चीन ने शुरू किया दुनिया का सबसे बड़ा बांध, विशेषज्ञों की चेतावनी- प्रोजेक्ट से बढ़ेगी भारत की टेंशन
punjabkesari.in Saturday, Jul 19, 2025 - 06:50 PM (IST)

Bejing: चीन ने तिब्बत में यारलुंग त्सांगपो (ब्रह्मपुत्र) नदी के निचले हिस्से में एक विशाल और विवादित बांध परियोजना का निर्माण शुरू कर दिया है। करीब 1.2 ट्रिलियन युआन (167 बिलियन डॉलर) की लागत से बनने वाले इस बांध से हर साल लगभग 300 अरब किलोवाट-घंटा बिजली उत्पादन का लक्ष्य रखा गया है। हालांकि इस परियोजना से भारत और बांग्लादेश की चिंता बढ़ गई है, क्योंकि ब्रह्मपुत्र इन दोनों देशों के लिए जीवनरेखा मानी जाती है।
नए ग्रुप को निर्माण की जिम्मेदारी
चीन की सरकारी समाचार एजेंसी शिन्हुआ के मुताबिक, शनिवार को इस प्रोजेक्ट के लिए 'चाइना याजियांग ग्रुप' नाम की नई कंपनी को जिम्मेदारी दी गई है। यह कंपनी तिब्बत के दक्षिण-पूर्व निंगची इलाके में पांच जलप्रपात बांध बनाएगी। यहां बनने वाली बिजली का बड़ा हिस्सा तिब्बत के बाहर भेजा जाएगा और कुछ हिस्सा स्थानीय जरूरतों को पूरा करेगा।
पर्यावरण पर चुप्पी
चीन इस मेगा प्रोजेक्ट को अपने कार्बन उत्सर्जन में कटौती और इंजीनियरिंग उद्योग को बढ़ावा देने के बड़े हथियार के तौर पर देख रहा है। माना जा रहा है कि इस बांध से तिब्बत में रोजगार के मौके भी पैदा होंगे। हालांकि, चीनी अधिकारी अब तक यह नहीं बता रहे कि इस प्रोजेक्ट से कितने लोग विस्थापित होंगे और स्थानीय पारिस्थितिकी पर इसका क्या असर पड़ेगा।
भारत-चीन के बीच बढ़ सकता तनाव
ब्रह्मपुत्र नदी कैलाश पर्वत के पास एंग्सी ग्लेशियर से निकलती है और तिब्बत में यारलुंग त्सांगपो कहलाती है। यह अरुणाचल प्रदेश और असम होते हुए बांग्लादेश में जमुना नाम से बहती है और फिर गंगा में मिलती है। चीन का दावा है कि बांध से निचले इलाकों को कोई नुकसान नहीं होगा, लेकिन पर्यावरणविद इसे ब्रह्मपुत्र घाटी की पारिस्थितिकी के लिए खतरनाक मानते हैं। नदी का यह क्षेत्र जैव विविधता के लिहाज से बेहद समृद्ध माना जाता है।
नदी का रास्ता मोड़ सकता
रिपोर्ट्स के अनुसार, चीन को इस प्रोजेक्ट के लिए नमचा बरवा पर्वत के आसपास चार लंबी सुरंगें बनानी होंगी। इससे नदी का प्राकृतिक प्रवाह मोड़कर तिब्बत में ही बड़ा हिस्सा रोका जा सकेगा। इसका असर अरुणाचल प्रदेश, असम और बांग्लादेश तक महसूस हो सकता है।
पानी को हथियार बना सकता चीन
विशेषज्ञों का मानना है कि चीन आपातकाल में बांध का पानी अचानक छोड़कर भारत के पूर्वोत्तर इलाकों में बाढ़ जैसे हालात पैदा कर सकता है। इससे खेती, तटीय इलाके और जैव विविधता पर भी गंभीर खतरा होगा। नदी के साथ बहने वाली गाद का रुकना भी खेती और तटीय इलाकों की उर्वरता को प्रभावित करेगा। ऑस्ट्रेलिया के लोवी इंस्टीट्यूट ने पहले ही चेताया था कि तिब्बत की नदियों पर नियंत्रण से चीन को भारत की अर्थव्यवस्था पर दबाव बनाने का एक बड़ा हथियार मिल सकता है।
भारत के लिए कूटनीतिक चुनौती
भारत और बांग्लादेश लंबे समय से इस बांध का विरोध कर रहे हैं। लेकिन चीन ने इसे दरकिनार कर निर्माण शुरू कर दिया है। विशेषज्ञों के मुताबिक, यह विवाद आने वाले समय में भारत-चीन संबंधों में नई दरार डाल सकता है और दक्षिण एशिया में पानी की राजनीति को और जटिल बना सकता है।