Budget 2020: भोजन की थाली अब और हुई सस्ती
punjabkesari.in Friday, Jan 31, 2020 - 04:32 PM (IST)
नई दिल्ली: केंद्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने शुक्रवार को कहा कि अब औद्योगिक श्रमिकों की दैनिक आमदनी की तुलना में भोजन की थाली और सस्ती हो गई है। सीतारमण ने संसद में आर्थिक समीक्षा पेश करते हुए कहा कि वर्ष 2006-2007 की तुलना में 2019-20 में शाहाकारी भोजन की थाली 29 प्रतिशत और मांसाहारी भोजन की थाली 18 प्रतिशत सस्ती हुई हैं। सब्जियों और दालों की कीमतों में कमी के कारण भोजन की थाली सस्ती हुई है। देश में भोजन की थाली के अर्थशास्त्र के आधार पर समीक्षा में यह निष्कर्ष निकाला गया है। यह अर्थशास्त्र देश में एक सामान्य व्यक्ति द्वारा एक थाली के लिए किए जाने वाले भुगतान को मापने का प्रयास है।
भारतीयों के लिए दैनिक आहार से संबंधित दिशा-निर्देशों की सहायता से थाली की मूल्य का आंकलन किया गया है। इसके लिए अप्रैल 2006 से अक्तूबर 2019 तक 25 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों के लगभग 80 केंद्रों से औद्योगिक श्रमिकों के लिए उपभोक्ता मूल्य सूचकांक से कीमतों के आंकड़ों का इस्तेमाल किया गया है। समीक्षा के अनुसार चारों क्षेत्रों- उत्तर, दक्षिण, पूर्व और पश्चिम में यह पाया गया कि शाकाहारी भोजन की थाली की कीमतों में 2015-16 से काफी कमी आई है। हालांकि, 2019 में इनकी कीमतों में तेजी रही। ऐसा सब्जियों और दालों की कीमतों में पिछले वर्षो की तेजी के रुझान के मुकाबले गिरावट का रूख रहने के कारण हुआ है। इसके परिणामस्वरूप पांच सदस्यों वाले एक औसत परिवार को जिसमें प्रति व्यक्ति रोजना न्यूनतम दो पौष्टिक थालियों से भोजन करने हेतु प्रतिवर्ष औसतन 10887 रुपए जबकि मांसाहारी भोजन वाली थाली के लिए प्रत्येक परिवार को प्रतिवर्ष औसतन 11787 रुपए का लाभ हुआ है।
समीक्षा के अनुसार 2015-16 में थाली की कीमतों में बड़ा बदलाव आया। ऐसा वर्ष 2015-16 में थालीनॉमिक्स अर्थात् भोजन की थाली के अर्थशास्त्र में बड़े बदलाव के कारण संभव हुआ। सरकार की ओर से 2014-15 में कृषि क्षेत्र की उत्पादकता तथा कृषि बाजार की कुशलता बढ़ाने के लिए कई कदम उठाए गए। इसके तहत अधिक पारदर्शी तरीके से कीमतों का निर्धारण किया गया। आर्थिक समीक्षा के अनुसार भोजन अपने आप में पर्याप्त नहीं है, बल्कि यह मानव संसाधन विकास का एक महत्वपूर्ण घटक भी है जो राष्ट्रीय संपदा के निर्माण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। सतत विकास लक्ष्य के तहत दुनियाभर के देश ‘जीरो हंगर' यानी भूख के खात्मे की नीति पर सहमत हुए हैं।
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