उपराष्ट्रपति धनखड़ के इस बयान पर भड़की कांग्रेस, चिदंबरम बोले- आगे के खतरों को लेकर रहना होगा सजग

punjabkesari.in Thursday, Jan 12, 2023 - 05:36 PM (IST)

नेशनल डेस्क: कांग्रेस ने राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग (एनजेएसी) अधिनियम निरस्त किए जाने के मुद्दे पर उप राष्ट्रपति जगदीप धनखड़ द्वारा परोक्ष रूप से न्यायपालिका की आलोचना किए जाने के बाद बृहस्पतिवार को कहा कि राज्यसभा के सभापति का केशवानंद भारती मामले से जुड़े फैसले को ‘गलत' कहना न्यायपालिका पर अभूतपूर्व हमला है। पार्टी के वरिष्ठ नेता पी चिदंबरम ने यह दावा भी किया कि धनखड़ की टिप्पणी के बाद संविधान से प्रेम करने वाले हर नागरिक को ‘आगे के खतरों' को लेकर सजग हो जाना चाहिए। 

कांग्रेस महासचिव जयराम रमेश ने ट्वीट किया, ‘‘सांसद के रूप में 18 वर्षों में मैंने कभी भी किसी को नहीं सुना कि वह उच्चतम न्यायालय के केशवानंद भारती मामले के फैसले की आलोचना करे। वास्तव में, अरुण जेटली जैसे भाजपा के कई कानूनविदों ने इस फैसले की सराहना मील के पत्थर के तौर पर की थी। अब राज्यसभा के सभापति कहते हैं कि यह फैसला गलत है। यह न्यायपालिका पर अभूतपूर्व हमला है।'' 

पूर्व केंद्रीय मंत्री और वरिष्ठ वकील चिदंबरम ने ट्वीट कर कहा, ‘‘राज्यसभा के सभापति जब यह कहते हैं कि संसद सर्वोच्च है तो वह गलत हैं। संविधान सर्वोच्च है। उस फैसले (केशवानंद भारती) को लेकर यह बुनियाद थी कि संविधान के आधारभूत सिद्धांतों पर बहुसंख्यकवाद आधारित हमले को रोका जा सके।'' उनका यह भी कहना है, ‘‘एनजेएसी को निरस्त किए जाने के बाद सरकार को किसी ने नहीं रोका था कि वह नया विधेयक लाए। विधेयक को निरस्त करने का मतलब यह नहीं है कि आधारभूत सिद्धांत ही गलत है।'' 

चिदंबरम ने कहा, ‘‘असल में सभापति के विचार सुनने के बाद हर संविधान प्रेमी नागरिक को आगे के खतरों को लेकर सजग हो जाना चाहिए।'' उल्लेखनीय है कि धनखड़ ने बुधवार को कहा था कि संसद के बनाए कानून को किसी और संस्था द्वारा अमान्य किया जाना प्रजातंत्र के लिए ठीक नहीं है। उच्चतम न्यायालय द्वारा 2015 में एनजेएसी अधिनियम को निरस्त किए जाने को लेकर उन्होंने यह भी कहा था कि ‘दुनिया में ऐसा कहीं नहीं हुआ है।' धनखड़ राजस्थान विधानसभा में अखिल भारतीय पीठासीन अधिकारी सम्मेलन के उद्घाटन सत्र को संबोधित कर रहे थे। 

संवैधानिक संस्थाओं के अपनी सीमाओं में रहकर संचालन करने की बात करते हुए उपराष्ट्रपति ने कहा था, ‘‘संविधान में संशोधन का संसद का अधिकार क्या किसी और संस्था पर निर्भर कर सकता है। क्या भारत के संविधान में कोई नया ‘थियेटर' (संस्था) है जो कहेगा कि संसद ने जो कानून बनाया उस पर हमारी मुहर लगेगी तभी कानून होगा। 1973 में एक बहुत गलत परंपरा पड़ी, 1973 में केशवानंद भारती के केस में उच्चतम न्यायालय ने मूलभूत ढांचे का विचार रखा ...कि संसद, संविधान में संशोधन कर सकती है लेकिन मूलभूत ढांचे में नहीं।'' उन्होंने कहा था, ‘‘यदि संसद के बनाए गए कानून को किसी भी आधार पर कोई भी संस्था अमान्य करती है तो यह प्रजातंत्र के लिए ठीक नहीं होगा। बल्कि यह कहना मुश्किल होगा क्या हम लोकतांत्रिक देश हैं।'' 


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Content Writer

Anil dev

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