अगर 48 घंटों में नहीं चुना नया मुख्यमंत्री तो लग जाएगा राष्ट्रपति शासन

punjabkesari.in Monday, Feb 10, 2025 - 01:19 PM (IST)

नेशनल डेस्क: मणिपुर में हाल ही में हुई राजनीतिक घटनाओं ने राज्य को एक नई दिशा में ला खड़ा किया है। मुख्यमंत्री एन बीरेन सिंह के इस्तीफे के बाद, भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) को राज्य के नए मुख्यमंत्री का नाम तय करने की चुनौती का सामना करना पड़ रहा है। यदि इस मुद्दे पर 12 फरवरी तक कोई हल नहीं निकलता, तो विधानसभा को भंग कर दिया जाएगा और राष्ट्रपति शासन लागू हो सकता है। इस स्थिति के बीच मणिपुर की राजनीति में गहरी उथल-पुथल देखने को मिल रही है। बीजेपी के लिए यह 48 घंटे बेहद अहम हैं, क्योंकि इन घंटों में पार्टी को नए मुख्यमंत्री का चयन करना और विधानसभा सत्र बुलाना होगा।

बीजेपी के लिए 48 घंटे का समय

12 फरवरी तक बीजेपी को मणिपुर के नए मुख्यमंत्री का नाम तय करना होगा। यदि पार्टी ऐसा नहीं कर पाती, तो विधानसभा को भंग कर दिया जाएगा। राज्य में विधानसभा का आखिरी सत्र 12 अगस्त 2024 को अनिश्चितकाल के लिए स्थगित कर दिया गया था। ऐसे में, यदि 12 फरवरी तक सत्र शुरू नहीं होता तो संविधान के अनुसार विधानसभा भंग होगी और राष्ट्रपति शासन लागू हो सकता है। बीजेपी के लिए यह 48 घंटे बेहद अहम हैं, क्योंकि इन घंटों में पार्टी को नए मुख्यमंत्री का चयन करना और विधानसभा सत्र बुलाना होगा।

बीरेन सिंह के इस्तीफे के कारण

एन बीरेन सिंह का इस्तीफा मणिपुर के राजनीतिक इतिहास में एक महत्वपूर्ण घटनाक्रम है। उनके इस्तीफे के पीछे कई प्रमुख कारण रहे:

  1. कुकी-जो समुदाय का विरोध और जातीय संघर्ष: मणिपुर में 3 मई, 2023 को जातीय संघर्ष ने राज्य में हिंसा का माहौल पैदा किया था, जिसमें 200 से ज्यादा लोग मारे गए। इस संघर्ष के लिए मुख्यमंत्री एन बीरेन सिंह को जिम्मेदार ठहराया गया था, जिससे उनके खिलाफ राजनीतिक दबाव बढ़ गया।

  2. बीजेपी विधायकों का असंतोष: मुख्यमंत्री के खिलाफ उनके अपने पार्टी के विधायक असंतुष्ट हो गए थे। अक्टूबर 2024 में कई बीजेपी विधायक ने प्रधानमंत्री कार्यालय (PMO) और पार्टी के केंद्रीय नेतृत्व से मुख्यमंत्री के पद पर बदलाव की मांग की थी। हालांकि, पार्टी नेतृत्व ने शुरुआत में इसका विरोध किया, लेकिन असंतोष का सिलसिला बढ़ता गया।

  3. अविश्वास प्रस्ताव: विधानसभा सत्र के दौरान कुछ असंतुष्ट विधायकों ने मुख्यमंत्री के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव का समर्थन किया। कांग्रेस भी इसे आगे बढ़ाने के लिए तैयार हो गई थी, जिससे बीरेन सिंह की स्थिति और कमजोर हो गई।

  4. केंद्रीय फोरेंसिक रिपोर्ट: केंद्रीय फोरेंसिक विज्ञान प्रयोगशाला ने लीक हुए ऑडियो टेप की जांच शुरू की, जिसमें मुख्यमंत्री के जातीय संघर्ष को बढ़ावा देने के आरोप लगाए गए थे। इस रिपोर्ट ने बीरेन सिंह की विश्वसनीयता पर सवाल उठाया।

  5. लोकसभा चुनाव में हार: मणिपुर की दोनों लोकसभा सीटों पर एनडीए की हार ने राज्य सरकार के विश्वास को कमजोर किया। इसके बाद छह मैतेई महिलाओं और बच्चों के अपहरण और हत्या के बाद गुस्साई भीड़ ने विधायकों और मंत्रियों के घरों पर हमला किया और तोड़फोड़ की। इस गुस्से ने मणिपुर की राजनीति को और भी उथल-पुथल में डाल दिया।

इन सभी घटनाओं के कारण, एन बीरेन सिंह को अपना पद छोड़ना पड़ा और राज्यपाल ने उन्हें "वैकल्पिक व्यवस्था" तक पद पर बने रहने को कहा।

राष्ट्रपति शासन का खतरा

यदि 12 फरवरी तक बीजेपी नए मुख्यमंत्री का चयन नहीं कर पाती और विधानसभा सत्र भी नहीं बुलाती, तो मणिपुर में राष्ट्रपति शासन लागू होने की संभावना बन सकती है। राष्ट्रपति शासन का मतलब है कि राज्य सरकार की सारी जिम्मेदारी केंद्र सरकार के हाथों में चली जाएगी, और राज्य की राजनीति पर केंद्रीय सरकार का पूरा नियंत्रण होगा।

बीजेपी के पास अब बस 48 घंटे का समय है। इस समय के भीतर पार्टी को नया मुख्यमंत्री चुनना होगा और विधानसभा सत्र बुलाना होगा। पार्टी के सामने यह चुनौती इसलिए भी बढ़ी है क्योंकि किसी भी नेता को विधायकों का समर्थन हासिल नहीं हुआ है। ऐसे में, केंद्रीय नेतृत्व को जल्द ही कोई ठोस कदम उठाना होगा, ताकि राज्य में स्थिरता बनी रहे।

नए मुख्यमंत्री का चयन और मणिपुर की स्थिरता

मणिपुर की राजनीति में आने वाले दिनों में कुछ अहम बदलाव हो सकते हैं। बीजेपी को नए मुख्यमंत्री के लिए पार्टी के भीतर से ही एक मजबूत और स्वीकार्य चेहरा चुनना होगा, जो सभी विधायकों का विश्वास जीत सके। इसके अलावा, जातीय संघर्ष की स्थितियों को ध्यान में रखते हुए मुख्यमंत्री को राज्य की स्थिरता को बहाल करने की दिशा में कदम उठाने होंगे।

 


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Content Editor

Ashutosh Chaubey

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