...तो यू.पी. में 10 सीटों पर सिमट सकती है भाजपा!
punjabkesari.in Friday, Dec 21, 2018 - 02:15 AM (IST)
जालंधर(नरेश कुमार): अगले साल होने वाले लोकसभा चुनाव को लेकर सारी पार्टियों ने अपनी सियासी गोटियां फिट करनी शुरू कर दी हैं। भारतीय जनता पार्टी को चुनौती देने के लिए जहां एक तरफ कांग्रेस मैदान में है वहीं स्थानीय स्तर पर राज्यों में भी भाजपा के खिलाफ गठबंधन आकार लेने लगे हैं। इस बीच सबसे बड़ी खबर उत्तर प्रदेश की सियासत को लेकर है जहां धुर विरोधी समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी एक बार फिर एकजुट होने पर मजबूर हुए हैं।
इस गठबंधन की सीटों को लेकर अंतिम फैसला जनवरी मध्य में आने की उम्मीद है और हाल की खबरों में कहा गया है कि कांग्रेस इस गठबंधन का हिस्सा नहीं होगी लेकिन बसपा के वरिष्ठ नेता सतीश चंद्र मिश्रा ने कांग्रेस के बिना गठबंधन किए जाने की खबरों को नकारा है। लिहाजा माना जा रहा है कि थोड़े मोल-भाव के बाद कांग्रेस को भी इस गठबंधन में शामिल किया जा सकता है। यदि कांग्रेस इस गठबंधन का हिस्सा हुई तो विपक्ष का वोट एकजुट होगा, ऐसे में 2004 और 2009 जैसे चुनावी नतीजों की संभावना से इंकार नहीं किया जा सकता। इन दोनों चुनावों में भाजपा 10 सीटों पर सिमट गई थी।
2004 और 2009 के नतीजे दोहराने की उम्मीद में विपक्ष
उत्तर प्रदेश में भारतीय जनता पार्टी के खिलाफ खड़ा हो रहा गठबंधन 2004 और 2009 के लोकसभा चुनाव के नतीजे दोहराने की उम्मीद में है। इन दोनों चुनावों में भाजपा उत्तर प्रदेश में 10 सीटों पर सिमट गई थी। हालांकि इस पूरे विपक्ष को पिछले चुनाव के दौरान यू.पी. की 80 में से 7 सीटें हासिल हुई थीं लेकिन इन सबका कुल वोट मिलाकर भाजपा के वोट से ज्यादा था। भाजपा को उत्तर प्रदेश में 42.63 फीसदी वोटों के साथ 71 सीटें हासिल हुई थीं जबकि समाजवादी पार्टी को 23.35 फीसदी वोटों के साथ महज 5 सीटें मिली थीं।
कांग्रेस को 7.53 फीसदी वोट हासिल हुए थे और उसे 2 सीटों पर जीत मिली थी जबकि बसपा 19.77 फीसदी वोट हासिल करके एक भी सीट नहीं जीत पाई थी। इन तीनों का वोट मिला दिया जाए तो यह वोट 50 फीसदी से ज्यादा बनता है और यदि यह सारा वोट एकजुट हुआ तो उत्तर प्रदेश में भाजपा को लेने के देने पड़ सकते हैं।
1993 में भी हुआ था गठजोड़, भारी पड़ी थी भाजपा
6 दिसम्बर, 1992 को बाबरी विध्वंस के बाद हुए उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव के दौरान भी सपा व बसपा एक साथ आने को मजबूर हुए थे। उस समय संयुक्त उत्तर प्रदेश हुआ करता था। भारतीय जनता पार्टी एक तरफ जबकि दूसरी तरफ सपा व बसपा का गठजोड़ था। यह गठजोड़ मिलकर भी भाजपा के मुकाबले एक सीट पीछे रह गया था। उस विधानसभा चुनाव के दौरान बसपा को 67 सीटें हासिल हुई थीं जबकि सपा 109 सीटों पर चुनाव जीती थी। भाजपा इन दोनों के -मुकाबले में अकेली लड़कर भी 177 विधानसभा सीटों पर जीत गई थी। 1993 के नतीजे बताते हैं कि दोनों पाॢटयों का वोट एक-दूसरे को पूरी तरह से ट्रांसफर होने में संदेह रहता है।
भावनात्मक मुद्दे पर वोट करता है यू.पी.
उत्तर प्रदेश का चुनावी इतिहास बताता है कि यहां के वोटर भावनात्मक मुद्दे पर ज्यादा वोट करते हैं। इसका उदाहरण 1991 से लेकर 1999 तक हुई वोटिंग का पैटर्न है। 1990 के दशक में अयोध्या में राम मंदिर का मुद्दा देश के सियासी पटल पर छाया हुआ था लिहाजा भाजपा को इस दौरान उत्तर प्रदेश में बम्पर सफलता भी मिली।
1991 में भाजपा को यू.पी. में 51, 1996 में 52, 1998 में 57 व 1999 में 29 सीटें हासिल हुईं। जैसे ही राम मंदिर का मुद्दा राष्ट्रीय राजनीति के परिदृश्य से दूर हुआ तो 2004 में भाजपा उत्तर प्रदेश में 10 सीटों पर सिमट गई। 2009 में भी भाजपा को यहां 10 सीटें ही हासिल हुईं। पिछले चुनाव के दौरान देशभर में छाए ङ्क्षहदुत्व के मुद्दे और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के वाराणसी सीट से चुनाव लडऩे के चलते यू.पी. में ध्रुवीकरण हुआ और भाजपा ने राज्य में अब तक की सबसे बड़ी जीत हासिल की। लिहाजा माना जा रहा है कि अगले चुनाव से पहले भी भाजपा यू.पी. में भावनात्मक मुद्दे को लेकर ही मैदान में उतर सकती है।
17 कमजोर सीटों पर विपक्ष की नजर
2014 के चुनाव के दौरान हालांकि भाजपा ने यू.पी. में 71 सीटें जीती थी और 2 सीटें उसकी सहयोगी राष्ट्रीय लोकदल को मिली थीं लेकिन भाजपा की 17 सीटें ऐसी थी, जहां जीत का अंतर 10 फीसदी से कम था। विपक्ष की नजर इन सीटों पर रहेगी क्योंकि इन सीटों पर थोड़ी मेहनत से ही नतीजे भाजपा के खिलाफ जा सकते हैं।
2014 में भाजपा की कमजोर सीटें
सीट | मार्जन ('%में) |
इलाहाबाद | 6.98 |
बस्ती | 3.23 |
गाजीपुर | 3.31 |
हरदोई | 8.43 |
केसरगंज | 8.40 |
कोशांबी | 4.79 |
कुशीनगर | 9.10 |
लालगंज | 7.08 |
मिसरिख | 8.84 |
मुरादाबाद | 7.79 |
नगीना | 9.87 |
रामपुर | 2.47 |
सहारनपुर | 5.48 |
सम्बल | 0.49 |
संत कबीर नगर | 9.73 |
श्रावस्ती | 8.90 |
सीतापुर | 5.03 |