चीन ने तिब्बत में ब्रह्मपुत्र पर शुरू किया दुनिया का सबसे बड़ा बांध निर्माण, जानिए भारत की चिंता क्यों बढ़ी?
punjabkesari.in Sunday, Jul 20, 2025 - 01:21 PM (IST)

नेशनल डेस्क: चीन ने तिब्बत में ब्रह्मपुत्र नदी पर एक विशाल बांध का निर्माण शुरू कर दिया है। यह प्रोजेक्ट दुनिया का सबसे बड़ा बांध बनने वाला है, जिसकी लागत करीब 167.8 बिलियन अमेरिकी डॉलर है। इस प्रोजेक्ट का आकार चीन के पहले बनाए गए थ्री गॉर्जेस बांध से भी कहीं बड़ा होगा। चीन ने इसे तिब्बत के न्यिंगची शहर के पास ब्रह्मपुत्र नदी के निचले हिस्से में शुरू किया है। इस विशाल बांध के कारण भारत में सुरक्षा और पर्यावरण की चिंताएं तेज हो गई हैं। आइए जानते हैं इस प्रोजेक्ट और भारत के लिए इसकी संभावित चुनौतियों के बारे में विस्तार से।
दुनिया के सबसे बड़े बांध का प्रोजेक्ट
चीन के इस नए बांध का निर्माण तिब्बत के न्यिंगची क्षेत्र में ब्रह्मपुत्र नदी पर हो रहा है। यह बांध पांच हाइड्रो पावर स्टेशनों का समूह होगा, जिसकी कुल लागत लगभग 1.2 ट्रिलियन युआन यानी 167.8 बिलियन अमेरिकी डॉलर आंकी गई है। इसे चीन का सबसे बड़ा और दुनिया का सबसे विशाल इंफ्रास्ट्रक्चर प्रोजेक्ट माना जा रहा है। यह प्रोजेक्ट थ्री गॉर्जेस बांध से भी बड़ा होगा, जिसे अब तक विश्व का सबसे बड़ा बांध माना जाता था। चीन ने 2015 में तिब्बत में जम हाइड्रो पावर स्टेशन शुरू कर दिया था, जिसकी लागत 1.5 बिलियन डॉलर थी। उस प्रोजेक्ट के बाद यह नया बांध उससे भी कई गुना बड़ा है। इसे चीन के प्रधानमंत्री ली कियांग ने न्यिंगची में भूमि पूजन के साथ औपचारिक रूप से शुरू किया।
चीन के लिए इस बांध का महत्व
इस हाइड्रो पावर प्रोजेक्ट से हर साल 300 बिलियन किलोवाट घंटे से अधिक बिजली उत्पन्न होने की उम्मीद है। इतनी बिजली से लगभग 300 मिलियन लोगों की ऊर्जा की जरूरतें पूरी हो सकेंगी। यह बिजली मुख्य रूप से बाहरी खपत के लिए बनाई जा रही है, साथ ही तिब्बत क्षेत्र की स्थानीय ऊर्जा मांग को भी पूरा करेगी। चीन के लिए यह प्रोजेक्ट आर्थिक और रणनीतिक दृष्टि से बहुत महत्वपूर्ण है। इससे न केवल ऊर्जा उत्पादन बढ़ेगा, बल्कि ब्रह्मपुत्र नदी के जल संसाधनों पर चीन की पकड़ भी मजबूत होगी। इस बांध से चीन अपनी सीमा के नजदीक बड़ी जल शक्ति का नियंत्रण हासिल करेगा, जो सीमावर्ती देशों के लिए चिंता का विषय है।
भारत के लिए क्यों बढ़ रही हैं चिंताएं?
भारत के लिए इस बांध का निर्माण कई तरह की चिंताएं लेकर आया है। ब्रह्मपुत्र नदी भारत के पूर्वोत्तर क्षेत्र में अरुणाचल प्रदेश और बाद में बांग्लादेश से होकर गुजरती है। चीन के इस नए बांध से भारत को जल प्रवाह में बाधा आने की आशंका है। सबसे बड़ी चिंता यह है कि चीन इस बांध के माध्यम से जल प्रवाह को नियंत्रित कर सकता है। युद्ध या तनाव की स्थिति में वह इस बांध से पानी रोक सकता है या अचानक बड़ी मात्रा में पानी छोड़ सकता है, जिससे अरुणाचल प्रदेश और आसपास के इलाकों में बाढ़ आ सकती है। भारत भी अरुणाचल प्रदेश में ब्रह्मपुत्र पर बांध बना रहा है, इसलिए यह मुद्दा और संवेदनशील हो जाता है।
संवेदनशील क्षेत्र में बांध का निर्माण
यह बांध हिमालय की पर्वतमाला में एक खतरनाक भूकंपीय क्षेत्र में बनाया जा रहा है। तिब्बती पठार, जिसे पृथ्वी की छत भी कहा जाता है, टेक्टोनिक प्लेटों के मिलन स्थल पर स्थित है। यह क्षेत्र भूकंप के लिए अत्यंत संवेदनशील माना जाता है। चीन ने भूकंप संबंधी चिंताओं को दूर करने के लिए कहा है कि उन्होंने प्रोजेक्ट की सुरक्षा और पर्यावरण संरक्षण का पूरा ध्यान रखा है। हालांकि, अरुणाचल प्रदेश के मुख्यमंत्री पेमा खांडू ने इसे ‘वाटर बम’ बताया है। उनका कहना है कि यह केवल पर्यावरणीय खतरा नहीं बल्कि सुरक्षा का भी बड़ा मसला है। यह प्रोजेक्ट सीमावर्ती जनजातियों के जीवन और संसाधनों के लिए खतरा बन सकता है।
भारत-चीन के बीच जल विवाद और बातचीत
भारत और चीन के बीच सीमा पार नदियों के जल संबंधी विवादों को हल करने के लिए 2006 में विशेषज्ञ स्तरीय तंत्र (ईएलएम) की स्थापना हुई थी। इसके तहत चीन बाढ़ के मौसम में भारत को ब्रह्मपुत्र और सतलुज नदियों के जल विज्ञान से जुड़ी जानकारी देता है। हालांकि, सीमा विवाद और राजनीतिक तनाव के चलते इस जानकारी की गुणवत्ता और नियमितता पर भी सवाल उठते रहे हैं। दिसंबर 2024 में दोनों देशों के सुरक्षा प्रतिनिधियों के बीच हुई बातचीत में जल संसाधनों पर पारदर्शिता और सहयोग का मुद्दा भी सामने आया था।