पहले कुदरत की मार अब सरकार का सौतेला व्यवहार

punjabkesari.in Tuesday, May 26, 2015 - 05:52 AM (IST)

डबवाली(संदीप): बे-मौसमी बारिश से जोतांवाली गांव की सैंकड़ों एकड़ तबाह हुई फसल के मुआवजे को लेकर शासन-प्रशासन ने अब इन किसानों को टका-सा जवाब दे दिया है। प्रशासन ने किसानों को पत्र भेजकर दो टूक कह दिया है कि उनकी जमीन सेमग्रस्त एरिया में आती है। इसलिए उन्हें मुआवजा नहीं दिया जाएगा। जबकि दूसरी तरफ इसी जिला प्रशासन ने नाथूसरी चोपटा तहसील के अंतर्गत आने वाले कई सेमग्रस्त गांवों के किसानों को बे-मौसमी बारिश व ओलावृष्टि से बर्बाद हुई गेहूँ व अन्य की फसलों का मुआवजा बांटा है। ऐसे में सवाल उठ रहा है कि आखिर जोतांवाली के किसानों के साथ प्रशासन सौतेला व्यवहार क्यों कर रहा है।

रबी की फसल में प्रशासन व सरकार का सौतेला व्यवहार झेल रहे जोतांवाली के किसान अब भी इस उम्मीद में खरीफ की फसल नहीं बो रहे कि प्रशासन उनकी पीड़ा और कुदरत की मार को समझेगा और लगभग 300 एकड़ में बर्बाद हुई गेहूँ की फसल का उचित और न्यायपूर्ण मुआवजा उन्हें देगा। जोतांवाली के 300 एकड़ में बीते मार्च व अप्रैल में हुई बारिश और ओलावृष्टि से गेहूँ की फसल नष्ट हुई थी। इसके बाद पटवारी की गिरदावरी रिपोर्ट के बावजूद बड़े बाबूओं की नजर में ये किसान मुआवजे के हकदार नहीं बने। गिरदावरी रिपोर्ट में पटवारी ने 300 एकड़ में नष्ट हुई फसल को मुआवजे की श्रेणी में रखा था लेकिन सरकारी बाबूओं ने कागजों और फाइलों में मामले को ऐसा उलझा दिया कि किसान मुआवजे से वंचित रह गए। 

आपका गांव सेमग्रस्त घोषित है...
मामला सी.एम. विंडो तक भी पहुंचा। मगर मुख्यमंत्री की खिड़की से किसानों को टका-सा जवाब मिला कि आपका गांव सेमग्रस्त घोषित है। इसलिए आप मुआवजे की श्रेणी में नहीं आते। हकीकत में अब यहां के हालात काफी बदल चुके हैं। यहां ग्राऊंड वाटर काफी नीचे चला गया है। खेतिहर किसान इस भूमि पर काश्त करते हैं। फसलें भी अच्छी पैदावार देती हैं। मगर बारिश से किसानों को प्रशासन की चौखट पर चढऩे को मजबूर कर दिया। 

किसान बोले, बारिश से हुआ था जलभराव
इधर कुदरत की मार से प्रभावित किसान प्रदीप, प्यारे लाल, मोमन, जगजीत सिंह, गुरजीत सिंह, तारा सिंह, बिट्टू, राकेश कुमार, सतेंद्र बिश्रोई, कवलदीप आदि का कहना है कि बे-मौसम की बारिश से गेहूँ की फसल में जलभराव हुआ था। उस वक्त प्रशासनिक अधिकारियों व आपदा प्रबंधन वालों ने किसानों को फसल से पानी निकालने के लिए मोटरें उपलब्ध नहीं करवाई।अगर वो मोटर समय पर उपलब्ध हो जाती तो पानी की निकासी कर फसल को बचाया जा सकता था। फिर मुआवजे की नौबत ही न आती।

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