यीशु की सूली पर चढ़ने के दिन क्यों काला पड़ा सूरज और लाल हो गया चांद? नासा की खोज से उठा रहस्य का पर्दा!

punjabkesari.in Monday, Apr 21, 2025 - 12:11 PM (IST)

नेशनल डेस्क: ईसाई धर्म की पवित्र किताब बाइबल में वर्णन है कि जब यीशु मसीह को क्रॉस पर चढ़ाया गया, उस समय आसमान में एक विचित्र खगोलीय घटना घटी-सूरज अंधकारमय हो गया और चंद्रमा खून जैसा लाल दिखाई देने लगा। सदियों से यह एक धार्मिक मान्यता रही है, लेकिन अब विज्ञान ने इस ऐतिहासिक क्षण की पड़ताल शुरू कर दी है। अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी नासा की खोजों से इस बात के पुख्ता संकेत मिले हैं कि उस दिन जो कुछ लिखा गया है, वो महज आस्था नहीं, एक खगोलीय सच्चाई भी हो सकती है।

नासा की ऐतिहासिक पड़ताल: 3 अप्रैल, 33 ईस्वी का चंद्र ग्रहण

नासा के वैज्ञानिकों ने पृथ्वी, चंद्रमा और सूर्य की पुरानी कक्षाओं की मदद से एक विशेष मॉडल तैयार किया, जिससे यह पता चला कि 3 अप्रैल, 33 ईस्वी को एक पूर्ण चंद्र ग्रहण हुआ था। यही वो तारीख मानी जाती है जब परंपरागत रूप से यीशु को सूली पर चढ़ाया गया था। उस दिन सूर्यास्त के ठीक बाद यरूशलेम (Jerusalem) में चंद्रमा का उदय हुआ और ग्रहण की स्थिति के कारण वह गहरे लाल रंग का दिखा-बिल्कुल वैसा जैसा बाइबल में “खून जैसा चंद्रमा” बताया गया है।

बाइबल की भविष्यवाणी और विज्ञान की पुष्टि

बाइबल में दर्ज विवरण के अनुसार, जब यीशु को सूली दी गई, तब चारों ओर अंधकार छा गया और चंद्रमा लाल हो गया। नासा की यह खगोलीय गणना इस विवरण को वास्तविकता के बेहद करीब ला देती है। वैज्ञानिकों का मानना है कि ग्रहण के समय पृथ्वी की छाया में आने के कारण चंद्रमा का रंग ऐसा हो सकता है, और यह दृश्य यरूशलेम से स्पष्ट रूप से दिखा होगा।

 सोशल मीडिया पर वायरल हुआ पुराना वैज्ञानिक शोध

हालाकि नासा की यह खोज 1990 के दशक में सामने आई थी, लेकिन हाल ही में गुड फ्राइडे के अवसर पर यह जानकारी टिकटॉक और सोशल मीडिया पर तेजी से वायरल हो रही है। कई ईसाई समुदाय के लोग इसे उस दिन की पुष्टि के तौर पर देख रहे हैं, जब ईश्वर का पुत्र संसार के पापों के लिए सूली पर चढ़ा।

तो क्या यह था 'ब्लड मून'?

नासा के विशेषज्ञ बताते हैं कि ग्रहण के समय जब चंद्रमा पृथ्वी की छाया में होता है, तो वह कभी-कभी गहरा लाल दिखाई देता है—जिसे आज के समय में "ब्लड मून" कहा जाता है। यदि यीशु की मृत्यु उसी दिन हुई थी, तो संभव है कि उस रात का चंद्रमा वास्तव में लाल रहा हो। भले ही धार्मिक मान्यताएं और वैज्ञानिक तथ्यों के बीच की दूरी हमेशा चर्चा में रहती है, लेकिन इस खोज ने एक नया आयाम जोड़ दिया है—जहां आस्था और विज्ञान एक ही क्षण को अपने-अपने तरीके से व्याख्यायित करते हैं। यह निश्चित रूप से धार्मिक इतिहास में रुचि रखने वालों के लिए एक आकर्षक विषय है।


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Content Writer

Anu Malhotra

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