CM हिमंत बिस्वा सरमा ने RSS के बयान को ठहराया सही, कहा - 'यह सही समय इमरजेंसी से जुड़ी विरासतों को हटाया जाए'

punjabkesari.in Saturday, Jun 28, 2025 - 09:13 PM (IST)

National Desk : असम के मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा सरमा ने शनिवार, 28 जून 2025 को संविधान की प्रस्तावना से ‘धर्मनिरपेक्षता’ और ‘समाजवाद’ जैसे शब्दों को हटाने की बात दोहराई। उन्होंने यह बयान राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) के पुराने सुझाव का समर्थन करते हुए दिया। सरमा ने कहा कि अब समय आ गया है कि आपातकाल की विरासत से जुड़े इन शब्दों को संविधान से हटाया जाए, क्योंकि ये भारत की मूल सोच और परंपरा के अनुरूप नहीं हैं।

यह बात उन्होंने गुवाहाटी में भारतीय जनता पार्टी कार्यालय में आयोजित एक कार्यक्रम के दौरान कही, जहां ‘द इमरजेंसी डायरीज (The Years That Forged a Leader)’ नामक पुस्तक का विमोचन किया गया। सरमा ने बताया कि यह किताब आपातकाल के समय हुए संघर्षों और प्रतिरोधों की कहानी बयां करती है।

इमरजेंसी की विरासत से मुक्ति की वकालत
मुख्यमंत्री ने कहा कि जैसे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी देश को औपनिवेशिक मानसिकता की विरासत से मुक्त कराने का काम कर रहे हैं, वैसे ही हमें इमरजेंसी के दुष्परिणामों को भी हटाना होगा। उन्होंने कहा कि आपातकाल के दौरान ही संविधान में ‘धर्मनिरपेक्षता’ और ‘समाजवाद’ जैसे शब्द जोड़े गए थे, जबकि ये मूल संविधान में शामिल नहीं थे।

धर्मनिरपेक्षता और समाजवाद पर सवाल
सरमा ने स्पष्ट कहा कि धर्मनिरपेक्षता का विचार भारतीय संस्कृति के ‘सर्वधर्म समभाव’ सिद्धांत के विपरीत है। उनका मानना है कि भारत कभी समाजवादी आर्थिक मॉडल को नहीं अपनाना चाहता था, बल्कि हमारा दृष्टिकोण हमेशा ‘सर्वोदय’ और ‘अंत्योदय’ जैसे सिद्धांतों पर केंद्रित रहा है। उन्होंने केंद्र सरकार से संविधान की प्रस्तावना से इन दोनों शब्दों को हटाने की अपील की, यह कहते हुए कि इन्हें जबरन 1976 में इंदिरा गांधी की सरकार के दौरान जोड़ा गया था। सरमा का यह बयान उस बहस को फिर से हवा दे सकता है जिसमें संविधान की मूल भावना बनाम बाद में जोड़े गए तत्वों को लेकर विचार चल रहे हैं।

RSS नेता दत्तात्रेय होसबोले ने क्या कहा था?

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) के महासचिव दत्तात्रेय होसबोले ने इमरजेंसी पर आयोजित एक कार्यक्रम के दौरान संविधान की प्रस्तावना में शामिल किए गए शब्दों ‘समाजवाद’ और ‘धर्मनिरपेक्षता’ को लेकर बड़ा बयान दिया था। उन्होंने कहा कि ये दोनों शब्द आपातकाल के दौरान जोड़े गए थे और डॉ. भीमराव आंबेडकर द्वारा तैयार किए गए मूल संविधान का हिस्सा कभी नहीं रहे।

होसबोले ने यह भी कहा कि जब देश में आपातकाल लगा था, उस समय मौलिक अधिकारों को निलंबित कर दिया गया था, संसद ने काम करना बंद कर दिया था, और न्यायपालिका भी निष्क्रिय हो गई थी। ऐसे समय में, इन शब्दों को संविधान की प्रस्तावना में जोड़ना लोकतांत्रिक प्रक्रिया के विरुद्ध था। उन्होंने जोर देकर कहा कि अब यह गंभीरता से विचार करने का समय है कि क्या ये शब्द प्रस्तावना में बने रहने चाहिए या नहीं। उनका यह बयान संविधान की मूल आत्मा और उसमें बाद में किए गए संशोधनों पर पुनर्विचार की आवश्यकता की ओर इशारा करता है।


सबसे ज्यादा पढ़े गए

Content Editor

Shubham Anand

Related News