ब्रह्रमपुत्र नदी से ‘सुरंग योजना’ के चीनी खंडन पर भरोसा नहीं

punjabkesari.in Wednesday, Nov 01, 2017 - 08:01 PM (IST)

नई दिल्ली(रंजीत कुमार ): तिब्बत से होकर भारतीय इलाके में बह कर आने वाली ब्रह्मपुत्र नदी का पानी तिब्बत के पीछे  शिनच्यांग प्रदेश में मोडऩे की महत्वाकांक्षी योजना का हालांकि चीन ने आधिकारिक तौर पर खंडन किया है लेकिन यहां राजनयिक पर्यवेक्षकों को इस पर भरोसा नहीं हो रहा है। हांगकांग के एक दैनिक ने खुलासा किया है कि तिब्बत से शिनच्यांग तक एक हजार किलोमीटर लम्बी ऐसी सुरंग बनाने की एक योजना तैयार की गई है जिससे सूखे शिन्च्यांग प्रांत की पानी की जरुरतें पूरी की जा सकेंगी। 

विदेश मंत्रालय ने नहीं दी खंडन की आधिकारिक जानकारी 
चीन के खंडन के मद्देनजर यहां विदेश मंत्रालय ने कोई आधिकारिक प्रतिक्रिया नहीं दी है लेकिन सूत्रों का कहना है कि दो साल पहले दक्षिण चीन सागर के इलाके में चीन द्वारा कृत्रिम द्वीप बना कर उस पर सैन्य अड्डा बनाने की योजना का खुलासा हुआ था तब भी चीन ने इसका आधिकारिक खंडन किया था। लेकिन अब दक्षिण चीन सागर में चीन ने कृत्रिम द्वीप बना कर वहां सैन्य अड्डा बना लिया है और मिसाइलें तैनात कर दी हैं जो अब छुपा नहीं रह सकता। 

अभी कागजों पर ही यह योजना 
यहां राजनयिक पर्यवेक्षकों का कहना है कि चीन हमेशा विशाल महत्वाकांक्षी योजनाएं बनाता है और इसे लागू करने का राष्ट्रीय संकल्प लेता है लेकिन वह तब तक इसे स्वीकार नहीं करता है जब तक कि वह दुनिया को साफ दिखाई नहीं देने लगे। ब्रह्मपुत्र से एक हजार किलोमीटर लम्बी सुरंग खोदने की महत्वाकांक्षी योजना को शुरू करने में चार-पांच साल का वक्त लग सकता है और इतनी लम्बी सुरंग बिछाने में और कुछ साल लग सकते हैं। इसलिए जब इस योजना पर चल रहा काम सबको दिखाई पडऩे लगेगा तब चीन इसे स्वीकार करते हुए यही तर्क देगा कि ब्रह्मपुत्र का फालतू पानी ही इस सुरंग के जरिए भेजा जा रहा है। सूत्रों का कहना है कि यह योजना अभी कागजों पर ही है और इसके वित्तीय पहलुओं पर विचार करने के बाद ही इस पर फैसला लिया जाएगा। चूंकि चीन का खजाना लबालब भरा रहता है इसलिये इसे बनाने में चीन को कोई वित्तीय कठिनाई नहीं पैदा होगी। 

चीन ने 2013 में भारत के साथ किया था समझौता 
ब्रह्रमपुत्र नदी का पानी चूंकि भारत के निचले इलाकों की ओर बह कर आता है इसलिये इस नदी पर बांध बना कर चीन इसे रोकने की योजना पर बहुत पहले से ही काम कर रहा है। इस नदी पर चीन ने 510  मेगावाट का चांगमू पनबिजली घर भी बना लिया है। भारत की चिंताओं पर ध्यान देने का वादा करते हुए चीन ने 2013 में भारत के साथ एक समझौता किया था जिसके तहत जलप्रवाह के आंकड़ें भारत को मुहैया कराने का वादा चीन ने किया था। लेकिन इस साल डोकलाम विवाद के बाद चीन ने भारत की ओर पानी के बहाव के आंकड़ेंं भारत को यह कह कर नहीं दिये कि तिब्बत पर स्थित आंकड़ा केन्द्र का आधुनिकीकरण किया जा रहा है। 

राष्ट्रपति बनने के बाद शी चिन फिंग ने दिखाए तेवर
तिब्बत शिनच्यांग सुरंग योजना पर यहां राजनयिक पर्यवेक्षक इसलिये भरोसा कर रहे हैं कि चीन ने अपने युननान प्रांत के इलाके में छह सौ किलोमीटर लम्बी ऐसी ही सुरंग पर पिछले अगस्त में काम शुरु किया  है जिसे प्रदर्शन माडल के तौर पर पेश किया गया है। पर्यवेक्षकों के मुताबिक चूंकि भारत और चीन के बीच नदियों के पानी के बहाव को लेकर उसी तरह कोई समझौता नहीं हुआ है जैसे कि भारत और पाकिस्तान के बीच छह नदियों के पानी के बंटवारे को लेकर हुआ है इसलिये चीन को पानी का बहाव अपनी ओर मोडऩे से रोकने के लिये केवल  राजनयिक बातचीत ही एक जरिया हो सकता है। यह तभी सफल हो सकता है जब भारत और चीन के बीच सौहार्दपूर्ण रिश्ता हो। लेकिन पांच साल की अवधि के लिये दोबारा राष्ट्रपति बनने के बाद शी चिन फिंग ने जो अतिराष्ट्रवादी तेवर दिखाए हैं उसके मद्देनजर चीन को यह समझाना मुश्किल होगा कि वह ब्रह्मपुत्र नदी का भारत की ओर बहाव को अपनी ओर नहीं मोड़े।


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