य केवल उससे पैसे ऐंठना था। महिला ने कहा कि 2008 में उसके बेटे के जन्म के समय उसका पति असंवेदनशील था और जब 2010 में बेटी का जन्म हुआ तो उस पर दुखों का पहाड़ टूट पड़ा क्योंकि उस व्यक्ति और उसके परिवार को लड़की स्वीकार्य नहीं थी। उच्च न्यायालय ने कहा कि अपनी नौकरी छोड़ने के बाद वह व्यक्ति परिवार की जिम्मेदारी निभाने में विफल रहा और पत्नी को न केवल वित्तीय बोझ झेलना पड़ा, बल्कि बच्चों की देखभाल और घरेलू जिम्मेदारियों के लिए भी संघर्ष करना पड़ा।
 


सबसे ज्यादा पढ़े गए

Content Writer

Pardeep

Recommended News

Related News