चीन के लिए गले की हड्डी बना डोकलाम, मुसीबत में शी

punjabkesari.in Thursday, Aug 24, 2017 - 01:52 PM (IST)

बीजिंगः भारत जहां डोकलाम विवाद का कूटनीतिक हल निकालने की कोशिशों में जुटा है, वहीं चीन की नापाक हरकतों को देखते हुए सीमा पर भी चौकसी बरते हुए है।  । भारत ने इस विवाद को सुलझाने का जो रास्ता सुझाया था, चीन उसे मानने को तैयार नहीं है। चीन की तरफ से रोज नई-नई तरह की धमकियां दी जा रही हैं।  इन धमकियों के पीछे उसकी बौखलाहट साफ झलकती है। 

दरअसल  डोकलाम विवाद चीनी राष्ट्रपति शी चिनफिंग के लिए एक तरह से गले की हड्डी बन चुका है। अपनी अकड़ के चलते चीन यहां से पीछे हटने को तैयार है और ऐसा प्रतीत होता है कि वह युद्ध में भी नहीं जाता चाहता। क्योंकि युद्ध हुआ तो इसका नुकसान चीन को भी उठाना पड़ेगा।  चिनफिंग की इस मामले को सुलझाने में नाकामी उनकी घरेलू और अंतरराष्ट्रीय साख के लिए घातक साबित हो रही है।  अपनी ही पार्टी के लोगों का उन पर विश्वास डगमगा रहा है।इस साल चीन में कई अहम बैठकें होने जा रही हैं। ऐसे में चिनफिंग पर दबाव होगा कि वह समय रहते डोकलाम विवाद का स्थाई हल खोज निकालें, जिससे पार्टी में उनका कद बना रहे।
 
इस साल के अंत तक चीन की कम्युनिस्ट पार्टी अपनी 19वीं कांग्रेस का आयोजन करने जा रही है। राष्ट्रपति शी की कोशिश होगी कि वे इसमें अपनी जगह पक्की करें। हालांकि उम्र के आधार पर चिनफिंग और चीनी प्रधानमंत्री ली केकियांग को ही पोलित ब्यूरो में जगह मिलेगी। आशंकाएं हैं कि चिनफिंग पोलित ब्यूरो की स्टैंडिंग कमेटी में अपने खास लोगों को जगह दिलाने की योजना बना रहे हैं। लेकिन, डोकलाम मुद्दे के चलते उन्हें इस बैठक में विरोध का सामना भी करना पड़ सकता है।

अगले महीने 3-5 सितंबर चीन के शिआमेन शहर में ब्रिक्स सम्मेलन होने जा रहा है। इस सम्मेलन में भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के शामिल होने की अभी तक पुष्टि नहीं हुई है। ब्राजील, रूस, भारत, चीन और दक्षिण अफ्रीका के इस सहयोग संगठन में अगर मोदी शामिल नहीं होते हैं तो विश्व समुदाय में इसे सम्मेलन का विफल होना ही माना जाएगा। ऐसे समय में जब चिनफिंग चीन को दुनिया की सबसे मजबूत अर्थव्यवस्था बनाने की कोशिशों में चुटे हैं, सम्मेलन का विफल होना उनकी करारी शिकस्त माना जाएगा।


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