क्या है पीएफआई और क्यों है वो एनआईए की नजर में

punjabkesari.in Thursday, Sep 22, 2022 - 05:15 PM (IST)

एनआईए और ईडी ने पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया से जुड़े कई ठिकानों पर छापे मारे हैं और संगठन से जुड़े कई लोगों को गिरफ्तार भी किया है. यह पहली बार नहीं है जब केंद्र सरकार ने पीएफआई के खिलाफ कदम उठाए हैं. जानिए क्या है पीएफआई.मीडिया रिपोर्टों में बताया जा रहा है कि एनआईए और ईडी ने कथित रूप से आतंकवाद से जुड़े मामलों की जांच के संबंध में कम से कम 10 राज्यों में कई स्थानों पर छापे मारे. दोनों संस्थाओं ने अभी तक इन छापों के बारे में आधिकारिक रूप से जानकारी नहीं दी है, लेकिन मीडिया रिपोर्टों के मुताबिक पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया (पीएफआई) से जुड़े कम से कम 100 लोगों को गिरफ्तार भी किया गया है. जिन राज्यों में यह कार्रवाई की गई उनमें केरल, तमिलनाडु, पुडुचेरी, कर्नाटक, आंध्र प्रदेश, महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश, राजस्थान, उत्तर प्रदेश, दिल्ली और असम शामिल हैं. 18 सितंबर को एनआईए ने पीएफआई के ही कुछ कार्यकर्ताओं के खिलाफ तेलंगाना और आंध्र प्रदेश में करीब 40 स्थानों पर छापे मारे थे. एजेंसी का कहना था कि जिन्हें गिरफ्तार किया गया उनके खिलाफ आतंकवादियों गतिविधियों का प्रशिक्षण देने के लिए शिविर लगाने के आरोप थे. क्या है पीएफआई पीएफआई एक इस्लामी संगठन है जिसे सरकार एक उग्रवादी संगठन बताती है. इसका गठन 2006-07 के बीच केरल के नेशनल डेमोक्रेटिक फ्रंट, कर्नाटक फोरम फॉर डिग्निटी और तमिलनाडु के मनिता नीति पसरई नाम के तीन इस्लामी संगठनों का विलय कर किया गया था. संगठन की अधिकांश गतिविधियों के अल्पसंख्यकों, दलितों और हाशिए पर पहुंच चुके समुदायों के अधिकारों की रक्षा पर केंद्रित होती हैं. यह सबसे ज्यादा केरल में सक्रिय रहा है, लेकिन वहां कई बार संगठन पर हत्या, दंगे, हिंसा और आतंकवादी संगठनों के साथ संबंध रखने के आरोप लगते आए हैं. 2012 में ऐसे ही एक मामले पर सुनवाई के दौरान राज्य की तत्कालीन कांग्रेस सरकार ने हाई कोर्ट को बताया था कि पीएफआई "प्रतिबंधित गंगथन सिमी का दूसरा रूप है". सरकार ने पीएफआई के कार्यकर्ताओं पर हत्या के 27 मामलों में शामिल होने का आरोप लगाया था, जिनमें से अधिकांश सीपीएम और आरएसएस के कार्यकर्ताओं की हत्या के मामले थे. हालांकि अभी तक केंद्र सरकार ने पीएफआई को प्रतिबंधित संगठन घोषित नहीं किया है. राजनीति में सक्रिय 2020 में केंद्रीय एजेंसियों ने पीएफआई पर नागरिकता कानून और एनआरसी के खिलाफ हो रहे प्रदर्शनों को वित्त पोषित करने का भी आरोप लगाया था. संगठन का नाम अक्टूबर 2020 में उत्तर प्रदेश में पत्रकार सिद्दीक कप्पन की गिरफ्तारी के मामले में भी सामने आया था. कप्पन केरल के एक मीडिया संगठन के लिए उत्तर प्रदेश के हाथरस में हुए सामूहिक बलात्कार मामले पर रिपोर्ट करने के लिए दिल्ली से हाथरस जा रहे थे. उन्हें रास्ते में ही उत्तर प्रदेश पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया था. पुलिस और ईडी का आरोप है कि कप्पन के पीएफआई से संबंध हैं. वो लगभग दो साल से बिना जमानत के जेल में बंद हैं. 2009 में पीएफआई के कुछ सदस्यों ने ही सोशल डेमोक्रेटिक पार्टी ऑफ इंडिया (एसडीपीआई) नाम से एक राजनीतिक पार्टी शुरू की जो धीरे धीरे चुनाव लड़ने लगी. एसडीपीआई अब केरल, कर्नाटक, तमिलनाडु, आंध्र प्रदेश, पश्चिम बंगाल और दिल्ली में स्थानीय चुनावों, विधान सभा चुनावों और लोक सभा चुनावों में भी लड़ती है. केरल, तमिलनाडु और कर्नाटक में स्थानीय चुनावों में पार्टी ने कई सीटें जीती भी हैं.

यह आर्टिकल पंजाब केसरी टीम द्वारा संपादित नहीं है, इसे DW फीड से ऑटो-अपलोड किया गया है।

सबसे ज्यादा पढ़े गए

News Editor

DW News

Recommended News

Related News