इस महाशिवरात्रि, पहली बार करोड़ों लोग दुनिया भर में पाएंगे 1000 वर्षों बाद मिले मूल सोमनाथ ज्योतिर्लिंग के पवित्र शिवलिंगों के दर्शन
punjabkesari.in Tuesday, Feb 25, 2025 - 08:47 PM (IST)
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25 फरवरी, 2025, बेंगलुरु: इस वर्ष, 180 से अधिक देशों के करोड़ों लोग आर्ट ऑफ लिविंग इंटरनेशनल सेंटर में महाशिवरात्रि उत्सव में भाग लेने के लिए तैयार हैं, जहां वे प्रत्यक्ष और डिजिटल रूप से वैश्विक आध्यात्मिक गुरु, गुरुदेव श्री श्री रवि शंकर जी की दिव्य उपस्थिति में उत्सव मनाएंगे। इस वर्ष, मूल सोमनाथ ज्योतिर्लिंग के वे पवित्र अवशेष, जिन्हें हजार वर्षों से लुप्त माना जा रहा था, दुनिया भर के लाखों भक्तों के लिए विशेष रूप से आकर्षण का केंद्र बने हैं।
जो श्रद्धालु आर्ट ऑफ लिविंग इंटरनेशनल सेंटर में व्यक्तिगत रूप से इस दिव्य अवसर पर उपस्थित नहीं हो सकते, वे आर्ट ऑफ लिविंग के आधिकारिक ध्यान ऐप सत्व पर ऑनलाइन जुड़ सकते हैं। 26 फरवरी की दोपहर को, ऐप पर गुरुदेव के साथ एक विशेष ध्यान आयोजित किया जाएगा। साथ ही पहली बार ऐप उपयोगकर्ता पवित्र सोमनाथ ज्योतिर्लिंग पत्थरों के वर्चुअल दर्शन कर सकेंगे और इस पावन दिन पर गुरुदेव के साथ ध्यान करने का विशेष अवसर प्राप्त करेंगे।
यह ध्यान अभिषेकम कलश के साथ संपन्न होगा, जिसमें आश्रम में स्थापित देश के बारह ज्योतिर्लिंगों से लाई गई पवित्र जलधारा सम्मिलित होगी।
महाशिवरात्रि: ध्यान के लिए अत्यंत शुभ दिन
महाशिवरात्रि ध्यान के लिए सबसे महत्वपूर्ण दिनों में से एक है। कहा जाता है कि इस दिन किया गया ध्यान अन्य दिनों की तुलना में सौ गुना अधिक प्रभावशाली होता है, क्योंकि इस दिन शिव तत्व को सहजता से अनुभव किया जा सकता है।
26 फरवरी को शाम 7 बजे से गुरुदेव की उपस्थिति में एक भव्य रुद्र पूजन से,शिवरात्रि उत्सव की शुरुआत होगी जो एक विशेष वैदिक अनुष्ठान है जिसमें भगवान शिव को रुद्र स्वरूप में पूजा जाता है। जब वातावरण में शक्तिशाली और ध्यानपूर्ण रुद्र मंत्रों का गुंजन होगा, तब भक्तजन भी भक्ति संगीत और भजनों के साथ इस दिव्य वातावरण का आनंद ले सकेंगे।
रात्रि 11:30 बजे, सामूहिक शांति और स्थिरता के अनुभव के साथ, गुरुदेव सभी साधकों को एक अविस्मरणीय ध्यान में मार्गदर्शित करेंगे। रात्रि भर श्रद्धालु जप, ज्ञान चर्चा और प्रसाद का आनंद लेते हुए शिवरात्रि की इस दिव्य रात्रि को संजोएंगे। अंत में, सुबह 4 बजे गुरुदेव के सान्निध्य में महारुद्र होम के साथ इस भव्य उत्सव का समापन होगा।
आश्रम में रखे मूल सोमनाथ ज्योतिर्लिंग के पवित्र अवशेष इतने विशेष क्यों हैं?
अत्यंत आध्यात्मिक और ऐतिहासिक महत्व के ये पवित्र अवशेष मूल सोमनाथ ज्योतिर्लिंग के हैं, जिन्हें 1026 ईस्वी में महमूद गजनवी के आक्रमण के दौरान नष्ट मान लिया गया था। यह कोई साधारण लिंग नहीं था—यह लगभग दो फीट हवा में तैरता रहता था।
इतिहास इस बात का साक्षी है कि श्रद्धा की शक्ति अजेय होती है। जब सोमनाथ मंदिर और ज्योतिर्लिंग को ध्वस्त कर दिया गया, तब अग्निहोत्री ब्राह्मणों ने इन पवित्र अवशेषों को तमिलनाडु ले जाकर गुप्त रूप से सुरक्षित रखा और सहस्राब्दियों तक उनकी पूजा की। पीढ़ी दर पीढ़ी इनका संरक्षण हुआ और अंततः ये अवशेष पंडित सीताराम शास्त्री के पास पहुंचे, जिन्होंने इन्हें उचित समय की प्रतीक्षा में बीस वर्षों तक सुरक्षित रखा।
एक सदी पहले, संत प्रणवेन्द्र सरस्वती ने ये पवित्र अवशेष कांची शंकराचार्य स्वामी चंद्रशेखरेन्द्र सरस्वती को सौंपे। उस समय शंकराचार्य ने भविष्यवाणी की कि इनका पुनः अभिषेक सौ वर्षों के बाद ही होगा और तब तक प्रतीक्षा करनी होगी।
पिछले वर्ष, पंडित सीताराम शास्त्री ने वर्तमान कांची शंकराचार्य से इन पवित्र पत्थरों के भविष्य को लेकर मार्गदर्शन मांगा। शंकराचार्य ने कहा, "इन्हें गुरुदेव श्री श्री रवि शंकर के पास ले जाएँ, वे ही इनके पुनर्स्थापन का मार्गदर्शन करेंगे।" इस जनवरी में, पंडित सीताराम शास्त्री आर्ट ऑफ लिविंग इंटरनेशनल सेंटर पहुंचे और गुरुदेव को ये पवित्र अवशेष सौंपे।
हजार वर्षों बाद पहली बार इन पवित्र अवशेषों के अनावरण पर, गुरुदेव ने कहा: "इनमें एक चुम्बकीय ऊर्जा है, जो हमें यह याद दिलाती है कि जो हम वास्तविकता के रूप में जानते हैं, वह सम्पूर्ण अस्तित्व का केवल एक छोटा सा अंश है। हमें बस अपनी दृष्टिकोण को और व्यापक करना है और गहराई से देखना है।"
2007 में इन अवशेषों पर किए गए भूवैज्ञानिक अध्ययन ने वैज्ञानिकों को चकित कर दिया। यह अवशेष पृथ्वी के किसी भी ज्ञात पदार्थ से भिन्न हैं। लिंगम के इन अंशों के केंद्र में असाधारण चुम्बकीय क्षेत्र पाया गया, जबकि इनमें लोहे की मात्रा इतनी कम थी कि इसमें चुम्बकत्व की कोई पारंपरिक व्याख्या नहीं की जा सकती।
यह विचित्रता वैज्ञानिकों के लिए अब तक एक रहस्य बनी हुई है। कुछ विशेषज्ञों का मानना है कि ये पत्थर शायद इस पृथ्वी के ही नहीं हैं। सोमनाथ में इनके भव्य पुनर्प्रतिष्ठापन से पहले, ये पवित्र अवशेष भारत के विभिन्न पावन स्थलों की यात्रा करेंगे, जो एक ऐतिहासिक आध्यात्मिक पुनरागमन का प्रतीक होगा।