भारत ने अमेरिकी प्रतिबंधों को दिखाया ठेंगा, दुश्मन के खिलाफ S-400 को बनाया हवाई ढाल,
punjabkesari.in Saturday, May 10, 2025 - 05:11 PM (IST)

International Desk: भारत ने अमेरिका की चेतावनियों और प्रतिबंधों के खतरे को नजरअंदाज करते हुए रूस से अत्याधुनिकS-400 एयर डिफेंस मिसाइल सिस्टम हासिल किया। यह भारत की संतुलित और मजबूत कूटनीति की बड़ी सफलता मानी जा रही है। अमेरिका ने 2017 में CAATSA (Countering America’s Adversaries Through Sanctions Act) कानून लागू किया था, जिसके तहत रूस से हथियार खरीदने वाले देशों पर प्रतिबंध लगाए जा सकते हैं। इसके बावजूद भारत ने अक्टूबर 2018 में रूस के साथ 5.4 अरब डॉलर की S-400 मिसाइल डील पर हस्ताक्षर किए।
भारत ने इससे एक महीना पहले ही अमेरिका के साथ COMCASA समझौता किया था, जिससे दोनों देशों के बीच सैन्य जानकारियां साझा करने का रास्ता खुला। भारत ने यह स्पष्ट कर दिया था कि रूस के साथ उसके रक्षा संबंध भारत-अमेरिका साझेदारी से अलग हैं। तत्कालीन रक्षा मंत्री निर्मला सीतारमण ने अमेरिकी सांसदों से कहा था, "यह अमेरिका का कानून है, संयुक्त राष्ट्र का नहीं।" भारत ने अमेरिकी प्रशासन को यह भी बताया कि वह रूस से रक्षा सहयोग जारी रखेगा।भारत ने अमेरिका से S-400 खरीद पर प्रतिबंध से छूट मांगी थी। अमेरिकी अधिकारियों ने बाद में यह संकेत दिया कि CAATSA का मकसद भारत जैसे सहयोगी देशों को नुकसान पहुंचाना नहीं, बल्कि रूस पर दबाव बनाना है।
S-400 सिस्टम की ताकत
- यह प्रणाली 400 किलोमीटर तक की दूरी पर हवाई खतरों को पहचान कर उन्हें नष्ट कर सकती है।
- यह एक साथ300 लक्ष्यों को ट्रैक कर सकती है >लगभग 36 लक्ष्यों को एकसाथ मार गिराने की क्षमता रखती है।
- मिसाइल, फाइटर जेट, ड्रोन और यहां तक कि परमाणु हमलों से भी यह रक्षा कर सकती है।
पंजाब के जालंधर में तैनात एक S-400 सिस्टम पाकिस्तान के इस्लामाबाद और पेशावर जैसे शहरों में उड़ रहे विमानों की निगरानी कर सकता है। यह सिस्टम भारत की वायु सुरक्षा की सबसे ऊपरी परत है, जिसमें आकाश, QRSAM, MR-SAM और स्पाइडर जैसे सिस्टम भी शामिल हैं। रूस अभी भी भारत का सबसे बड़ा हथियार आपूर्तिकर्ता है। SIPRI की रिपोर्ट (2020-24) के अनुसार, भारत के कुल रक्षा आयात में से 36% रूस से किए गए हैं। जुलाई 2022 में भारतीय मूल के अमेरिकी सांसद रो खन्ना ने संसद में प्रस्ताव रखा कि भारत को CAATSA से छूट दी जाए ताकि वह चीन जैसे आक्रामक देशों से निपट सके।