वैश्विक भूख सूचकांक में भारत 94वें स्थान पर, प्रशांत भूषण का तंज- PAK से भी पिछड़े, बढ़िया जा रहे हैं मोदीजी

punjabkesari.in Saturday, Oct 17, 2020 - 04:59 PM (IST)

नई दिल्ली: भारत वैश्विक भूख सूचकांक 2020 में 107 देशों की सूची में 94 वें स्थान पर है और भूख की गंभीर श्रेणी में है। विशेषज्ञों ने इसके लिए खराब कार्यान्वयन प्रक्रियाओं, प्रभावी निगरानी की कमी, कुपोषण से निपटने का उदासीन दृष्टिकोण और बड़े राज्यों के खराब प्रदर्शन को दोषी ठहराया। पिछले साल 117 देशों की सूची में भारत का स्थान 102 था। पड़ोसी बांग्लादेश, म्यामां और पाकिस्तान भी गंभीर श्रेणी में हैं। लेकिन इस साल के भूख सूचकांक में भारत से ऊपर हैं। बांग्लादेश 75 वें, म्यामां 78 वें और पाकिस्तान 88 वें स्थान पर हैं। रिपोर्ट के अनुसार, नेपाल 73 वें और श्रीलंका 64 वें स्थान पर हैं। दोनों देश मध्यम श्रेणी में आते हैं। चीन, बेलारूस, यूक्रेन, तुर्की, क्यूबा और कुवैत सहित 17 देश भूख और कुपोषण पर नजर रखने वाले वैश्विक भूख सूचकांक (जीएचआई) में शीर्ष रैंक पर हैं। 

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वहीं, वरिष्ठ वकील प्रशांत भूषण ने हंगर इंडेक्स को लेकर एक ट्वीट किया है। जिसमें उन्होंने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर तंज किया है। प्रशांत भूषण ने च्टाइम्स ऑफ इंडियाज् का एक कार्टून शेयर करते हुए पीएम मोदी पर निशाना साधा है। प्रशांत भूषण ने लिखा भारत प्रति व्यक्ति आय घरेलू उत्पाद में बांग्लादेश के नीचे जाने के बाद, अब भारत ग्लोबल हंगर इंडेक्स में बांग्लादेश और पाकिस्तान से भी नीचे पहुंच गया है। बहुत अच्छा चल रहा है मोदीजी।

जीएचआई की वेबसाइट पर दी गई जानकारी
जीएचआई की वेबसाइट पर शुक्रवार को यह जानकारी दी गयी है। रिपोर्ट के अनुसार भारत की 14 फीसदी आबादी कुपोषण की शिकार है। रिपोर्ट में कहा गया है कि पांच साल से कम उम्र के बच्चों की मृत्यु दर 3.7 प्रतिशत थी। इसके अलावा ऐसे बच्चों की दर 37.4 थी जो कुपोषण के कारण नहीं बढ़ पाते। बांग्लादेश, भारत, नेपाल और पाकिस्तान के लिए 1991 से अब तक के आंकड़ों से पता चलता है कि वैसे परिवारों में बच्चों के कद नहीं बढ़ पाने के मामले ज्यादा है जो विभिन्न प्रकार की कमी से पीड़ित हैं। इनमें पौष्टिक भोजन की कमी, मातृ शिक्षा का निम्न स्तर और गरीबी आदि शामिल हैं इस अवधि के दौरान भारत में पांच साल से कम उम्र के बच्चों की मृत्यु दर में कमी दर्ज की गयी। रिपोर्ट में कहा गया है कि समय से पहले जन्म और कम वजन के कारण बच्चों की मृत्यु दर विशेष रूप से गरीब राज्यों और ग्रामीण क्षेत्रों में बढ़ी है। विशेषज्ञों का मानना ​​है कि खराब क्रियान्वयन प्रक्रिया, प्रभावी निगरानी की कमी और कुपोषण से निपटने के लिए दृष्टिकोण में समन्वय का अभाव अक्सर खराब पोषण सूचकांकों का कारण होते हैं। अंतर्राष्ट्रीय खाद्य नीति शोध संस्थान, नयी दिल्ली में वरिष्ठ शोधकर्ता पूर्णिमा मेनन ने कहा कि भारत की रैंकिंग में समग्र परिवर्तन के लिए उत्तर प्रदेश, बिहार और मध्य प्रदेश जैसे बड़े राज्यों के प्रदर्शन में सुधार की आवश्यकता है। 

राष्ट्रीय औसत उत्तर प्रदेश और बिहार जैसे राज्यों से बहुत अधिक होता है प्रभावित
उन्होंने कहा, राष्ट्रीय औसत उत्तर प्रदेश और बिहार जैसे राज्यों से बहुत अधिक प्रभावित होता है। जिन राज्यों में वास्तव में कुपोषण अधिक है और वे देश की आबादी में खासा योगदान करते हैं। उन्होंने कहा, भारत में पैदा होने वाला हर पांचवां बच्चा उत्तर प्रदेश में है। इसलिए यदि उच्च आबादी वाले राज्य में कुपोषण का स्तर अधिक है तो यह भारत के औसत में बहुत योगदान देगा। स्पष्ट है कि तब भारत का औसत धीमी होगा। मेनन ने कहा अगर हम भारत में बदलाव चाहते हैं, तो हमें उत्तर प्रदेश, झारखंड, मध्य प्रदेश और बिहार में भी बदलाव की आवश्यकता होगी। न्यूट्रीशन रिसर्च की प्रमुख श्वेता खंडेलवाल ने कहा कि देश में पोषण के लिए कई कार्यक्रम और नीतियां हैं लेकिन जमीनी हकीकत काफी निराशाजनक है। उन्होंने बातचीत करते हुए महामारी के कारण अभाव की समस्या को कम करने के लिए कई उपाय सुझाए। उन्होंने कहा कि पौष्टिक, सुरक्षित और सस्ता आहार तक पहुंच को बढ़ावा देना, मातृ और बाल पोषण में सुधार लाने के लिए निवेश करना, बच्चे का वजन कम होने पर शुरुआती समय में पता लगाने और उपचार के साथ ही कमजोर बच्चों के लिए पौष्टिक और सुरक्षित भोजन महत्वपूर्ण हो सकते हैं।    


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Anil dev

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